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'पुलिस स्टेशन की वीडियोग्राफी जासूसी नहीं', जानें बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्यों की ये टिप्पणी

बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने पुलिस स्टेशन में वीडियो शूटिंग को जासूसी बताने के आरोप को खारिज करते हुए कहा कि यह ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट की धारा 3 के अंतर्गत नहीं आता. कोर्ट ने इस मामले में संबंधित पुलिस कांस्टेबल को राहत दी लेकिन अन्य आरोपों को बरकरार रखा है.

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कोर्ट (सांकेतिक तस्वीर)
कोर्ट (सांकेतिक तस्वीर)

हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि पुलिस स्टेशन में वीडियो शूटिंग जासूसी की कैटगरी में नहीं आती. यह फैसला जस्टिस विभा कंकनवाडी और एसजी चपलगांवकर की बेंच ने सुनाया. इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने मुंबई के कांस्टेबल संतोष अथारे के खिलाफ लगाए गए ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के आरोप को खारिज कर दिया.

मामला अहमदनगर (अब अहिल्यानगर) के पठारडी के पुलिस स्टेशन से जुड़ा है. यहां कांस्टेबल संतोष अथारे और उनके भाई सुभाष के खिलाफ गुप्त जानकारी को उजागर करने का आरोप लगाया गया था. अदालत ने पाया कि पुलिस स्टेशन को 'प्रतिबंधित स्थान' की श्रेणी में नहीं रखा गया है और वीडियोग्राफी पर लगाए गए आरोप भ्रामक हैं.

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एफआईआर में लगी अन्य धाराएं नहीं हटाई गई

इस फैसले के बावजूद अदालत ने एफआईआर में दर्ज अन्य धाराओं जैसे कि भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) और धारा 506 (आपराधिक धमकी) को खारिज करने से इंकार कर दिया. अदालत ने एफआईआर की मूल बातों की जांच का अधिकार संबंधित अदालत को दिया है.

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अप्रैल 2022 का है मामला

कांस्टेबल अथारे के खिलाफ मामला तब दर्ज हुआ जब उन्होंने आरोप लगाया था कि अप्रैल 2022 में तीन लोगों ने उनके घर में घुसपैठ की और उनकी मां के साथ दुर्व्यवहार किया. पुलिस ने सिर्फ एक गैर-संज्ञेय अपराध दर्ज किया, जिससे नाराजगी जताते हुए सुभाष ने जांच अधिकारी से सवाल किए थे. इसके बाद उन्हें धमकियां मिलने लगीं.

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कोर्ट ने आरोपों को बताया बेबुनियाद

सुभाष ने इन धमकियों की रिकॉर्डिंग करके पुलिस महानिदेशक को इसकी शिकायत की थी. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, पुलिस ने सुभाष और संतोष के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. इस पूरे मामले पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुलिस स्टेशन में वीडियो रिकॉर्डिंग करना जासूसी नहीं है और इस आधार पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं.

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