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क्यों लगातार रिकॉर्ड तोड़ रही है सोने की कीमत? इसके पीछे अमेरिका की उथल-पुथल तो नहीं, जानिए-वजह

सोने की कीमतें इस साल अब तक लगातार रिकॉर्ड तोड़ रही हैं और 1979 के बाद सबसे तेज रफ्तार से बढ़ रही हैं. डॉलर में अनिश्चितता, अमेरिकी सरकार के संभावित शटडाउन और फेडरल रिजर्व की नीतियों और राजनीतिक लड़ाई के चलते निवेशक सुरक्षित निवेश के लिए सोने की ओर बढ़ रहे हैं. क्या यही वजह है कि दुनिया का सबसे पुराना सुरक्षित निवेश सोना फिर चमक रहा है.

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gold price
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सोना इस साल अब तक 45% से ज्यादा बढ़ चुका है और 1979 के बाद यह सबसे बड़ा सालाना उछाल दर्ज करने की ओर है. सोना इस साल दशकों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहा है. 2025 में इसकी कीमतें लगातार रिकॉर्ड ऊंचाइयों को छू रही हैं. आइए जानते हैं कि बुल‍ियन में इस बढ़ोतरी के पीछे क्या वजह है.

क्यों है ये इंपार्टेंट 

सोना फिर चमक रहा है. इस रैली से ये साफ पता चलता है कि वैश्विक वित्तीय सिस्टम और अमेरिकी राजनीति को लेकर निवेशकों में गहरी चिंता है और डॉलर के भविष्य को लेकर डर बढ़ा है.

आंकड़ों में देखें 

$3,848/ओंस: सोमवार तक सोने की रिकॉर्ड उच्च कीमत
+45%: 1 जनवरी 2025 से सोने की कीमतों में वृद्धि
1979: पिछली बार सोने की कीमत इतनी तेजी से बढ़ी थी, उस साल इरान की क्रांति और तेल संकट के दौरान 126% उछाल आया था

कहानी गोल्ड की 

सोने की आसमान छू रही हैं क्योंकि निवेशक अमेरिकी सरकार के संभावित शटडाउन, बढ़ते व्यापारिक तनाव और फेडरल रिजर्व की नीतियों पर राजनीतिक झगड़े को लेकर सतर्क हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के फेडरल रिजर्व पर हमले, नए टैरिफ और बड़े खर्च की नीतियों ने अनिश्चितता बढ़ा दी है, जिससे लोग सुरक्षित निवेश के लिए सोने की ओर बढ़ रहे हैं. 

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ये बढ़त 1970 के दशक की उथल-पुथल याद दिलाती है. उस समय महंगाई, तेल संकट और राजनीतिक संकट ने सोने की कीमतें आसमान छूने पर मजबूर कर दी थीं. 1971 में रिचर्ड निक्सन ने डॉलर को सोने में बदलने की सुविधा खत्म कर दी थी जिससे ब्रेटन वुड्स प्रणाली समाप्त हुई. अर्थशास्त्री यानिस वरौफाकिस इसे एक मैजिक ट्रिक कहते हैं, जो अमेरिका को वैश्विक ऋण के जरिए घाटा वित्त पोषित करने की अनुमति देती है, जिसे उन्होंने ग्लोबल मिनोटॉर कहा.

सोने की कीमतों ने 1970 के अंत में जबरदस्त उछाल देखा (1979 में चरम पर) और फिर 1980 में गिरावट आई. आज सोने की बढ़ती कीमातों में भी यही विरोधाभास है. जब डॉलर पर भरोसा कम होता है, सोने की कीमत बढ़ती है लेकिन डर के समय निवेशक अक्सर डॉलर में लौटते हैं. दोनों की कीमतें में एक अलग ही गण‍ित होती है, इसमें एक की ताकत अक्सर दूसरे की वापसी का संकेत देती है.

भू-राजनीति भी इसे और बढ़ावा देती है. चीन और रूस सोने की भंडारण कर रहे हैं. रूस और चीन अपने व्यापार में 90% लेन-देन स्थानीय मुद्रा में कर रहे हैं. ट्रम्प और बाइडन ने प्रमुख उद्योगों की सुरक्षा के लिए निक्सन का रास्ता अपनाया. वर्तमान में, डॉलर प्रमुख मुद्रा बनी हुई है. हालांकि, सोने की बढ़ती कीमत से यह असंतोष झलकता है कि क्या ये प्रभुत्व बनाए रखा जा सकता है.

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बड़ी तस्वीर

सोना केवल एक कमोडिटी नहीं है. ये पैसे के मूल्य में भरोसे या अविश्वास का संकेत है. सोना अपनी दुर्लभता, टिकाऊपन और सीमित आपूर्ति की वजह से अनोखा है. जब राजनीति डॉलर में विश्वास को कमजोर करती है, निवेशक सोने की ओर रुख करते हैं. सवाल ये है कि क्या सोना सिर्फ एक हेज के रूप में रहेगा या नए वित्तीय सिस्टम में इसकी भूमिका और बढ़ जाएगी?
 

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