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दो दिन में दो मंदिरों में भगदड़, हरिद्वार और बाराबंकी की घटनाओं से उठे ये सवाल

हरिद्वार और बाराबंकी में 48 घंटे में दो मंदिर भगदड़ में 10 लोगों की मौत ने सुरक्षा इंतजामों पर सवाल खड़े कर दिए हैं. भीड़ नियंत्रण, अफवाह रोकथाम और बुनियादी ढांचे की लापरवाही हादसों की वजह बनी. समय रहते प्रशासनिक सजगता, बिजली व्यवस्था की जांच और जागरूकता जरूरी है ताकि ऐसी त्रासदियां दोबारा न हों.

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आखिर भीड़-भाड़ वाले आयोजनों के बीच क्यों हो जाते हैं हादसे? (Photo: PTI)
आखिर भीड़-भाड़ वाले आयोजनों के बीच क्यों हो जाते हैं हादसे? (Photo: PTI)

दो दिन में दो मंदिरों में भगदड़: हरिद्वार और बाराबंकी की घटनाओं ने उठाए सवाल, क्यों बार-बार दोहराते हैं ऐसे हादसे?
देश के दो अलग-अलग मंदिरों में पिछले 48 घंटे में भगदड़ की दो बड़ी घटनाएं हुईं. रविवार को हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में और सोमवार को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी स्थित अवसानेश्वर महादेव मंदिर में भगदड़ मचने से अब तक कुल 10 लोगों की जान जा चुकी है और 50 से ज्यादा श्रद्धालु घायल हुए हैं.

इन घटनाओं ने एक बार फिर से वही पुराना सवाल खड़ा कर दिया है- क्या देश में धार्मिक स्थलों पर जुटने वाली भीड़ को लेकर प्रशासन की तैयारी नहीं होती या आधी-अधूरी के साथ मैदान में होता है? और क्या इन हादसों की जिम्मेदारी सिर्फ भीड़ पर डालकर प्रशासन और मंदिर प्रबंधन अपना पल्ला झाड़ सकते हैं?

रविवार को सावन के मौके पर हरिद्वार के प्रसिद्ध मनसा देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. इसी दौरान मंदिर की सीढ़ियों के पास अफवाह फैली कि बिजली का करंट फैल गया है. भगदड़ मच गई, लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे. अफरा-तफरी में 8 श्रद्धालुओं की जान चली गई. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में साफ देखा गया कि लोग जान बचाने की कोशिश में इधर-उधर भाग रहे थे.

बाराबंकी में बंदर की वजह से फैला करंट, दो की मौत

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बाराबंकी के अवसानेश्वर महादेव मंदिर में सावन सोमवार को श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए जुटे थे, तभी एक बंदर ने ओवरहेड इलेक्ट्रिक तार पर छलांग मारी, जिससे तार टूटकर मंदिर परिसर के टीन शेड पर गिर गया. टीन शेड में करंट फैलते ही भगदड़ मच गई. इस हादसे में दो लोगों की मौत हुई और करीब 19 श्रद्धालु घायल हो गए.

भगदड़ के लिए क्या सिर्फ भीड़ जिम्मेदार है?

सावन सोमवार, शिवरात्रि और नवरात्र जैसे खास अवसरों पर भीड़ जुटना तय होता है. इसके बावजूद प्रशासन की तैयारी अक्सर नाकाफी रहती है. मसलन, मनसा देवी मंदिर की सीढ़ियों पर एक ही रास्ते से एंट्री और एग्जिट होती है. यदि पुलिस और मंदिर प्रशासन के बीच बेहतर तालमेल होता तो रस्सियों या बैरिकेडिंग के जरिए इन रास्तों को अलग किया जा सकता था. इससे अफरातफरी टाली जा सकती थी.

अफवाहों पर नियंत्रण नहीं...

हरिद्वार की घटना इस बात का उदाहरण है कि अफवाह किस कदर जानलेवा हो सकती है. मौके पर सही सूचना तंत्र की गैरमौजूदगी और जागरूकता की कमी से हालात बिगड़ते हैं. ऐसे आयोजनों में नियमित रूप से मुनादी कर अफवाहों से सतर्क रहने की हिदायत दी जा सकती है. साथ ही अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी जरूरी है.

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व्यवस्थाओं की अनदेखी

बाराबंकी हादसे से साफ है कि मंदिर परिसर में बुनियादी सुरक्षा व्यवस्थाएं बेहद लचर हैं. खुले बिजली के तार, जर्जर टीन शेड और बेकाबू भीड़- इन सबका नतीजा भगदड़ के रूप में सामने आता है. धार्मिक स्थलों की समय-समय पर इलेक्ट्रिकल सेफ्टी ऑडिट कराना जरूरी है. इन स्थानों को सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्थल मानकर सुरक्षा मानकों का पालन करना चाहिए.

भीड़ नियंत्रण का आधुनिक तरीका जरूरी

वक्त आ गया है कि बड़े मंदिरों में टेक्नोलॉजी की मदद ली जाए, जैसे सीसीटीवी, भीड़ सेंसर, क्यू सिस्टम, वॉलंटियर फोर्स और डिजिटल सूचना पैनल. इसके अलावा सोशल मीडिया और एफएम अलर्ट जैसी व्यवस्था भी मददगार हो सकती हैं.

आखिर कब जागेगा सिस्टम?

हर बार हादसे के बाद जांच के आदेश, मुआवजे की घोषणा और फिर सबकुछ भुला दिया जाता है. लेकिन ये भूलना नहीं चाहिए कि हर बार की लापरवाही कई जिंदगियां लील जाती है. धार्मिक आस्था और भारी भीड़ अब देश की हकीकत है- इससे बचा नहीं जा सकता. लेकिन इसे सुरक्षित जरूर बनाया जा सकता है-अगर प्रशासन, मंदिर प्रबंधन और आम नागरिक तीनों मिलकर जिम्मेदारी लें.

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