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आरक्षण से लेकर जातिगत जनगणना तक... कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में क्या-क्या हुआ?

सीडब्ल्यूसी ने तीन प्रस्ताव पारित किए गए. एक प्रस्ताव में कहा गया कि प्रधानमंत्री का तथाकथित रोजगार मेला एक दिखावा है. यह सरकार की नाकामियों को छिपाने का हथकंडा है क्योंकि सरकार ने दो करोड़ रोजगार सृजन का वादा किया था. सरकार हर दस साल में होने वाली जनगणना को भी कराने में असफल रही है, जो कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी की बात है.

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सीडब्ल्यूसी की बैठक
सीडब्ल्यूसी की बैठक

विपक्षी दल कांग्रेस ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के लिए आरक्षण में ऊपरी सीमा को बढ़ाने की मांग की है. सीडब्ल्यूसी की बैठक के पहले दिन प्रस्ताव में जाति आधारित जनगणना की भी मांग की. इस दौरान लगातार बढ़ रही बेरोजगारी और महंगाई को लेकर भी चिंता जताई गई.

इस दौरान सीडब्ल्यूसी ने तीन प्रस्ताव पारित किए गए. एक प्रस्ताव में कहा गया कि प्रधानमंत्री का तथाकथित रोजगार मेला एक दिखावा है. यह सरकार की नाकामियों को छिपाने का हथकंडा है क्योंकि सरकार ने दो करोड़ रोजगार सृजन का वादा किया था. सरकार हर दस साल में होने वाली जनगणना को भी कराने में असफल रही है, जो कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी की बात है.

प्रस्ताव में कहा गया कि अनुमानित तौर पर 14 करोड़ सबसे गरीब परिवारों को राशन नहीं मिल पा रहा है क्योंकि उनके राशन कार्ड 2011 की जनगणना के आधार पर जारी किए गए थे. 

जातिगत जनगणना की भी पैरवी

सीडब्ल्यूसी ने जातिगत जनगणना से मोदी सरकार के इनकार पर भी गौर किया. सामाजिक और आर्थिक न्याय को लेकर बीजेपी के भीतर प्रतिबद्धता की कमी और पिछड़े वर्ग के लोगों, दलितों और आदिवासियों के प्रति पूर्वाग्रह को उजागर किया है. 

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बीजेपी के एजेंडे में फंसने से बचें

कांग्रेस ने सनातन धर्म को लेकर डीएमके नेता उदयनिधि की टिप्पणी पर हुए विवाद पर कहा कि हमें इस मामले में सतर्कता बरतने की जरूरत है. इस दौरान बीजेपी के एजेंडे में नहीं आने का आह्वान किया गया.इस दौरान छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि पार्टी को ऐसे मुद्दों से दूर रहना चाहिए और इसमें नहीं फंसना चाहिए.

आरक्षण की क्या है व्यवस्था?

शुरुआत में आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ 10 साल के लिए थी. उम्मीद थी कि 10 साल में पिछड़ा तबका इतना आगे बढ़ जाएगा कि उसे आरक्षण की जरूरत नहीं होगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

फिर 1959 में संविधान में आठवां संशोधन कर आरक्षण को 10 साल के लिए और बढ़ा दिया गया. 1969 में 23वां संशोधन कर आरक्षण बढ़ा दिया. तब से ही हर 10 साल पर एक संविधान संशोधन होता है और आरक्षण का प्रावधान 10 साल के लिए बढ़ जाता है.

1992 में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला दिया था. अदालत ने कहा था कि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती.

कानूनन आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती. अभी देशभर में एससी, एसटी और ओबीसी को जो आरक्षण मिलता है, वो 50 फीसदी की सीमा के भीतर है.

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फिलहाल देश में जातीय 49.5% आरक्षण है. ओबीसी को 27%, एससी को 15% और एसटी को 7.5% आरक्षण दिया जाता है. इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को भी आरक्षण 10% आरक्षण मिलता है.

इस हिसाब से आरक्षण की सीमा 50 फीसदी के पार जा चुकी है. हालांकि, पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग से जुड़े लोगों को आरक्षण देने को सही माना था. इसे सही ठहराते हुए अदालत ने कहा था कि ये कोटा संविधान के मूल ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाता है.

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