सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी पीठ अब एलोपैथी और आयुष चिकित्सकों के बीच समान वेतनमान और सेवा शर्तों के विवाद पर फैसला करेगी. ये निर्णय चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने लिया है. पीठ ने इस मुद्दे को एक आधिकारिक निर्णय के लिए एक बड़ी पीठ को भेज दिया है, क्योंकि पिछले कई अदालतों के आपस में विरोधी निर्णय हैं. अब बड़ी पीठ तय करेगी कि बीएएमएस और बीएचएमएस जैसी डिग्री वाले आयुष चिकित्सक, एमबीबीएस डॉक्टरों के समान सेवा शर्तों की मांग कर सकते हैं या नहीं.
पीठ ने कहा कि चिकित्सकों की सेवा शर्तों, खासकर सेवानिवृत्ति की आयु और वेतन पैकेज को लेकर अस्पष्टता साफ दिखती है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समानता का आकलन कार्यों की एकरूपता, किए गए कार्यों में समानता और सौंपे गए तुलनात्मक कर्तव्यों की कसौटी पर किया जाना चाहिए. समानता के दावे का मूल्यांकन पारंपरिक भारतीय चिकित्सकों द्वारा की गई योग्यता, उपचार प्रथाओं और कर्तव्यों की प्रकृति पर विचार करके किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ तय करेगी कि एलोपैथी से चिकित्सा करने वाले एमबीबीएस डॉक्टरों के समान ही आयुर्वेद, योग, यूनानी और प्राकृतिक, सिद्ध, होम्योपैथी यानी आयुष पद्धतियों से चिकित्सा करने वाले बीएएमएस, बीएचएमएस जैसी डिग्री लिए चिकित्सकों को एक समान वेतनमान, सेवा शर्तों और सेवानिवृत्ति आयु में समानता की मांग कर सकते हैं?
इस मुद्दे पर विरोधाभासी फैसले
पिछले कई सालों में विभिन्न अदालतों द्वारा इस मुद्दे पर विरोधाभासी निर्णय दिए गए हैं, जहां एक ओर आयुष डॉक्टर समान वेतनमान और सेवा शर्तों की मांग कर रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर एमबीबीएस डॉक्टरों का कहना है कि उनकी जिम्मेदारियां और कार्यक्षेत्र अलग हैं. इस अस्पष्टता को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया है.
MBBS डॉक्टर एक अलग वर्ग
राजस्थान सरकार की एक याचिका पर आए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में आयुष डॉक्टरों को एमबीबीएस चिकित्सकों से अलग करते हुए कोर्ट ने कहा कि ये एमबीबीएस डॉक्टर, एलोपैथी चिकित्सक, महत्वपूर्ण देखभाल, जीवन रक्षक उपायों, सर्जरी समेत आकस्मिक प्रक्रियाओं और यहां तक कि मृत्यु के बाद की जांचों से भी निपटते हैं. इनमें से कोई भी काम स्वदेशी चिकित्सा प्रणालियों के चिकित्सक नहीं करते.
एलोपैथी डॉक्टरों की कमी
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार की पैरवी करते हुए तर्क दिया था कि आयुष और एमबीबीएस डॉक्टरों के लिए अलग-अलग सेवानिवृत्ति आयु सार्वजनिक हित की सेवा करने और एलोपैथी डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए शुरू की गई थी.
उन्होंने कहा कि एलोपैथी संस्थानों में आने वाले लोगों की संख्या स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियों का पालन करने वाले संस्थानों की तुलना में कहीं अधिक है. इसके अलावा आकस्मिक चिकित्सा, गहन चिकित्सा, आघात प्रबंधन और आपातकालीन हस्तक्षेप प्रक्रियाएँ एलोपैथी डॉक्टर संचालित करते हैं, न कि आयुष डॉक्टर.
पीठ ने कहा कि ये पहलू एमबीबीएस डॉक्टरों को एक अलग वर्ग में रखते हैं, जिससे अलग-अलग सेवा शर्तें उचित ठहरती हैं. हालांकि, इस मुद्दे के लिए एक प्राधिकार की आवश्यकता है. इसलिए कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह मामले को प्रशासनिक पक्ष के हवाले से चीफ जस्टिस के समक्ष सूचीबद्ध करे, ताकि बड़ी पीठ इस पर अंतिम फैसला दे सके.