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हिंदू राष्ट्र का अर्थ, विश्व गुरु का कॉन्सेप्ट... संघ के सौ वर्ष पूरे होने पर मोहन भागवत ने बताया आगे का प्लान

सरसंघचालक मोहन भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ साल पूरे होने पर आगे का प्लान बताया. उन्होंने हिंदू राष्ट्र का अर्थ बताने के साथ ही विश्व गुरु का कॉन्सेप्ट भी बताया.

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मोहन भागवत ने संगठित समाज पर दिया जोर (Photo: PTI)
मोहन भागवत ने संगठित समाज पर दिया जोर (Photo: PTI)

सरसंघचालक मोहन भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ साल पूरे होने पर मंगलवार के दिन आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया. मोहन भागवत ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आजादी के आंदोलन में संघ की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला और हिंदू राष्ट्र, विश्व गुरु का अर्थ भी समझाया. उन्होंने संघ की आगे की योजना भी बताई. सरसंघचालक ने कहा कि संघ चलाना है, सिर्फ ऐसा नहीं है. संघ चलाने का एक उद्देश्य है. अपना देश है, उसकी जय-जयकार होनी चाहिए.

मोहन भागवत ने कहा कि भारत को विश्व में अग्रणी स्थान मिलना चाहिए. विश्व बहुत पास आ गया है और अभी ग्लोबल बात होती है. उन्होंने कहा कि पूरे विश्व का जीवन एक है, मानवता एक है, फिर भी वह एक जैसा नहीं है. उसके अलग-अलग रंग-रूप है, जिसके कारण दुनिया की सुंदरता बढ़ी है. हर रंग का अपना योगदान है.

बताया संघ का आगे का प्लान

सरसंघचालक ने स्वामी विवेकानंद को कोट करते हुए कहा कि हर देश का एक मिशन है. विश्व में हर देश का कुछ योगदान है. भारत का भी अपना एक योगदान है. उन्होंने कहा कि किसी देश को बड़ा होना है, अपने बड़प्पन के लिए नहीं होना है. इससे विश्व के जीवन में एक नई गति पैदा होती है, जो जरूरी है और उसका वैसा योगदान होता है. मोहन भागवत ने कहा कि संघ के चलने का प्रायोजन भारत है. संघ की सार्थकता भारत के विश्व गुरु बनने में है और उसका समय आ गया है.

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उन्होंने कहा कि कहा कि कोई भी परिवर्तन पूरे समाज के प्रयास से आता है. आज हम अपने देश को बड़ा करना चाह रहे हैं. सरसंघचालक ने कहा कि नेता, नीति, पार्टी, विचार, संगठन, सत्ता... इन सबकी भूमिका इसमें असिस्टेंस की है, लेकिन समाज की गुणात्मक उन्नति के बिना यह नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि जो मुद्दे हैं, शायद उनका समाधान हो जाएगा. लेकिन वह फिर से नहीं खड़े होंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है. कुछ ऐसे दोष हैं, जिनको निकालना चाहिए और ये काम किसी को करना पड़ेगा.

वंदे मातरम आंदोलन का किया जिक्र

मोहन भागवत ने आजादी के आंदोलन में संघ की भूमिका की भी विस्तार से चर्चा की और संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार को जन्मजात देशभक्त बताया. उन्होंने कहा कि बचपन से उनके मन में यह था कि देश के लिए जीना चाहिए, देश के लिए मरना चाहिए. मोहन भागवत ने कहा कि डॉक्टर हेडगेवार ने वंदे मातरम आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और नागपुर के विद्यालयों में जब भी इंस्पेक्टर निरीक्षण करने आते, उनका स्वागत क्लास में वंदे मातरम से होता था.

यह भी पढ़ें: 'डॉ. हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे...', मोहन भागवत ने बताया RSS संस्थापक का आजादी में योगदान

उन्होंने कहा कि माफी की बात आई तो नागपुर के दो छात्रों ने माफी मांगने से भी इनकार कर दिया और ये तर्क दिया कि वंदे मातरम कहना हमारा अधिकार है. हम सपने में भी उसे ना नहीं कर सकते. हम माफी कैसे मांगेंगे? मोहन भागवत ने कहा कि दोनों स्कूल से निकाल दिए गए और राष्ट्रीय विद्यालय से आगे की पढ़ाई की.

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समझाया हिंदू राष्ट्र का अर्थ

सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने संबोधन में हिंदू राष्ट्र का अर्थ भी समझाया. उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र का सत्ता से कोई मतलब नहीं. उसमें पंथ, संप्रदाय, भाषा कुछ भी नहीं, प्रजा में कोई भेद नहीं और न्याय सबके लिए समान है. मोहन भागवत ने कहा कि जब हम हिंदू एक्टर कहते हैं, तो ऐसा नहीं है कि किसी को छोड़ रहे हैं. किसी का विरोध करते हैं, ऐसा भी नहीं है. उन्होंने कहा कि संघ किसी विरोध में नहीं निकला है. हर कोई अपने आप को तंदुरुस्त रखने के लिए व्यायाम करता है. कभी मारपीट होती है, तो यह काम आता है लेकिन व्यायाम के पीछे इरादा किसी को पीटने का नहीं होता.

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उन्होंने यह भी कहा कि संगठित होना समाज की स्वाभाविक अवस्था है. बिना उसके कोई काम सफल नहीं होता है. मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू राष्ट्र बिल्कुल मान्य नहीं था. अच्छे-अच्छे हिंदू लोग कहते थे कि हिंदू तो अब मरने जा रहा है, छोड़ो. उन्होंने यह भी कहा कि संघ को स्वयंसेवक चलाएंगे. हम सभी मामलों में स्वावलंबी हैं, परावलंबी नहीं. हमने अपने कार्यकर्ता खुद बनाए और बना रहे हैं. कार्यकर्ता बनते हैं, शाखाएं चलाते हैं. इस संघ को हमें आगे लेकर जाना है.

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