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कुनबी सर्टिफिकेट और 19 फीसदी कोटा... मराठा आरक्षण आंदोलन में क्या चाहते हैं मनोज जरांगे पाटिल, जानिए 10 बड़े सवालों के जवाब

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन से स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. जिन मराठाओं के लिए आरक्षण की मांग की जा रही है, वे कौन हैं? महाराष्ट्र में उनकी स्थिति क्या है? सबसे बड़ा सवाल है कि इससे किसे और कितना फायदा होगा. इन सारे सवालों के जवाब कड़ियों से कड़ियां जोड़कर जानेंगे और साथ ही पूरी स्थिति पर नजर डालेंगे कि आखिर सरकार इस दिशा में किस तरफ जा रही है?

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महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन जारी है (फाइल फोटो)
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन जारी है (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र में एक बार फिर राजनीति में उबाल आया हुआ है. वजह है, मराठा आरक्षण आंदोलन. इसी साल सितंबर में ये मामला सामने आया था, जिसे महाराष्ट्र के बीड जिले के मनोज जरांगे ने उठाया था. उनके नेतृत्व में सारा मराठा समुदाय साथ आया और देखते ही देखते आंदोलन हिंसक हो गया. महाराष्ट्र सरकार ने इस पर मराठा समुदाय से बात की, उन्हें आरक्षण का आश्वासन दिया, इस पर फैसला लेने के लिए वक्त मांगा और इस प्रयास से कुछ दिनों के लिए आंदोलन थम गया, लेकिन महीना बीतते-बीतते जब जारांगे को ऐसा लगा कि सरकार सिर्फ और सिर्फ बात कर रही है, कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है तब उन्होंने अक्टूबर के आखिरी 10 दिनों में फिर से आंदोलन की राह ली. लेकिन इस बार आंदोलन अलग था. 

आंदोलन, जो देखते-देखते आत्महत्या के सिलसिलों में तब्दील हो गया.

...लेकिन इस बार जब आंदोलन शुरू हुआ तो यह बेहद अलग था. आरक्षण की मांग को लेकर शुरू हुआ आंदोलन देखते-देखते आत्महत्या के सिलसिलों में तब्दील हो गया. एक के बाद एक 5 लोगों की आत्महत्या की खबरें सामने आई हैं. अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट में ये आंकड़ा 7 से लेकर 10 तक है. बुधवार को भी चार और लोगों ने कीटनाशक पीकर आत्महत्या की कोशिश की थी, जिन्हें समय रहते अस्पताल ले जाया गया और बचा लिया गया.

इससे पहले एक 35 वर्षीय युवक ने परभणी में कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली थी तो वहीं बीते मंगलवार को पानी की टंकी से छलांग लगाकर एक युवक ने अपनी जान दे दी थी. सरकार के साथ-साथ, मनोज जरांगे ने भी लोगों से हिंसा न करने और आत्महत्या जैसे कदम न उठाने की अपील की है. बुधवार को सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, लेकिन मनोज जारांगे ने अब पानी भी त्याग दिया है और वह पूर्ण अनशन पर आ गए हैं. 

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सवाल यह है कि मनोज जरांगे की मांगे क्या हैं? जिन मराठाओं के लिए आरक्षण की मांग की जा रही है, वे कौन हैं? महाराष्ट्र में उनकी स्थिति क्या है? सबसे बड़ा सवाल है कि इससे किसे और कितना फायदा होगा. इन सारे सवालों के जवाब कड़ियों से कड़ियां जोड़कर जानेंगे और साथ ही पूरी स्थिति पर नजर डालेंगे. शुरुआत करते हैं इस बात से कि मनोज जरांगे की मांगे क्या हैं?

मराठा आरक्षण आंदोलन

1. क्या है मनोज जरांगे की मांग?
अनशन करते हुए आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मनोज जरांगे की बहुत सीधी सी मांग है. वह बस इतना कह रहे हैं कि सरकार बिना देर किए मराठाओं को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र जारी करे. ये एक लाइन ही पूरे मराठा आंदोलन का आधार है. असल में कुनबी जाति के लोगों को सरकारी नौकरियों से लेकर शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण मिलता है. मराठवाड़ा क्षेत्र महाराष्ट्र का हिस्सा बनने से पहले तत्कालीन हैदराबाद रियासत में शामिल था. अगर मराठों को कुनबी सर्टिफिकेट मिलता है तो उन्हें खुद ब खुद आरक्षण मिल जाएगा. मनोज जारांगे ने जब सितंबर में आंदोलन शुरू किया था तब सरकार से बातचीत के बाद उन्होंने 40 दिनों का अल्टीमेटम दिया था, उसके पूरा होते ही वह फिर धरने पर बैठ गए. जारांगे मराठाओं के लिए ओबीसी का दर्जा मांग रहे हैं.

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2. किस आधार पर मांग रहे कुनबी सर्टिफिकेट, थोड़ा इतिहास में झांक लेते हैं
इस मांग का आधार जानने के लिए इतिहास में जाना पड़ेगा. समय के पहिए को इतना पीछे घुमाएं कि ये तब के दौर में ले जाए जहां निजाम का शासन है और मराठवाड़ा क्षेत्र हैदरबाद की रियासत की हिस्सा है. जरांगे समेत मराठों का कहना है कि सितंबर 1948 तक निजाम का शासन खत्म होने तक उन्हें कुनबी माना जाता था और ये ओबीसी थे. इसलिए अब फिर इन्हें कुनबी जाति का दर्जा दिया जाए और ओबीसी में शामिल किया जाए. कुनबी, खेती-बाड़ी से जुड़ा समुदाय है. इसे महाराष्ट्र में ओबीसी में शामिल किया गया है. कुनबी जाति के लोगों को सरकारी नौकरियों से लेकर शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण मिलता है. मराठवाड़ा क्षेत्र महाराष्ट्र का हिस्सा बनने से पहले तत्कालीन हैदराबाद रियासत में शामिल था. 

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3. कौन हैं मराठा? 
मराठाओं में जमींदार और किसानों के अलावा अन्य लोग शामिल हैं. अनुमान है कि महाराष्ट्र में मराठाओं की आबादी 33 फीसदी के आसपास है. ज्यादातर मराठा मराठी भाषी होते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि हर मराठी भाषी मराठा ही हो. मराठा को महाराष्ट्र में सबसे प्रभावशाली समुदाय माना जाता है. 1960 में महाराष्ट्र के गठन के बाद से अब तक 20 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से ही रहे हैं. मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी मराठा हैं.

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4. चार दशक से चल रही है मराठा आरक्षण की मांग
महाराष्ट्र में पिछले चार दशकों से मराठा आरक्षण की मांग चल रही है. यह आंदोलन कई बार हिंसक रूप भी ले चुका है. महाराष्ट्र के अधिकतर मुख्यमंत्री मराठा होने के बावजूद अपने समुदाय के लिए कोई हल नहीं निकाल सके हैं. सबसे पहले 2014 में पृथ्वीराज चव्हाण ने 16 फीसदी आरक्षण के लिए अध्यादेश लेकर आए. पर 2014 में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार चुनाव हार गई और बीजेपी-शिवसेना की सरकार बनी और देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने. फडणवीस सरकार में मराठा आरक्षण को लेकर एक आयोग बना. इसी आयोग की सिफारिश पर फडणवीस सरकार ने सोशल एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लास एक्ट के तहत मराठों को 16 फीसदी आरक्षण दिया. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी और शैक्षणिक संस्थानों में 12 फीसदी कर दिया. आगे चलकर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस फैसले को पूरी तरह ही रद्द कर दिया.

मराठा आरक्षण आंदोलन

5. ओबोसी महासंघ कर रहा है विरोध
सरकार के लिए मराठा आरक्षण देना आसान नही है. अगर शिंदे सरकार इसके लिए आगे बढ़ती है तो इसे शर्तिया तौर पर राज्य में ओबीसी का भारी विरोध झेलना पड़ेगा. राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र यानी ओबीसी कोटे से आरक्षण देने का कड़ा विरोध कर रहा है. राज्य में ओबीसी नेता भी इसका विरोध कर रहे हैं. ऐसे में सरकार और मराठा तो आमने-सामने हैं ही, इसके साथ ही मराठा और ओबीसी समुदाय भी आरक्षण के मुद्दे पर एक-दूसरे की मांगों के खिलाफ खड़े हो गए हैं.

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6. ओबीसी क्यों कर रहे हैं सर्टिफिकेट देने की मुखालफत?
किसी को सर्टिफिकेट मिले न मिले, इससे ओबीसी को क्या मतलब? आखिर ओबीसी समुदाय मराठा समुदाय को कुनबी सर्टिफिकेट देने के खिलाफ क्यों है? असल में मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था. इसके बाद मनोज जरांगे पाटिल समेत कई लोगों का दावा है कि, मराठा समाज मूल रूप से कुनबी जाति से है. यानी मराठा समुदाय को यदि कुनबी प्रमाणपत्र दिया जाता है तो आरक्षण मिलने पर उसे ओबीसी कोटे से लाभ मिल जाएगा. अभी राज्य में ओबीसी कोटे से आरक्षण 19 फीसदी है.ओबीसी समुदाय के संगठनों का मानना ​​है कि अगर इसमें मराठा समुदाय को भी शामिल किया गया तो आरक्षण का फायदा नए शामिल समुदाय के लोगों को मिलेगा. ओबीसी समुदाय का यह भी कहना है कि हमारा विरोध मराठा आरक्षण से नहीं बल्कि उन्हें ओबीसी से आरक्षण देने को लेकर है. 

7. स्थिति गंभीर, लेकिन आरक्षण मामले पर सरकार किस दिशा में ?
इस वाक्य के आगे लगा सवालिया निशान ही सरकार की वर्तमान स्थिति है. सितंबर के आंदोलन के बाद, राज्य सरकार ने मराठवाड़ा में मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया तय करने के लिए न्यायमूर्ति संदीप शिंदे की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था. सरकार ने तब कहा था कि यह कमेटी 30 दिन के अंदर रिपोर्ट देगी. इसके दस दिन बाद समिति को विस्तार दिया गया. यह समय सीमा भी 24 अक्टूबर को समाप्त हो गई. लेकिन कमेटी की रिपोर्ट अभी भी लंबित है.

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अल्टीमेटम देने के बावजूद जब सरकार ने मराठा आरक्षण पर कोई निर्णय नहीं लिया, तो मनोज जरांगे पाटिल ने भूख हड़ताल शुरू कर दी और एक बार फिर राज्य भर में मराठा आरक्षण के लिए राज्यव्यापी आंदोलन शुरू हो गया. अब राज्य सरकार ने इस समिति के लिए समय सीमा सीधे 24 दिसंबर तक बढ़ा दी है. इसके चलते ही ये सवालिया निशान उपजा है कि, यह आंदोलन आगे किस दिशा में जाएगा, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है.  

सीएम एकनाथ शिंदे

8. सरकार ने कुनबी सर्टिफिकेट देना शुरू किया, लेकिन किन्हें?
अब इन सारी स्थिति के बीच खबर है कि, धाराशिव जिले में अधिकारियों ने बुधवार को पात्र मराठा समुदाय के सदस्यों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र देना शुरू कर दिया, जिससे उन्हें ओबीसी श्रेणी में शामिल करने का रास्ता साफ हो गया है. एक अधिकारी ने बताया कि इस तरह का पहला प्रमाण पत्र सबूत के आधार पर जिले के कारी गांव के सुमित माने को सौंपा गया था. जिला कलेक्टर सचिन ओम्बासे ने माने को कुनबी जाति प्रमाण पत्र सौंपा. यह घटनाक्रम राज्य सरकार द्वारा एक आदेश प्रकाशित करने के एक दिन बाद आया है, जिसमें संबंधित अधिकारियों से पात्र मराठा समुदाय के सदस्यों को नए कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए कहा गया है, जिससे उनके लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत आरक्षण लाभ लेने का रास्ता साफ हो सके. 

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9. अभी इन लोगों को मिलेगा कुनबी सर्टिफिकेट
महाराष्ट्र कैबिनेट ने पिछले महीने फैसला किया था कि मराठवाड़ा क्षेत्र के उन मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी किए जाएंगे जिनके पास निज़ाम युग के राजस्व या शिक्षा दस्तावेज हैं जो उन्हें कुनबी के रूप में पहचानते हैं. मंगलवार को जारी सरकारी प्रस्ताव (जीआर) में अधिकारियों से कुनबियों के संदर्भ वाले पुराने दस्तावेजों का अनुवाद करने के लिए कहा गया था, जो कि उर्दू और 'मोदी' लिपि (जिसका उपयोग पहले के समय में मराठी भाषा लिखने के लिए किया जाता था) में लिखा गया था. कृषि से जुड़ा समुदाय कुनबी, महाराष्ट्र में ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत आता है और शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण लेता है.  

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10. 1967 से पहले के सबूत खोजने की कोशिश
माने को कुनबी जाति प्रमाण पत्र देने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए, धाराशिव कलेक्टर ओमबेस ने कहा, "कुनबी मुद्दे पर गठित समिति ने मराठवाड़ा के हर जिले का दौरा किया और 1967 से पहले की अवधि के सबूत खोजने की कोशिश की." अकेले धाराशिव में 40 लाख अभिलेखों की जांच की गई. उन्होंने कहा, कुल 459 कुनबी रिकॉर्ड मिले, जिनमें से 110 कारी गांव के हैं.

"सरकार के निर्णय के अनुसार, हमारे जिले में कुनबी प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. रिकॉर्ड के अनुसार, हमने आज पहला कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी किया है. हम शेष लाभार्थियों की पहचान करेंगे, और उन्हें प्रमाण पत्र देंगे," उन्होंने कहा, "हम अगले 8-10 दिनों में (आवेदकों को) ये प्रमाणपत्र जारी करने के इच्छुक हैं. राजस्व विभाग की एक टीम आवेदकों से संपर्क करेगी और उन्हें प्रमाणपत्र जारी करेगी." उन्होंने कहा, जो रिकॉर्ड पाए जाते हैं, उन्हें हमारी जिला प्रशासन की वेबसाइट पर प्रमाणित प्रतियों के रूप में अपलोड किया जाता है.

अधिकारी ने कहा, "शेष दस्तावेज अगले कुछ दिनों में अपलोड कर दिए जाएंगे. लोगों को उचित दस्तावेजों, पते के प्रमाण और फैमिली ट्री के साथ ऑनलाइन आवेदन करना चाहिए.

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