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पहली बार इसरो उतारेगा चांद पर यान, जानिए- क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग

करीब 45 घंटे बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 7 सितंबर को चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारेगा. इसरो वैज्ञानिक इसे सॉफ्ट लैंडिंग कह रहे हैं. आखिरकार यह सॉफ्ट लैंडिंग है क्या... इसे कैसे करते हैं...

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7 सितंबर को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा विक्रम लैंडर. (फोटो- इसरो)
7 सितंबर को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा विक्रम लैंडर. (फोटो- इसरो)

  • पैराशूट से नीचे आने को भी कहते हैं सॉफ्ट लैंडिंग
  • 7 सितंबर को विक्रम लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा

करीब 45 घंटे बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 7 सितंबर को चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारेगा. इसरो वैज्ञानिक इसे सॉफ्ट लैंडिंग कह रहे हैं. भारत पहली बार किसी उपग्रह पर अपने किसी यान की सॉफ्ट लैंडिंग कराने जा रहा है. अगर यह मिशन सफल हो जाता है तो वह दुनिया का पांचवां देश होगा जिसके पास यह तकनीक होगी. ये देश हैं - अमेरिका, रूस, यूरोप और चीन. साथ ही पहला देश होगा जो स्वदेशी तकनीक से सॉफ्ट लैंडिंग करेगा. आखिरकार यह सॉफ्ट लैंडिंग है क्या... इसे कैसे किया जाता है. इसमें क्या खतरा होता है. क्या सावधानियां रखनी पड़ती हैं. आइए जानते हैं सॉफ्ट लैंडिंग के बारे में...

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आपने देखा होगा कि जब कोई आदमी जहाज से कूदता है तो थोड़ी ऊंचाई के बाद वह पैराशूट खोलकर जमीन पर उतरता है. अगर वह पैराशूट न खोले तो वह गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव और अपने वजन की वजह से तेजी से जमीन पर टकरा सकता है. इससे उसे भारी नुकसान हो सकता है या उसकी मौत हो सकती है. लेकिन पैराशूट की वजह से वह सॉफ्ट लैंडिंग करता है.

ऐसा ही तब भी होता है जब हवाई जहाज किसी एयरपोर्ट पर लैंड करता है. विमान का पायलट पहले पिछले पहिए को रनवे पर लैंड कराता है, फिर अगले पहिए को. इससे प्लेन का वजन गति की दिशा में सही तरीके से नीचे आता है और लैंडिंग सेफ होती है. इसे भी सॉफ्ट लैंडिंग कहते हैं.

इसरो के पूर्व वैज्ञानिक विनोद कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि पैराशूट से कूदता आदमी और प्लेन की लैंडिंग सॉफ्ट लैंडिंग का उम्दा उदाहरण है. धरती पर गुरुत्वाकर्षण, गति और वजन की वजह से सेफ और सॉफ्ट लैंडिंग के लिए कई उपाय हैं. आसमान से कूदते आदमी का वजन और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को पैराशूट कम करता है. वहीं, प्लेन की लैंडिंग के समय उसके विंग्स का एक हिस्सा हवा को ऊपर की तरफ हो जाता है ताकि हवा के घर्षण से गति को कम कर सके.

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विनोद कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि चांद पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति धरती की अपेक्षा 1/6 कम है. यानी वहां गिरने की गति बढ़ जाएगी. वहां वायुमंडल नहीं है, इसलिए घर्षण से गति कम करने की कवायद भी नहीं कर सकते. यानी न तो पैराशूट का उपयोग कर सकते हैं न ही प्लेन की तरह लैंडिंग. विक्रम लैंडर चांद के चारों तरफ 2 किमी प्रति सेकंड की गति से घूम रहा है. यानी 7200 किमी प्रति घंटा. इस गति से वह चांद की सतह पर लैंड नहीं कर सकता. क्योंकि वहां इसके टकराने के इंपैक्ट को कम करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है.

विनोद कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि जब विक्रम लैंडर 35 किमी की ऊंचाई से चांद की सतह पर उतरना शुरू करेगा तब उसके नीचे लगे पांचों इंजन को ऑन किया जाएगा. जो इंजन अभी तक विक्रम लैंडर को आगे बढ़ाने का काम कर रहा थे, अब वहीं इंजन विपरीत दिशा में दबाव बनाकर विक्रम की गति को कम करके 2 मीटर प्रति सेकंड पर ले आएंगे. लैंडिंग से कुछ सेकंड पहले गति जीरो कर दी जाएगी. इससे विक्रम लैंडर अपने चारों पैरों के सहारे आराम से नीचे उतरेगा. ये सारा काम विक्रम में मौजूद ऑनबोर्ड कंप्यूटर करेगा. उसमें लगे सेंसर्स सही और समतल जगह की तलाश करेंगे, फिर विक्रम की लैंडिंग होगी.

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