महाराष्ट्र में मराठा समाज के आरक्षण की मांग के लिए जारी आंदोलन अब और जुनूनी होता जा रहा है. आंदोलन में जान देने की सिलसिला चल निकला है. सामने आया है कि राज्य के बीड जिले में एक और युवक ने आरक्षण की मांग करते हुए अपनी जान दे दी है. युवक आंदोलन के दौरान पानी की टंकी के ऊपर चढ़ गया और वहां से कूदकर खुदकुशी कर ली. बीड में अब तक तीन युवकों की आत्महत्या का मामला सामने आ चुका है, जिन्हें आरक्षण की मांग करते हुए अपनी जान दे दी है.
मनोज जरांगे ने फिर शुरू किया है आंदोलन
मराठा आरक्षण की मांग को लेकर चल रहे मनोज जारांगे पाटिल के आंदोलन के समर्थन में शत्रुघ्न शुक्रवार रात पानी की टंकी पर चढ़ गए. वहां शत्रुघ्न ने दो घंटे तक आरक्षण की मांग को लेकर नारेबाजी की और जारांगे पाटिल से बात करने की इच्छा भी जताई. इसके बाद उन्होंने जारांगे पाटिल से बात की. घटना की सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस ने शत्रुघ्न को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह अपनी मांग पर अड़े रहे. अंततः उन्होंने टंकी से कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. पुलिस आगे की जांच कर रही है और उसके बाद आधिकारिक जानकारी सामने आएगी.
मंगलवार को भी युवक ने की थी आत्महत्या
बता दें कि बीते मंगलवार को पहले भी बीड जिले से ऐसा ही मामला सामने आया था. जहां एक युवक ने मराठा आरक्षण के लिए आत्महत्या कर ली थी. इस घटना के बाद इलाके में हड़कंप मच गया. मृतक का नाम शरद अशोक मटे (21) था. मंगलवार दोपहर दो बजे उसने अपने घर के पास खेत में एक पेड़ से लटकर फांसी लगाकर अपनी जान दे दी थी. बताया जा रहा है कि राज्य में मराठा आरक्षण का मुद्दा उठा हुआ है और कई युवा खुदकुशी कर चुके हैं.
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता सुनील कावले ने की थी खुदकुशी
बता दें कि 19 अक्टूबर को मराठा आरक्षण कार्यकर्ता सुनील कावले का शव मुंबई के बांद्रा इलाके में एक फ्लाईओवर के किनारे लैंप पोस्ट से लटका हुआ पाया गया था. उन्होंने समुदाय के लिए आरक्षण की मांग करते हुए एक सुसाइड नोट छोड़ा था. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि उनकी सरकार मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे आत्महत्या जैसा कदम न उठाएं
32 साल पहले हुआ था मराठा आरक्षण आंदोलन
महाराष्ट्र में मराठा लंबे समय से सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग कर रहे हैं. करीब 32 साल पहले मराठा आरक्षण को लेकर पहली बार आंदोलन हुआ था. ये आंदोलन मठाड़ी लेबर यूनियन के नेता अन्नासाहब पाटिल की अगुवाई में हुआ था. उसके बाद से मराठा आरक्षण का मुद्दा यहां की राजनीति का हिस्सा बन गया. महाराष्ट्र में ज्यादातर समय मराठी मुख्यमंत्रियों ने ही सरकार चलाई है, लेकिन इसका कोई हल नहीं निकल सका.
2014 में ऐसे पलट गया गेम
2014 के चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठाओं को 16% आरक्षण देने के लिए अध्यादेश लेकर आए थे. लेकिन 2014 में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार चुनाव हार गई और बीजेपी-शिवसेना की सरकार में देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने. फडणवीस की सरकार में मराठा आरक्षण को लेकर एमजी गायकवाड़ की अध्यक्षता में पिछड़ा वर्ग आयोग बना.
इसकी सिफारिश के आधार पर फडणवीस सरकार ने सोशल एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लास एक्ट के विशेष प्रावधानों के तहत मराठाओं को आरक्षण दिया. फडणवीस की सरकार में मराठाओं को 16% का आरक्षण मिला. लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे कम करते हुए सरकारी नौकरियों में 13% और शैक्षणिक संस्थानों में 12% कर दिया. मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया.