
उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित शाही जामा मस्जिद इन दिनों एक बार फिर चर्चाओं में है. इस बार इसकी वजह एएसआई द्वारा भेजा गया एक नया साइनबोर्ड है, जिसमें मस्जिद का नाम "जुमा मस्जिद" लिखा गया है, जो अब तक "शाही जामा मस्जिद" के नाम से मशहूर है. अब मस्जिद का तीसरा नाम "जामी मस्जिद" के रूप में उभरकर सामने आया है और - मस्जिद के असली नाम पर बहस छिड़ गई है.
एएसआई के वकील विष्णु शर्मा की मानें तो, "मस्जिद के बाहर पहले भी एएसआई का एक बोर्ड लगा हुआ था, जिसे कुछ लोगों ने हटा दिया और उसकी जगह एक नया बोर्ड लगाकर, इसे शाही जामा मस्जिद का नाम दिया." उनका कहना है, "नया बोर्ड एएसआई दस्तावेजों के मुताबिक जारी किया गया है, जिसमें इसे जुमा मस्जिद के रूप में लिस्ट किया गया है."
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वकील विष्णु शर्मा ने बताया कि इसी तरह का एक और एएसआई का नीला बोर्ड मस्जिद परिसर के भीतर पहले से मौजूद है, जिसमें यही (जुमा मस्जिद) नाम लिखा हुआ है. मस्जिद के नाम के इस अंतर्विरोध ने लोगों को इसके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और इसके सही नाम पर बहस के लिए मजबूर कर दिया है.

आर्कियोलॉजिस्ट ने बताया "जामी मस्जिद"
आर्कियोलॉजिस्ट ए.सी.एल. कार्लाइल ने अपनी किताब "रिपोर्ट ऑफ टूर्स इन द सेंट्रल दोआब एंड गोरखपुर इन 1874-75 एंड 1875-76" में इस इमारत को 'जामी मस्जिद' के रूप में लिखा है. मसलन, उन्होंने अपनी किताब में इस मस्जिद को "जामी मस्जिद" बताया है, और माना जा रहा है कि एएसआई द्वारा नाम में करेक्शन के बाद इसे मस्जिद के बाहर स्थापित किया जाएगा.
आर्कियोलॉजिस्ट कार्लाइल ने अपनी किताब में संभल चैप्टर में लिखा है, "संभल का मुख्य भवन जामी मस्जिद है, जिसे हिन्दू हरी मंदिर के रूप में दावा करते हैं." इनके अलावा उन्होंने मस्जिद के बारे में और भी कुछ जानकारियां दी हैं, और बताया है कि हिंदू समुदाय किस तरह से इस पर दावा करते हैं.

संभल का इतिहास भी जान लीजिए...
कार्लाइल की किताब संभल शहर की भी चर्चा करती है, जिसमें कहा गया है, "संभल का पुराना शहर महिषमत नदी पर स्थित है, जो रोहिलखंड के दिल में है. सत्ययुग में इसका नाम सबिरी या सब्रत था और इसे संभलवेश्वर के नाम से भी जाना जाता था. त्रेतायुग में इसे महादगिरी कहा गया और द्वापर में पिंगला. कलियुग में इसे संभल या संस्कृत में संभलग्राम कहा गया."
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करेक्शन के बाद नए बोर्ड को किया जाएगा स्थापित
सभी तर्कों और विवादों के बीच, यह स्पष्ट करना अहम है कि मस्जिद का नाम बदलने या इसके विभिन्न रूपों को अपनाने का मकसद क्या है. एएसआई को यह भी स्पष्ट करने की जरूरत है - जिसके वकील दावा कर चुके हैं कि मस्जिद का एक साइबोर्ड पहले से ही मस्जिद परिसर में है जिसमें "जुमा मस्जिद" लिखा है - तो फिर नए बोर्ड में किस आधार पर "जुमा मस्जिद" लिखा गया है. एएसआई की तरफ से बयान आया है कि नए बोर्ड में करेक्शन के बाद इसे मस्जिद के बाहर स्थापित किया जाएगा लेकिन गलती के बारे में स्पष्ट नहीं किया गया है. अब देखने वाली बात होगी कि एएसआई की तरफ से क्या करेक्शन होते हैं, और विभाग किस नाम को फाइनल मानकर मुहर लगाता है.