पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (PMC) बैंक और एक रियल एस्टेट कंपनी के बीच सामने आए एक बड़े मामले में चौकाने वाला घोटाला सामने आया है. एक फॉरेंसिक ऑडिट में पता चला है कि बैंक ने कागज़ों पर तो 87.5 करोड़ रुपये का लोन मंज़ूर किया, लेकिन असल में एक रुपये की भी रकम कंपनी को नहीं दी गई.
यह लोन ‘पृथ्वी रियल्टर्स एंड होटल्स प्राइवेट लिमिटेड’ नाम की कंपनी को दिया गया था. ऑडिट रिपोर्ट में बताया गया कि पैसा कभी ट्रांसफर ही नहीं किया गया, फिर भी बैंक कई साल तक इस लोन पर ब्याज जोड़ता रहा. नतीजा यह हुआ कि बिना पैसे के ही लोन की रकम 150 करोड़ रुपये से ज़्यादा दिखने लगी.
यह ऑडिट दीपक सिंघानिया एंड एसोसिएट्स नाम की एक चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म ने किया है. जांच में पाया गया कि अक्टूबर 2012 के बाद से न तो किसी अकाउंट से पैसे निकले और न ही कंपनी को कोई रकम मिली.
'पेमेंट का कोई रिकॉर्ड नहीं...'
शुरुआत में कंपनी को 10 करोड़ का लोन मंज़ूर किया गया था, जिसे बाद में बढ़ाकर 87.5 करोड़ किया गया. इसके बदले कंपनी ने ठाणे के वसई में 53,680 वर्गमीटर की ज़मीन गिरवी रखी थी. लेकिन लोन मंज़ूर होने के बाद कोई भी ट्रांज़ैक्शन नहीं हुआ.
ऑडिट रिपोर्ट में साफ लिखा है, “कोई रकम ट्रांसफर नहीं हुई, न कोई पेमेंट हुआ, न रीपेमेंट का कोई रिकॉर्ड है.”
इस मामले की सुनवाई कर रहे एक मध्यस्थ ट्रिब्यूनल (Arbitration Panel) ने भी इसे जानबूझकर किया गया धोखा बताया. जांच में फर्जी दस्तावेज, पहचान की नकल और जानबूझकर गुमराह करने की बातें सामने आईं. ट्रिब्यूनल ने माना कि यह एक गंभीर स्तर की धोखाधड़ी है, और यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है.
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अब यह मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के पास पहुंच चुका है. यहां यह तय किया जाएगा कि जब कोई लोन असल में दिया ही नहीं गया, तो उसे वसूलने का अधिकार कैसे बनता है.
कानूनी जानकारों का कहना है कि यह मामला भारत में एक उदाहरण बन सकता है, जिसमें दिखाया जाएगा कि कैसे कागज़ों पर बनाए गए नकली लोन से लोगों पर बोझ डाला जाता है, जबकि असल में उन्हें पैसा कभी दिया ही नहीं गया.
ऑडिट रिपोर्ट से यह सामने आया है कि बैंकिंग सिस्टम में एक ऐसा खतरनाक लूपहोल है, जहां सिर्फ कागज़ों पर लोन होता है, लेकिन ब्याज और वसूली असली होती है. अगर ऐसे मामले रोके नहीं गए, तो यह बैंकिंग सिस्टम पूरी तरह से तबाह हो सकता है.