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तापमान में गिरावट, समय से पहले मानसून की दस्तक... सदी में सबसे ठंडा रहा पिछला मई का महीना, टूटे कई रिकॉर्ड

भले ही मई का ठंडा मौसम ग्लोबल वार्मिंग के बीच एक विपरीत घटना लगे, लेकिन यह इस बात को दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन कितना जटिल और अस्थिर होता जा रहा है. तापमान, बारिश और मौसमी घटनाओं में आ रहे ये उतार-चढ़ाव यह साफ संकेत देते हैं कि अब हमें जलवायु के प्रति अधिक सतर्कता और लचीलापन बरतने की जरूरत है.

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देशभर में क्लाइमेट चेंज का असर दिखने लगा है.
देशभर में क्लाइमेट चेंज का असर दिखने लगा है.

मई 2025 भारत में लगभग एक सदी में सबसे ठंडी मई में से एक रही. जलवायु परिवर्तन के बीच मौसम में यह असामान्य बदलाव चिंता का विषय बन गया है. इस बार मई में मानसून समय से पहले आ गया और सामान्य से ज्यादा बारिश हुई, जिससे देश के कई हिस्सों में तापमान में काफी गिरावट दर्ज की गई.

मध्य और दक्षिण भारत में दशकों की सबसे ठंडी मई

मई 2025 में भारत के लगभग सभी हिस्सों में सामान्य से कम तापमान दर्ज किया गया. मध्य भारत में 1901 के बाद तीसरी बार सबसे कम औसत अधिकतम तापमान दर्ज किया गया, जो कि 36.63 डिग्री सेल्सियस था, यह सामान्य तापमान से 2.63 डिग्री कम है. जो 1933 के बाद की सबसे ठंडी मई रही. वहीं, दक्षिण भारत में पांचवीं बार सबसे कम अधिकतम तापमान दर्ज किया, जो औसत 34.13 डिग्री सेल्सियस था, जो 1955 के बाद सबसे ठंडा मई का महीना था. मौसम का ये उतार-चढ़ाव क्लाइमेट चेंज की ओर इशारा करते हैं. 

मानसून ने समय से पहले दी दस्तक

तापमान में गिरावट के साथ-साथ इस बार मई में गरज-चमक वाले तूफानों की संख्या भी रिकॉर्ड स्तर पर रही. देश के कई हिस्सों में मई के महीने में करीब 20 दिन गरज वाले दर्ज किए गए, जो अब तक सबसे अधिक हैं. 

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विशेषज्ञों का मानना है कि यह असामान्य गतिविधियां वातावरण में हो रहे बड़े बदलावों से जुड़ी हैं. समय से पहले मानसून की शुरुआत और अधिक बारिश ने मई की सामान्य गर्मी और सूखे मौसम को काफी हद तक शांत कर दिया.

क्या ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा है ये बदलाव?

भले ही मई का ठंडा मौसम ग्लोबल वार्मिंग के बीच एक विपरीत घटना लगे, लेकिन यह इस बात को दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन कितना जटिल और अस्थिर होता जा रहा है. तापमान, बारिश और मौसमी घटनाओं में आ रहे ये उतार-चढ़ाव यह साफ संकेत देते हैं कि अब हमें जलवायु के प्रति अधिक सतर्कता और लचीलापन बरतने की जरूरत है. वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और आम जनता के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे इन बदलते रुझानों को समझें और भविष्य की तैयारी करें.

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