आज ही के दिन 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में एक चुनावी रैली के दौरान आत्मघाती हमला करके पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी. हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे एजी पेरारिवलन (AG Perarivalan) को सुप्रीम कोर्ट ने रिहा करने का आदेश जारी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बम ब्लास्ट में जान गंवाने वालों के परिजनों के बीच भारी निराशा है.
अब्बास ने अपनी मां को खो दिया
बम ब्लास्ट में अपनी मां को खो चुके एस अब्बास कहते हैं कि 21 मई उनके लिए काला दिन है. 1991 में अब्बास सिर्फ 10 साल के थे, जब उन्होंने अपनी मां एस समधानी बेगम को उस विस्फोट में खो दिया था. उनकी मां समाधानी बेगम एक विधवा और दक्षिण महिला कांग्रेस की नेता थीं, जो उस दिन राजीव गांधी के बहुत करीब खड़ी थीं.
अब्बास कहते हैं, 31 साल बीत गए लेकिन जख्म अभी भी हरा है. मेरे पिता की 1988 में मृत्यु हो गई थी और फिर 1991 में मेरी मां की मृत्यु हो गई थी. कल्पना कीजिए कि एक 10 साल के बच्चे की मुश्किलें कितनी बड़ी होंगी जब उसने बहुत कम उम्र में अपने माता-पिता को खो दिया था. उन्होंने कहा, मैंने अपने जीवन में सब कुछ खो दिया.
अब्बास ने कहा, 21 मई मेरे लिए काला दिन है. इस दिन मैंने अपनी मां को खोया और अब दोषी एजी पेरारिवलन को रिहा किया जा रहा है. उन्होंने कहा, यह कैसा न्याय है. वह मामले में एक दोषी है और हम पीड़ित हैं. आप क्या मानवीय आधार देख रहे हैं? 31 साल हो गए हैं, उन्हें रिहा किया जा रहा है, लेकिन क्या वे मेरी मां को वापस कर पाएंगे?
जोसेफ के बड़े भाई की मौत
इस ब्लास्ट के एक और पीड़ित 67 वर्षीय जॉन जोसेफ ने अपने बड़े भाई एडवर्ड जोसेफ को खो दिया. जोसेफ कहते हैं एडवर्ड जोसेफ विशेष शाखा सीआईडी निरीक्षक थे, जब राजीव गांधी का श्रीपेरंबदूर का दौरा था तब उन्हें पूर्व पीएम की सुरक्षा के लिए रखा गया था. एडवर्ड को राजीव गांधी की आखिरी तस्वीरों में भी देखा जा सकता है.
उन्होंने कहा, मेरा भाई सिर्फ 39 साल का था, उसकी मृत्यु ने मेरे पूरे परिवार को अंधेरे में छोड़ दिया. मेरी मां को दिल की समस्या हो गई और दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई. मेरी भाभी एक छोटे बच्चे के साथ कम उम्र में विधवा हो गई थी. मैं ही था जिसने मेरे भाई की हत्या के बाद उसकी पहचान की. मैंने न्याय के लिए हर संभव दरवाजा खटखटाया है. लेकिन पेरारिवलन की रिहाई हम सभी के लिए बहुत बड़ा अन्याय है.
उन्होंने कहा, पेरारिवलन को मौत की सजा दी गई थी, लेकिन बाद में इसे उम्रकैद की सजा में बदल दिया गया था और उम्रकैद की सजा का मतलब जेल में मौत तक रहना था. लेकिन अब उसे रिहा किया जा रहा है. हो सकता है कि कानून की अदालत में वह बाहर आ गए हों लेकिन भगवान की अदालत में वह भुगतान करेंगे इसकी कीमत उन्हें चुकानी होगी.
कई के जख्म अब भी हरे
मालूम हो कि बम ब्लास्ट में कई परिवारों के चिराग बुझ गए. अनुसूया डेज़ी विस्फोट के घावों से अब तक उबर नहीं पाई हैं. विस्फोट में अनुसूया की दो उंगलियां चली गईं और उनकी आंखों और जांघों में छर्रे लग गए. अनुसूया तब उन महिलाओं को नियंत्रित कर रही थीं जो चुनाव प्रचार के लिए श्रीपेरंबदूर में राजीव गांधी को माला पहना रही थीं और उन्हें शॉल ओढ़ा रही थीं.
राजीव गांधी की सुरक्षा में थीं खड़ीं
अनुसूया याद करती हैं, मैं कुछ महिलाओं को पीछे धकेल रही थी, जो वीआईपी के करीब आने की कोशिश कर रही थीं. लेकिन मुझे पीछे धकेला गया, मेरे कंधे पर थपथपाया और कहा गया कि आराम करो. मैं उनकी तरफ देखकर मुस्कुराई. लेकिन उसके कुछ ही सेकंड बाद धमाका हो गया. अनुसूया तीन महीने तक अस्पताल में रही और उन्हें कई सर्जरी करानी पड़ी.
अनुसूया गर्व से कहती हैं, 'मैं इस मामले में एक चश्मदीद गवाह थी. मैंने नलिनी और अन्य की पहचान करने में मदद की. मुझे तत्कालीन एसआईटी अधिकारी कार्तिकेयन ने जांच में मेरे योगदान के लिए 1 लाख रुपये का इनाम दिया था. लेकिन पेरारिवलन की रिहाई से वो निराश हो जाती हैं. वे कहती हैं, अगर दोषियों को रिहा किया जाता है तो वे एक बुरा उदाहरण स्थापित करेंगे.
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