आईपीसीसी ने आज स्वीकार किया कि 2035 तक हिमालयी ग्लेशियरों के पिघल जाने का उसका निष्कर्ष उचित पुष्टि पर आधारित नहीं था.
पर्यावरणविद् राजेंद्र पचौरी की अगुवाई वाली जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी समिति (आईपीसीसी) ने खेद जताते हुए कहा कि हिमालयी ग्लेशियर 2035 तक पूरी तरह पिघल जाने का निष्कर्ष निकालने के लिये उसने ‘सुस्थापित प्रक्रियाओं का खराब कार्यान्वयन किया.’ जिनिवा में जारी आईपीसीसी का वक्तव्य कहता है कि हाल ही में हमारे यह ध्यान में आया है कि द्वितीय कार्यकारी समूह के 938 पृष्ठीय आकलन के योगदान में एक पैराग्राफ में उल्लेखित हिमालयी ग्लेशियरों के पूरी तरह विलुप्त हो जाने की रफ्तार और तारीख संबंधी अनुमान ठीक तरह से पुष्टि कर नहीं दिया गया था.
वक्तव्य के मुताबिक, ‘‘आईपीसीसी के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सह अध्यक्षों को इस मामले में सुस्थापित प्रक्रियाओं का खराब कार्यान्वयन होने पर खेद है.’’ बहरहाल, आईपीसीसी अपने इस समग्र निष्कर्ष पर कायम है कि हिमालय और हिंदूकुश जैसे प्रमुख पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ी है.
इस बीच, ‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट’ :टेरी: के वरिष्ठ फैलो सैयद इकबाल हसनैन ने दावा किया कि उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि हिमालयी ग्लेशियर 2035 तक पूरी तरह पिघल जायेंगे.