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कैसे एक आंख वाले व्यक्ति ने उस दिन महात्मा गांधी की हत्या की गोडसे की साजिश को नाकाम कर दिया!

नाथूराम गोडसे, जिसका जन्म आज ही के दिन 1910 में हुआ था, ने मूल रूप से प्रार्थना सभा में गांधी पर ग्रेनेड फेंकने की योजना बनाई थी. लेकिन गोडसे की ये साजिश नाकाम हो गई.

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20 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या की कोशिश हुई थी.
20 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या की कोशिश हुई थी.

नाथूराम गोडसे का जन्म आज ही के दिन (19 मई 1910) बारामती में एक चित्तपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. गोडसे से पहले उनके माता-पिता तीन बेटों को खो चुके थे. यह मानते हुए कि इससे परिवार पर लगा श्राप दूर हो जाएगा, उन्होंने चौथे बेटे की नाक में नथ (अंगूठी) पहना दी और उसे लड़की की तरह कपड़े पहनाने लगे. लड़के को गांव में नाथमल के नाम से जाना जाने लगा, लेकिन उसके छोटे भाई के जन्म के बाद उसका नाम बदलकर नाथूराम रख दिया गया, आखिरकार परिवार ने मान लिया कि श्राप खत्म हो गया. 

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नाथूराम को इंग्लिश मीडियम स्कूल में भेजा गया, लेकिन वह मैट्रिक पास नहीं कर पाया. गुजारे के लिए उसने एक दर्जी की दुकान खोली, जो जल्द ही बंद हो गई. महात्मा गांधी की हत्या के मामले में गोडसे की समीक्षा याचिका पर सुनवाई करने वाले न्यायाधीश जीडी खोसला लिखते हैं कि 22 साल की उम्र में वह आरएसएस में शामिल हो गया. खोसला के अनुसार, "कुछ साल बाद वह पुणे चला गया और हिंदू महासभा की एक स्थानीय शाखा का सचिव बन गया. (Murder of the Mahatma: GD Khosla)

अपने कट्टरपंथी हिंदू अवतार में, गोडसे को 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की छाती में अपने बरेटा से तीन गोलियां दागनी थीं. गोडसे और उसके लोगों ने मूल रूप से 20 जनवरी को गांधी को मारने की योजना बनाई थी. लेकिन उनका प्रयास गलतियों की एक कॉमेडी में बदल गया जिसने बापू के जीवन को दस दिनों तक बढ़ा दिया.

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महात्मा और उसके हत्यारे

12 जनवरी को 78 वर्षीय महात्मा गांधी ने भारत में सांप्रदायिक सद्भाव बहाल होने तक उपवास करने का फैसला किया. जैसा कि रामचंद्र गुहा लिखते हैं, वे सरकार के इस फैसले से भी नाराज थे कि “युद्ध के बाद ब्रिटेन द्वारा (अविभाजित) भारत को दिए जाने वाले स्टर्लिंग बैलेंस में से पाकिस्तान को उसका हिस्सा नहीं दिया जाएगा.” (गांधी, द इयर्स दैट चेंज्ड इंडिया)

अगले दिन, चार लोग 'हिंदू राष्ट्र' के पुणे कार्यालय में एकत्र हुए, जो गोडसे द्वारा सह-स्थापित एक अख़बार था. गांधी के आमरण अनशन से नाराज होकर गोडसे ने घोषणा की कि गांधी को मारने का समय आ गया है.

हत्यारों का जमावड़ा

गोडसे का साथी नारायण आप्टे, एक आकर्षक व्यक्ति था जो व्हिस्की और महिलाओं का शौकीन था, भी कई सालों से गांधी से नाराज था. इन दोनों के साथ विष्णु करकरे भी मिल गया जो हिन्दू महासभा का सदस्य था और एक गेस्टहाउस का मालिक भी था. मदनलाल पाहवा भी इनके साथ था जो एक शरणार्थी जिसने विभाजन के लिए गांधी को दोषी ठहराया था.

जल्द ही इस चौकड़ी में दो और सदस्य शामिल हो गए. दिगंबर बडगे, जो पैसे के लिए हथियार का छोटा व्यापारी था, और गोपाल गोडसे, जो अपने बड़े भाई की मदद करना चाहता था. 

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छह लोगों का ये समूह तीन-तीन के बैच में बॉम्बे के रास्ते दिल्ली के लिए जाने वाला था. करकरे और बडगे को फ्रंटियर मेल से जाना था; नाथूराम और आप्टे को एयर इंडिया की फ्लाइट संख्या DC3 से दिल्ली जाना था. गोपाल और बडगे ने एक फास्ट पैसेंजर ट्रेन लेने का फैसला किया. इन्हें नई दिल्ली के बिड़ला मंदिर के पास हिंदू महासभा के गेस्ट हाउस में मिलना था.

लेकिन, एक समस्या थी- गांधी पहले ही मरणासन्न अवस्था में पहुंच चुके थे. 

गुरुवार, 14 जनवरी

उस शाम तक गांधी की तबीयत खराब हो गई थी. डॉक्टरों का मानना ​​था कि अगर उपवास नहीं तोड़ा गया तो उनके पास सिर्फ 24 घंटे बचे हैं. गांधी ने कहा था, "मृत्यु एक महान मित्र है, यह हमें सभी दर्द से राहत देती है," लेकिन उन्होंने झुकने से इनकार कर दिया. जब उन्हें आसन्न मृत्यु के बारे में चेतावनी दी गई, तो उन्होंने पूछा, "क्या आपका विज्ञान वास्तव में सब कुछ जानता है. क्या आप गीता में भगवान कृष्ण के शब्दों को भूल गए हैं- "मैं अपने अस्तित्व के एक सूक्ष्म से हिस्से में पूरी दुनिया को समेटे हुए हूं?" (फ़्रीडम एट मिडनाइट: लैरी कॉलिन्स और डोमिनिक लैपिएरे)

जनवरी 18-19, नई दिल्ली

आरएसएस समेत विभिन्न समुदायों के नेताओं द्वारा शांति बहाल करने का संकल्प लेने के बाद गांधी ने अपना छह दिवसीय उपवास समाप्त किया. कुछ दिन पहले, भारत सरकार ने भी घोषणा की थी कि वह पाकिस्तान को दिए गए वादे के अनुसार धन जारी करेगी. इस बीच, मुहम्मद अली जिन्ना ने भी गांधी की पाकिस्तान यात्रा की इच्छा को स्वीकार कर लिया था, ताकि "घृणा और हिंसा को समाप्त किया जा सके." 

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गांधी ने संतरे का जूस पीने के लिए सहमति व्यक्त की और कहा- 'मुझे अभी भी बहुत कुछ हासिल करना है'. हत्या की योजना बनाई जा रही थी.


अगली सुबह, हत्यारे अपने हथियारों का परीक्षण करने के लिए एक सुनसान जगह पर एकत्रित हुए, जहां घनी झाड़ियां थीं।. उनकी दो देसी पिस्तौलों में से एक से गोली नहीं चली. दूसरी पिस्तौल कई फीट दूर से निशाना चूक गई. उनमें से एक ने दुखी होकर कहा, "यह हमें गांधी से भी ज्यादा जल्दी मार देगा." लेकिन, एक वैकल्पिक योजना थी.

जनवरी 20, नई दिल्ली

पूरी रात व्हिस्की (आप्टे और करकरे) पीने, कॉफी पीने और कच्चे हथगोले तैयार करने के बाद, गोडसे और उसके आदमी बिड़ला हाउस के लिए रवाना हुए, जहां गांधीजी को प्रार्थना सभा करनी थी.

दो बच्चों के बाप आप्टे को विश्वास था कि वह बंबई वापस आ जाएगा, जहां उसने एक एयरहोस्टेस से मिलने की योजना बनाई थी. ये उसकी सबसे नई गर्ल फ्रेंड थी. उसे यकीन था कि यह योजना पूरी तरह से सही है और महात्मा को मसल दिया जाएगा. 

लेकिन उनकी योजना से केवल थोड़े देर के लिए ही दहशत फैलने वाली थी. 

20 जनवरी, जिसका उन्हें इंतजार था

गांधीजी ने एक ऊंचे मंच से सभा को संबोधित किया. उनके पीछे कर्मचारियों के लिए क्वार्टर थे, जहां से महात्मा की सीट के ठीक पीछे एक वेंटिलेटर खुलता था. यह तय किया गया कि बडगे फोटोग्राफर की पोशाक में क्वार्टर में प्रवेश करेगा और महात्मा पर स्लिट के माध्यम से ग्रेनेड फेंकेगा. गोपाल और करकरे को महात्मा के सामने से जाकर ग्रेनेड और पिस्तौल से हमला करने का काम सौंपा गया था. गोडसे और आप्टे को हमले का समन्वय करना था. सिग्नल टाइमर वाला एक क्रूड बम था जिसे पाहवा को चारदीवारी के पास रखना था.

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गलतियां ही गलतियां

इसके बाद क्या हुआ, यह फ्रीडम एट मिडनाइट में विस्तार से बताया गया है. हत्या की खतरनाक प्लानिंग के बावजूद इनके काम महज तमाशा जैसे दिखते हैं. यहां इसका सार बताया गया है.

शाम के करीब 5 बजे पाहवा ने मंच से करीब 150 मीटर की दूरी पर टाइम बम रखा. जेब से ग्रेनेड निकालकर बडगे पीछे के कमरे की ओर बढ़ा, लेकिन वह स्तब्ध रह गया. कमरे में बैठा व्यक्ति एक आंख वाला था. उसने कहा, "ये तो अपशकुन है," उसने वजह जानना उचित नहीं समझा. आखिरकार उसने गोपाल गोडसे के साथ जगह बदल ली और महात्मा पर सामने से गोली चलाने का फैसला किया.

लेकिन गोपाल इतना छोटा था कि वह छोटे से छेद तक पहुंच ही नहीं पाया. उसने ऊंचाई पाने के लिए जूट की चारपाई घसीटी, लेकिन रस्सियां टूट गईं. स्पष्ट देख पाने में असमर्थ, उसने हार मान ली. जैसे ही उसने बाहर निकलने की कोशिश की, उसे एहसास हुआ कि ताला खराब हो गया है, जिससे वह एक अंधेरे कमरे में फंस गया और उसे पता ही नहीं चला कि बाहर क्या हो रहा है.

जब टाइम बम फटा तो जैसा कि होना था वहां पर अफरातफरी मच गई. गांधी ने बिना किसी परेशानी के उन्हें शांत करने की कोशिश की और कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है. यह मानते हुए कि समय आ गया है, गोडसे ने आप्टे को संकेत दिया, जिन्होंने गांधी के सबसे करीब खड़े बडगे को संदेश दिया.

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बडगे जो एक छोटा व्यापारी था, स्तब्ध खड़ा रहा. अचानक उसे अपराध की गंभीरता का एहसास हुआ. उसे एहसास हुआ कि वह सिर्फ एक व्यापारी था, हत्यारा नहीं, इसलिए वह भाग निकला.

इस बीच, एक छोटी लड़की ने पाहवा की पहचान कर ली. यही वो शख्स था जिसने टाइम बम रखा था. लड़की की चीख-चिल्लाहट ने वहां मौजूद लोगों का ध्यान खींचा. पाहवा को जमीन पर गिरा दिया गया, भीड़ ने उसकी पिटाई की और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. अपने साथी को पुलिस के जाल में फंसा देख, बाकी लोग अपने ठिकाने कनॉट प्लेस के पास मरीना होटल में भाग गए.

जनवरी 21, नई दिल्ली

महात्मा ने अपनी प्रार्थना सभा में इस घटना के बारे में बताया. "मैंने कोई बहादुरी नहीं दिखाई. मुझे लगा कि यह कहीं न कहीं सेना के अभ्यास का हिस्सा है. मुझे बाद में ही पता चला कि यह एक बम था और अगर भगवान ने मुझे जीवित नहीं रहने दिया होता तो यह मुझे मार सकता था. लेकिन अगर मेरे सामने बम फटता है और अगर मैं डरता नहीं और हार नहीं मानता, तो आप कह सकते हैं कि मैं अपने चेहरे पर मुस्कान लिए मरा. आज मैं इतनी प्रशंसा के लायक नहीं हूं. आपको उस व्यक्ति के प्रति किसी भी तरह की नफरत नहीं करनी चाहिए जो इसके लिए जिम्मेदार था. उसने यह मान लिया था कि मैं हिंदू धर्म का दुश्मन हूं," (Mohandas: A True Story of a Man, his People, and an Empire, Rajmohan Gandhi)

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आखिरकार...

संसद मार्ग पुलिस स्टेशन में सात घंटे बिताने के बाद, पाहवा ने कैनरी की तरह गाना शुरू किया और असफल प्रयास में अपने सहयोगियों के नाम बताए.

अगली सुबह, गोडसे और उसके सह-षड्यंत्रकारी यह मानकर दिल्ली से भाग गए कि उनका खेल खत्म हो गया है. लेकिन पाहवा की जानकारी के बावजूद, पुलिस साजिश का भंडाफोड़ करने और साजिशकर्ताओं को गिरफ्तार करने में विफल रही. गोडसे ने गांधी पर सिर्फ दस दिन बाद एक और हमला किया, बाकी, जैसा कि कहा जाता है इतिहास में दर्ज हो गया. 

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