
26 साल की निक्की भाटी की बेरहमी से दहेज के लिए हुई हत्या चौंकाने वाली है. सोशल मीडिया में तैरते उसके छह साल के मासूम बेटे का वीडियो शरीर में झुरझुरी पैदा करने वाला है. जिसमें वो बता रहा है कि मेरी आंखों के सामने मेरी मां को पिता ने जला दिया. घटना भीतर तक तोड़ने वाली है लेकिन दुर्भाग्य से ये अकेली घटना नहीं है. दशकों से इस पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून बने हुए हैं, फिर भी हर साल भारत में हजारों मासूम औरतें दहेज की भेंट चढ़ जाती हैं.
डराते हैं ये आंकड़े
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक, साल 2022 में भारत में 6,450 दहेज हत्याएं दर्ज हुईं. यानी औसतन हर दिन 18 औरतें दहेज की वजह से जान गंवा देती हैं. साल 2018 से 2022 के बीच कुल 34,477 औरतों की जान इस हिंसा ने ले ली.
इस समस्या का फैलाव हर जगह एक जैसा नहीं है. उत्तर प्रदेश लगातार सबसे ज्यादा दहेज हत्याओं वाला राज्य रहा है. साल 2022 में अकेले यूपी में 2,138 केस दर्ज हुए. इसके बाद बिहार में 1,057 और मध्य प्रदेश में 518 मामले आए. दक्षिण भारत की तस्वीर कुछ अलग है, यहां कर्नाटक में 165, तेलंगाना में 137 और केरल में सिर्फ 11 केस दर्ज हुए.
यूपी की सबसे खौफनाक तस्वीर
पिछले 5 साल (2018-2022) में यूपी ने 11,488 दहेज हत्याओं के मामले दर्ज किए. यानी औसतन हर दिन 6 औरतों की जान सिर्फ दहेज की वजह से गई. इसका मतलब यह हुआ कि देश में होने वाली हर तीसरी दहेज हत्या सिर्फ यूपी में होती है. यहां दहेज मौत का औसत 10.3 प्रति लाख महिलाएं है, जबकि राष्ट्रीय औसत 5.2 है. बिहार में ये आंकड़ा 8.9, मध्य प्रदेश में 6.6, राजस्थान में 5.7 और पश्चिम बंगाल में 4.8 है.

दरअसल, पांच राज्य यानी यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल मिलकर देश की 70% दहेज हत्याओं के लिए ज़िम्मेदार हैं. ये साफ़ दिखाता है कि ये समस्या कितनी गहरी जड़ें जमा चुकी है.
हर नंबर के पीछे एक चेहरा, एक कहानी और एक...
निक्की भाटी का केस दिखाता है कि ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं हैं, बल्कि हर नंबर के पीछे एक चेहरा, एक कहानी और एक टूटता हुआ परिवार है. पुलिस के मुताबिक, निक्की को महीनों तक ससुराल वालों ने तंग किया और मारा-पीटा. आखिरकार उसे जिंदा जला दिया गया. ये केस इसलिए अलग नहीं है कि इसमें ज्यादा क्रूरता थी, बल्कि इसलिए कि हजारों औरतों के साथ हर साल यही होता है. बस उनकी कहानियां सामने नहीं आ पातीं.
नोएडा की एक महिला कार्यकर्ता का कहना है कि इतनी जागरूकता के बावजूद दहेज आज भी एक बेहद पिछड़ी हुई सोच है. हैरानी इस बात की है कि ये रुकता नहीं, बल्कि बार-बार होता है, और समाज चुप रहता है.
न्याय की लड़ाई भी आसान नहीं
दहेज से हुई मौतों पर ज्यादातर आधिकारिक डेटा सिर्फ राज्य स्तर पर मिलता है. जिले या शहर के आंकड़े पाना मुश्किल है. पुलिस एफआईआर दर्ज तो करती है, लेकिन आम जनता को इन तक पहुंच नहीं मिलती. पीड़ित परिवारों के लिए ये सिस्टम और ज्यादा दर्दनाक हो जाता है. अदालतों पर भी ऐसे मामलों का बोझ बढ़ता जा रहा है. 2022 में दहेज निषेध अधिनियम के तहत 13,000 से ज़्यादा केस दर्ज हुए. यानी हर दो घंटे में तीन केस.
दहेज प्रताड़ना का शिकार हैं तो ऐसे लें मदद
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) हेल्पलाइन- 7827 170 170 (24x7), 011 2694 4805
यूपी महिला हेल्पलाइन (181/1091)- पुलिस की महिला सुरक्षा हेल्पलाइन
आपातकालीन नंबर (112)- तुरंत पुलिस/फायर/एम्बुलेंस मदद के लिए
लीगल एड सर्विसेज (NLSA) - मुफ्त कानूनी सहायता, ज़िले और राज्य स्तर पर उपलब्ध