एक महिला ने 29 सप्ताह में गर्भ को खत्म करने की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. मामले में सीजेआई ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए कानून के मुद्दों को उचित समय पर सुना जाएगा. तब तक हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता की एम्स में डॉक्टरों की एक टीम द्वारा जांच की जा सकती है.
कोर्ट ने कहा- हम एम्स के चिकित्सा निदेशक से अनुरोध करते हैं कि वह यह आकलन करने के लिए कल एक मेडिकल टीम का गठन करें कि क्या याचिकाकर्ता के जीवन और सुरक्षा को खतरे में डाले बिना गर्भपात हो सकता है. एम्स में मेडिकल टीम की रिपोर्ट की कॉपी सुप्रीम कोर्ट में रजिस्ट्रार को भेजी जाए. SC ने याचिकाकर्ता को आदेश की कॉपी के साथ कल एम्स पहुंचने का निर्देश दिया.
गौरतलब है कि बीते माह ही दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि गर्भपात के मामलों में अंतिम निर्णय में महिला की जन्म देने की इच्छा और अजन्मे बच्चे के गरिमापूर्ण जीवन की संभावना को मान्यता दी जानी चाहिए. एक 26 वर्षीय विवाहित महिला को 33 सप्ताह (लगभग 8 माह) की प्रेग्नेंसी के गर्भपात की अनुमति को लेकर जारी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये कहा. इस मामले में महिला ने भ्रूण में मस्तिष्क संबंधी असामान्यताओं के चलते अबॉर्शन की मांग की थी. न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि एक गर्भवती महिला के अबॉर्शन का अधिकार दुनिया भर में बहस का विषय रहा है. भारत अपने कानून में एक महिला की पसंद को मान्यता देता है.
न्यायाधीश ने महिला को प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति देते हुए कहा कि दुर्भाग्य से मेडिकल बोर्ड ने विकलांगता की डिग्री या जन्म के बाद भ्रूण के जीवन की गुणवत्ता पर कोई कैटेगोरियल राय नहीं दी है और कहा है कि " इस तरह की अनिश्चितता गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करने वाली महिला के पक्ष में होनी चाहिए.