राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट में पांचवें दिन की सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार राष्ट्रपति के संदर्भ में उठाए गए उन सवालों पर जोर देना चाहती है, जो यह तय करते हैं कि क्या किसी राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार के खिलाफ अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई रिट याचिका पर विचार किया जा सकता है. इससे पहले, बेंच ने इस मुद्दे पर जवाब देने से परहेज करने का प्रस्ताव दिया था.
तुषार मेहता ने तर्क दिया कि राज्य सरकारें ऐसी इकाइयां नहीं हैं, जिनके पास मौलिक अधिकार हों. इसलिए, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए लागू अनुच्छेद 32 राज्य सरकार द्वारा लागू नहीं किया जा सकता.
उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवादों का निपटारा संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत होना चाहिए. एसजी ने यह भी कहा कि राज्य सरकार यह दावा करके भी ऐसी रिट याचिका दायर नहीं कर सकती कि वह जनता के अधिकारों का संरक्षक है.
राज्यपाल के खिलाफ रिट याचिका पर बहस...
एसजी तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. उन्होंने कहा कि राज्यपाल के पद और कार्यों को देखते हुए उनके खिलाफ 'Writ of Mandamus' की मांग नहीं की जा सकती. इस पर चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने पूछा कि राज्यपाल को केंद्र सरकार का प्रतिनिधि क्यों नहीं माना जा सकता. उन्होंने कहा कि राज्यपाल राज्यों और केंद्र के बीच एक महत्वपूर्ण पुल का काम करते हैं.
राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका...
तुषार मेहता ने कहा कि गवर्नर राज्य सरकार के मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करते हैं. वे राष्ट्रपति के आज्ञापत्र पर नियुक्त होते हैं. उन्होंने कहा कि संवैधानिक योजना के मुताबिक, अनुच्छेद 154 कहता है कि राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होती है. एसजी ने कहा कि अनुच्छेद 131 के मकसद से वे भारत संघ के समान नहीं हैं, इसलिए राज्यपाल के साथ विवाद को भी अनुच्छेद 131 के तहत नहीं लाया जा सकता.
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आंध्र प्रदेश सरकार का रुख
आंध्र प्रदेश सरकार की पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि वे इस मुद्दे पर अपनी सरकार से निर्देश लेंगे, क्योंकि उनकी राज्य सरकार ने अनुच्छेद 32 के तहत कई याचिकाएं दायर कर रखी हैं, जो लंबित हैं. बेंच ने पहले ही उन राज्यों की दलीलें सुन ली हैं, जो इस संदर्भ का विरोध कर रहे हैं.