शरजील इमाम ने UAPA के मामले में जमानत देने से इनकार करने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उमर खालिद और शरजील इमाम सहित नौ आरोपियों पर फरवरी 2020 के दंगों के कथित ‘मास्टरमाइंड’ होने के आरोप में यूएपीए और तत्कालीन भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. यह हिंसा नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी. शरजील इमाम, खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाएं 2022 से उच्च न्यायालय में लंबित थी और समय-समय पर विभिन्न पीठों ने इन पर सुनवाई की है.
क्या बोले कपिल सिब्बल?
दिल्ली में 2020 में हुए दंगों के आरोपी उमर खालिद और अन्य मुलजिमान को जमानत पर रिहाई न मिलने पर उनके वकील सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. उन्होंने कहा कि मैं ये मामला नहीं सुनूंगा. वैसे भी जो भी वहां गया है, उसे पता है कि जज उनकी बात सुन ही नहीं रहे हैं. इस मामले में कई बार सुनवाई टली है. पिछले महीनों जुलाई 2025 में- एक बार एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड को स्वास्थ्य कारणों से स्थगन चाहिए था. मैंने केवल 2 बार स्थगन मांगा है. लेकिन आरोप लगाए जा रहे हैं कि मैंने 7 बार स्थगन मांगा. UAPA को असंवैधानिक घोषित करने के लिए भी एक रिट याचिका दायर की गई थी. उमर खालिद को जमानत न मिलने के लिए सिर्फ वकील को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. ये उचित नहीं है.
'जमानत न देना संविधान के अनुच्छेद 21 के खिलाफ'
उन्होंने कहा कि अगर आप जमानत नहीं देना चाहते, तो मामले को खारिज कर दीजिए. जमानत पर रिहाई का आदेश न देने का क्या मतलब है? यह संविधान के अनुच्छेद 21 के खिलाफ है. ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि देश में ऐसे ही आरोप में गिरफ्तार अन्य लोगों को समय से ही जमानत पर रिहाई के आदेश उन्हीं अदालतों ने दिए थे. उमर खालिद ने मुंबई के भिवंडी में भाषण दिया था. वह तो वहां मौजूद भी नहीं थे जब उत्तर-पूर्व दिल्ली दंगे हुए.
'जिंदगी उम्मीद पर कायम है'
कपिल सिब्बल ने ऐसे कई मामलों की सूची भी सार्वजनिक की जो UAPA के तहत दर्ज हुए और उनमें आरोपियों को जमानत भी मिली. उन मामलों में तो आरोप भी तय किए जा चुके थे. जज कह रहे हैं कि जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि मेरा विश्वास है कि ट्रायल में सब बेकसूर साबित होंगे और सभी बरी होकर बाहर आ जाएंगे. जिंदगी उम्मीद पर कायम है.
'डर के चलते चुप हैं राजनीतिक दल'
सिब्बल ने कहा कि सरकार के जिन मंत्रियों ने घृणा और वैमनस्य फैलाने वाले भाषण दिए उन पर तो कोई मामला ही नहीं दर्ज किया गया. देख लीजिए यही है हमारी न्यायपालिका और सरकार की स्थिति. राजनीतिक दल भी चुप हैं. वे डरते हैं कि अगर शरजील और उमर मामले पर न्याय की आवाज उठाई तो उनके वोटबैंक से उन्हें विरोध मिलेगा.
उन्होंने कहा कि अगर कोई भारतीय देश की संप्रभुता को बनाए नहीं रखता, तो हम देश के साथ खड़े रहेंगे. लेकिन अगर निर्दोषों के साथ ऐसा किया जाएगा तो हम निर्दोषों के साथ खड़े होंगे. दिल्ली पुलिस के पास उत्तर-पूर्व दंगों की सारी वीडियोग्राफी मौजूद है. हम मांग कर रहे हैं कि सारी वीडियोग्राफी कोर्ट में लाई जाए. लेकिन अभियोजन एजेंसी कोर्ट को यह दिखाना ही नहीं चाहती.