
जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, घरों और इमारतों को ठंडा रखना ऊर्जा क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. एयर कंडीशनर (AC) की मांग तेजी से बढ़ रही है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, इस साल दुनियाभर में 2.4 अरब से ज्यादा एयर कंडीशनर इस्तेमाल हो रहे हैं. ये संख्या 2050 तक बढ़कर 5.6 अरब होने की उम्मीद है. चीन और भारत इस मांग को बढ़ाने वाले दो सबसे बड़े बाजार हैं.
IEA की एक और रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक कूलिंग सिस्टम मौजूदा समय की तुलना में करीब 700 टेरावाट-घंटे (TWh) ज्यादा बिजली खपत करेंगे. ये दुनिया की बढ़ती बिजली मांग का लगभग 10 फीसदी होगा, जो इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग (13 फीसदी) के करीब है. हैरानी की बात है कि एयर कंडीशनर की ऊर्जा खपत जल्द ही आज के कुछ सबसे चर्चित तकनीकों को पीछे छोड़ सकती है.
रॉयटर्स की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि 2035 तक एसी की बिजली खपत तीन गुना हो सकती है, जो डेटा सेंटर्स (जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट को पावर देते हैं) की मांग से भी ज्यादा होगी. ये बदलाव खासकर विकासशील देशों में तेजी से हो रहा है, जितना लोग समझ रहे हैं.

साल 2050 तक दुनिया के लगभग दो-तिहाई घरों में एयर कंडीशनर होने की उम्मीद है. हालांकि इससे गर्मी से होने वाली मौतों को कम करने में मदद मिल सकती है, लेकिन दिक्कत यह है कि आज ज्यादातर एसी जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) से बनी बिजली पर चलते हैं. इसका मतलब है कि ज्यादा ठंडक का इस्तेमाल उसी समस्या को बढ़ा सकता है, जिसे यह हल करने की कोशिश कर रहा है, यानी जलवायु परिवर्तन. लेकिन अभी भी वक्त है कि रास्ता बदला जाए.
IEA का सुझाव है कि एयर कंडीशनर की ऊर्जा दक्षता (एनर्जी एफिशिएंसी) में सुधार से भविष्य में कूलिंग की बिजली मांग को आधा किया जा सकता है. हरित इमारतें, सख्त दक्षता मानक, और बेहतर शहरी नियोजन से नए पावर प्लांट की जरूरत कम हो सकती है और उपभोक्ताओं के बिजली बिल भी घट सकते हैं लेकिन मौजूदा नीतिगत प्रयास नाकाफी हैं.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भविष्य की बिजली मांग का एक बड़ा हिस्सा होने के बावजूद, कूलिंग को इलेक्ट्रिक वाहनों या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों जितना ध्यान नहीं मिल रहा. विशेषज्ञ तेजी से नीतिगत बदलाव की मांग कर रहे हैं, खासकर एशिया जैसे क्षेत्रों में, जहां कूलिंग की मांग में भारी उछाल की उम्मीद है.