देश में 2025 में जनगणना की सुगबुगाहट है और जातीय जनगणना पर तस्वीर साफ नहीं है. लेकिन विपक्षी दल लगातार जातीय जनगणना कराए जाने की मांग कर रहे हैं और आबादी के हिसाब से पॉलिसी प्लानिंग पर जोर दे रहे हैं. इतिहास देखा जाए तो जातियों पर जनगणना का गजब आंकड़ा देखने को मिलेगा. देश में 1931 में जातीय जनगणना हुई तो कुल जातियों की संख्या 4,147 थी और फिर जब 2011 में जनगणना हुई तो देश में 46 लाख जातियों की संख्या निकली. हालांकि, 2011 की जनगणना के आंकड़े उजागर नहीं किए गए हैं. तीन साल पहले ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक केस के सिलसिले में इन आंकड़ों का जिक्र किया था.
ब्रिटिश हुकूमत के वक्त देश में पहली बार 1872 में जनगणना हुई और तब से हर 10 साल में जनगणना होती है. हालांकि, 2021 में कोरोना महामारी की वजह से यह सिलसिला टूट गया और अब 2025 की शुरुआत में जनगणना कराए जाने की तैयारियां हैं. 1931 में देश में आखिरी बार जातिगत जनगणना हुई थी.
1931 में 4100 से ज्यादा जातियां थीं...
1872 से 1931 तक जितनी बार जनगणना हुई, उसमें जातिवार आंकड़े भी दर्ज किए गए. 1901 में जातीय जनगणना हुई तो 1,646 अलग-अलग जातियों की पहचान की गई. उसके बाद 1931 में यह संख्या बढ़कर 4,147 हो गई. 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट का आधार भी यही संख्या थी. 1941 में भी जाति जनगणना हुई, लेकिन आंकड़े पब्लिश नहीं हुए.
1951 में बदल गया जनगणना का तरीका
आजादी के बाद 1951 में जब पहली जनगणना हुई तो ब्रिटिशन शासन वाली जनगणना के तरीके में बदलाव कर दिया गया और जातिगत आंकड़ों को सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तक सीमित कर दिया गया. यानी OBC और दूसरी जातियों का डेटा नहीं दिया जा रहा है. जनगणना का ये ही स्वरूप कमोबेश अभी तक चला आ रहा है.
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2011 में जातीय जनगणना का डेटा नहीं हुआ सार्वजनिक
साल 1961, 1971, 1981, 1991, 2001 में जो भी जनगणना हुई, उसमें सरकार ने जातिगत जनगणना से दूरी बनाए रखी. 2011 की जनगणना में पहली बार जाति आधारित आंकड़े (सामाजिक आर्थिक जातिगत) भी एकत्र किए गए, लेकिन यह डेटा सार्वजनिक नहीं किया गया. साल 2021 में जनगणना प्रस्तावित थी, लेकिन कोरोना महामारी के चलते इसे टाल दिया गया. पिछले 150 साल में ऐसा पहली बार हुआ, जब समय पर जनगणना नहीं हो पाई.
जाति जनगणना का दबाव बना रही हैं पार्टियां
फिलहाल, राजनीतिक दल एक बार फिर नए सिरे से जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं. तर्क दिया जा रहा है कि जातिगत जनगणना से ही पता चलेगा कौन सी जाति को आरक्षण में कितना हिस्सा मिलना चाहिए. राजनीतिक दलों ने दबाव बनाना शुरू कर दिया है. जानकार कहते हैं कि राजनीतिक रूप से जातिगत जनगणना ज्यादा फायदेमंद के तौर पर देखी जा रही है.
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सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया डेटा?
साल 2021 में केंद्र सरकार ने एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था और बताया था कि साल 2011 में जो सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना हुई, उसमें कई कमियां थीं. जो आंकड़े एकत्रित किए गए, उसमें काफी गलतियां और अशुद्धियां हैं. ऐसे में उन पर भरोसा या उसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
क्या है जनगणना का गजब आंकड़ा?
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि 1931 में जब आखिरी बार जातिगत जनगणना हुई थी, तब जातियों की कुल संख्या 4,147 थी. लेकिन 2011 में जातियों की संख्या बढ़कर 46 लाख से भी ज्यादा होना पता चला है. हालांकि, यह आंकड़ा सही नहीं हो सकता है. संभव है कि इनमें कुछ जातियां, उपजातियां रही हों. सरकार का कहना था कि जनगणना करने वाले कर्मचारियों की गलती और गणना करने के तरीके में गड़बड़ी के कारण आकंड़े विश्वसनीय नहीं रह जाते हैं.
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केंद्र ने उदाहरण दिया और बताया था कि महाराष्ट्र में आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी में आने वाली जातियों की संख्या 494 थी. जबकि 2011 की जातिगत जनगणना में वहां कुल जातियों की संख्या 4,28,677 पाई गई. केंद्र सरकार का कहना था कि SC, ST के अलावा OBC की जाति आधारित जनगणना कराना प्रशासनिक रूप से काफी जटिल काम है और इससे पूरी या सही सूचना हासिल नहीं की जा सकती है.
2016 में मोदी सरकार ने जातियों को छोड़कर बाकी सारा डेटा सार्वजनिक कर दिया था. बताते चलें कि 2011 में लालू प्रसाद यादव और मुलायम यादव ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई थी. इसके बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना करवाने का फैसला लिया था.
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अगली जनगणना 2025 में होगी
देश में अगली जनगणना 2025 में शुरू हो सकती है और 2026 तक आंकड़े सामने आ सकते हैं. इस बार जनगणना में काफी कुछ नया देखने को मिलेगा. नए सवाल से लेकर ऑप्शन तक जोड़े जाने की तैयारी है. जनगणना में पहली बार संप्रदाय को लेकर भी सवाल पूछे जाने की संभावना है. लोगों से उनके संप्रदाय से जुड़ी जानकारी देने के लिए कहा जा सकता है. उदाहरण के तौर पर कर्नाटक में लिंगायत जैसे समूह है, जो सामान्य श्रेणी में आते हैं, लेकिन एक अलग संप्रदाय के रूप में पहचाने जाते हैं. . हालांकि अभी यह निर्णय नहीं लिया गया है कि जातिगत जनगणना की जाएगी या नहीं.
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