सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र से पूछा कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बीरबल सिंह की 1995 में हत्या के दोषी मृत्यु दंड प्राप्त बलवंत सिंह राजोआना को अब तक फांसी क्यों नहीं दी गई, जबकि केंद्र ने इसे 'गंभीर अपराध' बताया है. राजोआना पिछले 29 वर्षों से जेल में है, जिनमें से 15 साल उसने मृत्यु दंड की प्रतीक्षा में बिताए हैं. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ, संदीप मेहता और एन.वी. अंजारिया को एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने अपराध की गंभीरता के बारे में जानकारी दी.
बेंच ने नटराज से पूछा, 'अब तक फांसी क्यों नहीं दी गई? इसकी जिम्मेदारी किसकी है? कम से कम हमने इस पर रोक नहीं लगाई.' सुप्रीम कोर्ट में राजोआना की ओर से मृत्यु दंड को आजीवन कारावास में बदलने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई हो रही है. यह याचिका उसकी मर्सी पिटीशन पर देरी के आधार पर दायर की गई है.
'कोई नहीं जानता कि क्या चल रहा है?'
सीनियर वकील मुकुल रोहतगी, जो राजोआना की पैरवी कर रहे हैं, ने कहा कि उनके मुवक्किल की मर्सी पिटीशन पर अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ है. नटराज ने बताया कि वे निर्देश लेंगे और बेंच को स्थिति से अवगत कराएंगे. रोहतगी ने कहा, 'कोई नहीं जानता कि क्या चल रहा है. क्या राजोआना अलग जेल में है या मानसिक रूप से ठीक है, यह भी स्पष्ट नहीं है.' उन्होंने यह भी कहा कि यदि मृत्यु दंड को बदलना है, तो कम्यूटेशन (आजीवन कारावास) होना चाहिए, जिससे राजोआना बाहर आ सकता है.
रोहतगी ने यह भी कहा कि राजोआना भारतीय नागरिक है और यह मामला 'भारत-पाकिस्तान मुद्दा' नहीं है. उन्होंने बताया कि मर्सी पिटीशन स्वयं राजोआना ने नहीं दायर की थी, बल्कि इसे गुरुद्वारा कमेटी ने दायर किया था.
15 अक्टूबर को होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 15 अक्टूबर के लिए तय की और कहा कि इसे केंद्र के कहने पर स्थगित नहीं किया जाएगा. 20 जनवरी को शीर्ष अदालत ने केंद्र से राजोआना की मर्सी पिटीशन पर निर्णय लेने को कहा था. उस समय केंद्र ने मामले की संवेदनशीलता का हवाला देते हुए कहा था कि मर्सी पिटीशन पर विचार किया जा रहा है. पिछले साल 25 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने राजोआना की याचिका पर केंद्र, पंजाब सरकार और चंडीगढ़ प्रशासन से जवाब मांगा था.
31 अगस्त 1995 को हुई थी हत्या
बता दें कि 31 अगस्त 1995 को चंडीगढ़ में सिविल सचिवालय के प्रवेश द्वार पर हुए विस्फोट में पूर्व मुख्यमंत्री और 16 अन्य की हत्या कर दी गई थी. विशेष अदालत ने राजोआना को जुलाई 2007 में मृत्युदंड सुनाया था. राजोआना की ताजा याचिका में कहा गया है कि उसने 28.8 साल जेल में बिताए, जिनमें 15 साल मृत्युदंड की प्रतीक्षा में थे. मार्च 2012 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने उसकी तरफ से मर्सी पिटीशन दायर की थी.