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प्रेजिडेंशियल रेफरेंस मामला: सुप्रीम कोर्ट की 5-जजों की बेंच ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया

सुप्रीम कोर्ट की 5-जजों की संविधान बेंच ने राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए विधेयकों की मंजूरी से जुड़े 14 रेफरेंस पर केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया. यह सुनवाई चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता में हो रही है. अगली सुनवाई अगस्त के मध्य में होगी, जिसमें तय होगा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति पर समयसीमा लागू की जा सकती है या नहीं.

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प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच सुनवाई करेगी. (File Photo)
प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच सुनवाई करेगी. (File Photo)

सुप्रीम कोर्ट की एक स्पेशल 5-जजों की संविधान बेंच ने सोमवार को विधायिका या संसद द्वारा पारित विधेयकों की मंजूरी से जुड़े राष्ट्रपति के 14 रेफरेंस पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है. CJI बीआर गवई ने कहा कि मामले की सुनवाई के लिए टाइमलाइन पर मंगलवार को विचार किया जाएगा. इसके बाद अगस्त के मध्य में इस मामले पर आगे की सुनवाई की जाएगी.

इस संविधान बेंच की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ही कर रहे हैं. उनके साथ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर भी इस स्पेशल बेंच में शामिल हैं. यह बेंच इसीलिए भी खास है क्योंकि इसमें सुप्रीम कोर्ट के तीन सबसे वरिष्ठ जज शामिल हैं और इनमें से चार भविष्य में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी बन सकते हैं. मसलन, जस्टिस सूर्यकांत नवंबर 2025 में, जस्टिस विक्रम नाथ फरवरी 2027 में, जस्टिस पीएस नरसिम्हा अक्टूबर 2027 में सीजेआई बन सकते हैं.

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प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर अगली सुनवाई अगस्त के मध्य में हो सकती है

मौजूदा चीफ जस्टिस गवई ने कहा कि इस केस की समयसीमा पर विचार मंगलवार को किया जाएगा. इसके बाद अगली सुनवाई अगस्त के मध्य में होगी. राष्ट्रपति का रेफरेंस उस समय आया था जब सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु राज्यपाल के फैसले को लेकर एक अहम फैसला दिया था. उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोके नहीं रख सकते (जिसे पॉकेट वीटो कहा जाता है).

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प्रेजिडेंशियल रेफरेंस का क्या है पूरा मामला?

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने साफ किया था कि राज्यपाल को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा. अगर राज्यपाल बिल को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को भी तीन महीने के अंदर फैसला देना होगा. कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर समयसीमा का उल्लंघन होता है, तो राज्य सरकार कोर्ट से रिट ऑफ मैनडेमस की मांग कर सकती है.

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तमिलनाडु सरकार की याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि जिन 10 विधेयकों को राज्यपाल ने एक साल से ज्यादा समय तक रोके रखा, उन्हें अब डीन असेंट (स्वीकृति) मिल चुकी है. अब सुप्रीम कोर्ट इसी मसले पर राष्ट्रपति द्वारा मांगे गए विचार पर सुनवाई कर रही है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति पर समयसीमा लागू की जा सकती है.

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