श्रीराम चरित मानस हमारे जीवन का आधार है. गोस्वामी संत तुलसीदासजी ने इसे लिखते हुए ऐसी कई घटनाओं का वर्णन किया है, जो हमारी रोज की जिंदगी में आने वाली समस्याओं के निपटारे के लिए उदाहरण और प्रेरणा बन जाती हैं. यह कथा धर्म के उस ध्येय वाक्य को स्थापित करती है, जो 'सत्यमेव जयते' यानी कि 'सत्य की ही विजय होती है' की बात करता है. सत्य की विजय होती जरूर है, लेकिन यह इतना भी आसान नहीं है, इसे कठिन बनाते हैं हमारे क्षण भर के लोभ, मोह, काम-क्रोध जैसे अवगुण. श्रीराम के चरित्र की कथा इन्हीं विकारों पर विजय पाने का जरिया है.
त्रेतायुग में हुआ था श्रीराम का अवतार
कथा के अनुसार, त्रेतायुग में श्रीराम का जन्म हुआ. वह त्रिदेवों में से एक विष्णु के अवतार हैं. इस अवतार के लेने का क्या कारण रहा और ये अवतार क्यों हुआ, इसकी एक नहीं अनेक वजहें हैं. सीधे शब्दों में यह अवतार कई वरदानों और श्रापों का सुमेलित परिणाम है. किसी को भगवान ने वरदान दिया तो उसकी पूर्ति श्रीराम के जन्म से हुई और किसी को कर्मदंड से श्राप मिला तो उसकी परिणिति और उद्धार भी श्रीराम जन्म से हुआ. इसीलिए श्रीराम को तारक और पातक कहा गया है.
तुलसीदास ने मानस में बताईं हैे श्रीराम अवतार की वजहें
संत तुलसीदास ने मानस में उनके अवतार लेने की सभी वजहों का वर्णन किया है. इसी बात को उन्होंने शिवजी के मुंह से कहलवाया है. पार्वती को श्रीराम कथा सुनाते हुए शिवजी कहते हैं कि जब-जब धर्म की हानि होती है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं. वे कई तरह की अनीति करते हैं. ब्राह्मण, गो, देवता और पृथ्वी वासियों को कष्ट देते हैं, तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भांति-भांति के शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं. वे असुरों को मारकर सत्य को स्थापित करते हैं. वेदों की मर्यादा की रक्षा करते हैं. श्री रामचन्द्रजी के अवतार का यही कारण है. वह फिर कहते हैं कि राम जन्म के कई कारण हैं, और सब एक से एक विचित्र हैं. उनमें से एक-दो मैं तुम्हें सुनाता हूं.
तुलसीदास लिखते हैं.
असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।
जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥
सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं। कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं॥
राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका॥
जनम एक दुइ कहउँ बखानी। सावधान सुनु सुमति भवानी॥
द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। जय अरु बिजय जान सब कोऊ॥

जय-विजय को श्राप और विष्णुजी का उन्हें वरदान
यहां से संत तुलसीदास श्रीराम का जन्म किन श्रापों और वरदानों से हुआ, इसकी कथा लिखना शुरू करते हैं. वह पहले सतयुग में घटी बैकुंठ की घटना का वर्णन करते हैं. भगवान विष्णु के दो द्वारपाल थे. जय और विजय. उन्हें विष्णुलोक का द्वारपाल बनने का अभिमान हो गया था. एक बार सनकादिक ब्राह्मण विष्णुजी से मिलने बैकुंठ आए तो जय-विजय ने उन्हें मना कर दिया. बार-बार आग्रह-अनुरोध करने पर भी जय-विजय नहीं माने तो सनकादिक बाल ब्राह्मणों ने क्रोधित होकर उन्हें तीन जन्म के लिए राक्षस हो जाने का श्राप दे दिया.
तुलसीदास लिखते हैं...
बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई॥
कनककसिपु अरु हाटकलोचन। जगत बिदित सुरपति मद मोचन॥
बिजई समर बीर बिख्याता। धरि बराह बपु एक निपाता॥
होइ नरहरि दूसर पुनि मारा। जन प्रहलाद सुजस बिस्तारा॥
भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान।
कुंभकरन रावन सुभट सुर बिजई जग जान॥
ये दोनों पहले जन्म में हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष बने. तब भगवान ने नरसिंह और वाराह अवतार लेकर उनका उद्धार किया. अब इस जन्म में यही दोनों भाई रावण और कुंभकर्ण बनकर जन्मे हैं. भगवान विष्णु उन्हें अब दूसरे जन्म के श्राप से मुक्त करने के लिए रामअवतार में आएंगे, यही विधि का लेख है. खुद श्रीहरि ने उन्हें वरदान दिया कि मेरे ही हाथों तुम दोनों का उद्धार होगा. इसी वरदान के कारण श्रीराम का जन्म हुआ.

ऋषि-कश्यप और अदिति को वरदान
इसके बाद श्रीराम रूप में अवतार लेने की एक वजह प्रभु का खुद का वरदान है. ऋषि कश्यप और अदिति ने एक बार कठोर तप करके भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया और वरदान में हर बार उन्हें ही पुत्र रूप में पाने की इच्छा प्रकट की. प्रभु ने उनको भी उनका मांगा वरदान दिया और दशरथ-कौशल्या के रूप में उन्हीं कश्यप और अदिति का अंश है, जो कि श्रीरामजी के इस जन्म में माता-पिता हैं. ठीक ऐसा ही वरदान प्रभु ने एक बार स्वयंभू मनु और उनकी पत्नी सती शतरूपा को भी दिया था. उन दोनों ने भी एक बार हजार वर्षों की कठिन तपस्या करके उनसे हरिविष्णु जैसा पुत्र मांगा था, तब प्रभु ने कहा था कि मेरे जैसा और कौन, मैं ही आपकी गोद में पुत्र बनकर खेलूंगा. वही मनु, रघुवंश में जन्म लेकर दशरथ हुए और शतरूपा उनकी पत्नी कौशल्या हैं.
कस्यप अदिति तहाँ पितु माता। दसरथ कौसल्या बिख्याता॥
एक कलप एहि बिधि अवतारा। चरित पवित्र किए संसारा॥
स्वायंभू मनु अरु सतरूपा। जिन्ह तें भै नरसृष्टि अनूपा॥
दंपति धरम आचरन नीका। अजहुँ गाव श्रुति जिन्ह कै लीका॥
दानि सिरोमनि कृपानिधि नाथ कहउँ सतिभाउ।
चाहउँ तुम्हहि समान सुत प्रभु सन कवन दुराउ॥
सोइ सुख सोइ गति सोइ भगति सोइ निज चरन सनेहु।
सोइ बिबेक सोइ रहनि प्रभु हमहि कृपा करि देहु॥
तहँ करि भोग बिसाल तात गएँ कछु काल पुनि।
होइहहु अवध भुआल तब मैं होब तुम्हार सुत॥
मनु-शतरूपा को भगवान का वरदान
इस तरह भगवान विष्णु ने कश्यप-अदिति को वरदान दिया, मनु-शतरूपा को वरदान दिया और उनके वरदान की पूर्ति के लिए पुत्र रूप में जन्म लिया और श्रीराम के नाम से कीर्तिवान हुए. जिस तरह उन्होंने अपने भक्तों के वरदान को सराहा, इसी तरह सारे संसार के लिए कृपानिधान ने राम रूप में जन्म लिया. उनके जन्म की एक और बड़ी वजह है. ऐसा कहकर शिवजी पार्वतीजी को एक और कथा सुनाने लगे. शिवजी ने कहा, जब पृथ्वी पर बहुत तरह के अधर्म होने लगे और वह अनिति-अत्याचारों के बोझ से दबने लगी तो एक दिन उसने एक निरीह गाय का रूप धरा और छिपते-छिपाते देवताओं के लोक पहुंची.
गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही। जस मोहि गरुअ एक परद्रोही।
सकल धर्म देखइ बिपरीता। कहि न सकइ रावन भय भीता॥
धेनु रूप धरि हृदयँ बिचारी। गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी॥
निज संताप सुनाएसि रोई। काहू तें कछु काज न होई॥
गाय, पृथ्वी और देवताओं को भगवान का वचन और वरदान
शिवजी कहते हैं कि देवताओं के पास रोकर उसने अपना दुख कहा, लेकिन देवता खुद निरीह थे. इसलिए सब मिलकर ब्रह्म देव के पास गए, लेकिन ब्रह्म देव भी कुछ नहीं कर सकते थे, क्योंकि उन्होंने ही रावण को ऐसा भीषण वरदान दिया था ताकि देवता उसका कुछ न बिगाड़ पाएं. तब सभी मिलकर भगवान विष्णु के पास क्षीरसागर गए और कई तरह से उनकी वंदना की. पृथ्वी ने करुण पुकार की. तब श्रीहरि ने आंखें खोलीं और उन्होंने सबकी बात सुनीं. फिर उन्होंने सभी की रक्षा के लिए अपना प्रण दुहराया और कहा कि, आप सभी की रक्षा के लिए मैं मनुष्य रूप में जन्म लूंगा.

रावण को ब्रह्माजी का वरदान
रावण ने ऐसा ही वरदान ब्रह्मा जी से मांगा है. कश्यप-अदिति को जो मैंने उनके पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था, उसे भी पूरा करना है. वे दशरथ-कौशल्या हैं, उनके ही घर जन्म लूंगा. नारद मुनि के वचन को भी सत्य करना है. इसलिए मैं नर अवतार लेने जा रहा हूं.
जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥
अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥
कस्यप अदिति महातप कीन्हा। तिन्ह कहुँ मैं पूरब बर दीन्हा॥
ते दसरथ कौसल्या रूपा। कोसलपुरीं प्रगट नर भूपा॥
शिवजी ने पार्वतीजी को सुनाई सभी वरदानों की कथा
इसतरह शिवजी ने पार्वती जी को उन सभी वरदानों की कथा सुनाई, जिनके कारण श्रीरामजी का जन्म हुआ. अलग-अलग समय पर अलग-अलग लोगों को दिए वरदान ही श्रीहरि के राम अवतार का कारण बने. संत तुलसीदास ने ये सारी कथाएं चौपाइयों के बीच बड़ी ही कुशलता से पिरोकर प्रस्तुत की हैं.