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संसदीय समितियों में नियुक्ति के क्या हैं नियम? स्टाफ की नियुक्ति पर क्यों घिरे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

राज्यसभा सचिवालय की ओर से मंगलवार को एक आदेश जारी किया गया. इसमें समितियों में अधिकारियों की तत्काल प्रभाव से नियुक्ति का आदेश दिया गया. आदेश के मुताबिक, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के 8 निजी अधिकारियों को 20 संसदीय समितियों में नियुक्त किया गया. चार कर्मचारी उपराष्ट्रपति सचिवालय के अधीन, जबकि चार कर्मचारी राज्यसभा के सभापति के अधीन हैं.

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (फाइल फोटो)
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (फाइल फोटो)

उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के निजी स्टाफ से जुड़े 8 अधिकारियों को 12 स्थायी समितियों और आठ विभाग-संबंधी स्थायी समितियों में नियुक्त किया गया है. इसे लेकर वे विपक्ष के निशाने पर आ गए हैं. कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि संसदीय स्थायी समितियों में निजी कर्मचारियों की नियुक्ति कैसे कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि क्या यह संस्थाओं को नष्ट करने जैसा नहीं है. आईए जानते हैं कि आखिर ये पूरा मामला क्या है और संसदीय स्थायी समितियों में नियुक्ति का अधिकार किसे होता है?

क्या है पूरा मामला?

राज्यसभा सचिवालय की ओर से मंगलवार को एक आदेश जारी किया गया. इसमें समितियों में अधिकारियों की तत्काल प्रभाव से नियुक्ति का आदेश दिया गया. आदेश के मुताबिक, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के 8 निजी अधिकारियों को 20 संसदीय समितियों में नियुक्त किया गया. चार कर्मचारी उपराष्ट्रपति सचिवालय के अधीन, जबकि चार कर्मचारी राज्यसभा के सभापति के अधीन हैं. इन संसदीय समितियों की कार्यवाही गुप्त होती हैं. लेकिन उपराष्ट्रपति के निजी स्टाफ को संसदीय समितियों को हिस्सा बनाना एक तरह से इनके कामकाज में सीधे दखल के तौर पर देखा जा रहा है. 

किसकी कहां हुई नियुक्ति?

उपराष्ट्रपति के ओएसडी राजेश एन नायक को बिजनेस एडवाइजरी कमेटी, जनरल परपज कमेटी और गृह मंत्रालय से जुड़ी समिति के साथ जोड़ा गया. उपराष्ट्रपति के निजी सचिव सुजीत कुमार को राज्यसभा में सूचना और संचार तकनीक प्रबंधन की समिति, वाणिज्य समिति और विज्ञान और तकनीक, पर्यावरण वन एवं मौसम परिवर्तन मंत्रालय की समिति से जोड़ा गया.

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सभापति के ओएसडी अखिल चौधरी को ऐथिक्स, पेपर्स लेड ऑन टेबल तथा उद्योग मंत्रालय की समिति से जोड़ा गया. उपराष्ट्रपति के एपीएस संजय वर्मा को गवर्नमेंट एश्योरेंस से जोड़ा गया. उपराष्ट्रपति के ओएसडी अभ्युदय सिंह शेखावत को हाउस कमेटी, पिटिशन कमेटी और स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय की समिति से जोड़ा गया. सभापति के ओएसडी कौस्तुभ सुधाकर भालेकर को रूल्स कमेटी और यातायात, पर्यटन तथा संस्कृति मंत्रालय की समिति से जोड़ा गया. सभापति की निजी सचिव अदिति चौधरी को सबआर्डिनेट लेजीस्लेशन कमेटी के साथ जोड़ा गया. 

किसके पास नियुक्ति का अधिकार?

स्थायी समितियों में नियुक्ति का अधिकार राज्य सभा के सभापति और उपराष्ट्रपति के पास होता है. सामान्यत संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी संसदीय समितियों का काम देखता है और सीधे राज्य सभा के महासचिव को रिपोर्ट करता है. महासचिव संसदीय समितियों की कार्यवाही के बारे में राज्य सभा के सभापति और उपराष्ट्रपति को जानकारी देते हैं. संसदीय समिति के अध्यक्ष संसद के प्रति जवाबदेह हैं. 

नियुक्ति पर क्यों हो रहा बवाल?

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने आजतक से बातचीत में बताया कि राज्यसभा और लोकसभा की कुछ कमेटियां अलग अलग होती हैं. जबकि कुछ दोनों सदनों की संयुक्त कमेटियां होती हैं. इन कमेटियों में राज्यसभा सभापति सदस्यों की नियुक्ति करता है. इसके अलावा याचिका समिति, विशेषाधिकार समिति है, कुछ ऐसी महत्वपूर्ण कमेटियां हैं, जिनमें ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है जो इन मामलों के जानकार होते हैं. 

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अरविंद कुमार सिंह के मुताबिक, आश्वासन समिति जैसी कुछ कमेटियां ऐसी होती हैं, जो सरकार के कामकाज पर निगरानी रखती है. सदन ने सरकार में जो आश्वासन दिए हैं, वे पूरे हो रहे हैं, या नहीं हो रहे हैं. इसी तरह से अधीनस्थ कमेटी ये तय करती है, जो बिल पास हुआ, वो बिल की भावनाओं के अनुरूप हैं, या उनमें कुछ गड़बड़ी तो नहीं है. 

क्या काम करता है उपराष्ट्रपति का निजी स्टाफ 

अरविंद कुमार सिंह बताते हैं, ''निजी स्टाफ उपराष्ट्रपति से जुड़े सामान्य कामकाज के लिए तैनात किया जाता है. जैसे- उपराष्ट्रपति से लोगों को मिलाना, उनकी चिट्ठियों के जवाब देना, विदेश के दौरों में उन्हें सहयोग करना. ये लोग कमेटियों के वर्किंग को नहीं जानते. आमतौर पर सचिवालय में अलग अलग विभाग में काम करने वाले अधिकारियों को समितियों में तैनात किया जाता है. ये इन मामलों के जानकार होते हैं. अब तक इस तरह की नियुक्ति नहीं होती.'' 

'गोपनीयता को खतरा'

उन्होंने बताया कि ऐसे में माना जा रहा है कि निजी स्टाफ की नियुक्ति से इन कमेटियों की निगरानी की जा रही है. दरअसल, इन कमेटियों की रिपोर्ट के बारे में जब तक उपराष्ट्रपति को जानकारी नहीं होती, जब तक इनकी रिपोर्ट सदन में नहीं रखी जाती. यानी इन कमेटियों के कामकाज में उपराष्ट्रपति का दखल नहीं होता. अभी तक परंपरा और नियम ये रहे हैं कि सचिवालय के अधिकारियों की ही तैनाती इन कमेटियों में की जाती रही है. अब तक निजी स्टाफ की तैनाती नहीं होती थी. निजी स्टाफ की तैनाती से कमेटियों के कामकाज की गोपनीयता को खतरा है. 

 

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