असम का वेस्ट कार्बी आंगलोंग जिला बीते कुछ दिनों से उबाल पर है. यहां इस कदर हिंसा भड़की जिसमें 40 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हुए और कानून-व्यवस्था पर सवाल उठने लगे. आलम ये रहा कि पुलिस पर पत्थरों, तीरों और देसी बम से हमला किया गया. दुकानों और घरों में आगजनी की गई. कानून एवं व्यवस्था के मद्देनजर इलाके में सेना तैनात कर दी गई है.
लंबे समय से चले आ रहे आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदायों के बीच भूमि विवाद से उपजा यह तनाव अब तक दो लोगों की जान ले चुका है और कम से कम 45 लोग घायल हुए हैं, जिनमें 38 पुलिसकर्मी शामिल हैं. कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) के प्रमुख और बीजेपी नेता तुलिराम रोंगहांग के आवास को भी आग के हवाले कर दिया गया.
हालात की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली असम सरकार ने मंगलवार को इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दीं और भारी संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती की. बुधवार तक स्थिति तनावपूर्ण जरूर रही, लेकिन नियंत्रण में बताई गई.
रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल किसी नई हिंसा की सूचना नहीं मिली है. संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त सुरक्षाबल तैनात किए गए और निषेधाज्ञा लागू रही. लेकिन सवाल है कि आखिर हिंसा भड़की क्यों और कार्बी आंगलोंग बार-बार अशांति का केंद्र क्यों बनता है?
पश्चिम कार्बी आंगलोंग के खेरेनी इलाके में हुए टकराव के दौरान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थरों, तीरों और देसी बमों से हमला किया, जिसमें 38 से 58 पुलिसकर्मी घायल हो गए. घायलों में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और राज्य के डीजीपी तक शामिल हैं. इस दौरान दुकानों में तोड़फोड़ की गई, गैस सिलेंडरों को बाहर खींचकर फोड़ा गया और बाजार क्षेत्रों में भीषण आग लग गई.
असम के डीजीपी हरमीत सिंह के हवाले से द टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि पुलिस पर तीर, पत्थर और देसी बमों से हमला किया गया. मंगलवार को दो लोगों की मौत की पुष्टि हुई. एक कार्बी समुदाय का युवक पुलिस कार्रवाई के दौरान मारा गया, जबकि दूसरे मृतक बंगाली समुदाय से थे, जिनकी खेरेनी बाजार में आगजनी के दौरान मौत हो गई.

गुवाहाटी स्थित असम ट्रिब्यून के अनुसार, मृतक बंगाली व्यक्ति सुरेश डे दिव्यांग थे. वह उस इमारत में फंस गए थे, जिसमें आग लगा दी गई थी और जलकर उनकी मौत हो गई. वहीं कार्बी समुदाय के प्रदर्शनकारी ने गंभीर चोटों के चलते दम तोड़ दिया. हिंसा का तात्कालिक कारण भूख हड़ताल पर बैठे प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई बनी.
कार्बी संगठनों और अन्य आदिवासी संगठनों ने खेरेनी के फेलांगपी इलाके में दो सप्ताह से अधिक समय से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल कर रखी थी. उनकी मांग थी कि ग्राम चराई आरक्षित भूमि (VGR) और पेशेवर चराई आरक्षित भूमि (PGR) से कथित अतिक्रमणकारियों को हटाया जाए.
रविवार देर रात नौ बजे भूख हड़ताल कर रहे प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिए जाने के बाद हालात तेजी से बिगड़ गए. पुलिस का कहना था कि उनकी सेहत बिगड़ने के कारण उन्हें इलाज के लिए गुवाहाटी ले जाया जा रहा था. मंगलवार को जैसे ही हिरासत की खबर फैली, आदिवासी गांवों में आक्रोश फैल गया. सड़कों को जाम किया गया, तोड़फोड़ हुई और देखते-देखते हालात बड़े पैमाने पर हिंसा में बदल गए. हिंसा तब और भड़क गई जब प्रदर्शनकारियों ने खेरेनी से लगभग 26 किलोमीटर दूर डोंकामोकाम में KAAC प्रमुख तुलिराम रोंगहांग के आवास को आग लगा दी. कई रिपोर्टों के अनुसार, डोंकामोकाम रोंगहांग का विधानसभा क्षेत्र भी है.
भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को हवाई फायरिंग, आंसू गैस और रबर की गोलियों का सहारा लेना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद हिंसा जारी रही और मंगलवार तक कार्बी आंगलोंग तथा पश्चिम कार्बी आंगलोंग के कई इलाकों में फैल गई. स्थिति को और बिगड़ने से रोकने के लिए असम सरकार ने कार्बी आंगलोंग और पश्चिम कार्बी आंगलोंग में मोबाइल इंटरनेट और डेटा सेवाएं निलंबित कर दीं. गृह विभाग ने चेतावनी दी कि सोशल मीडिया के जरिए अफवाहें फैलाकर सार्वजनिक शांति और कानून-व्यवस्था भंग होने की आशंका है.
इस संघर्ष की जड़ें संविधान की छठी अनुसूची से जुड़े भूमि अधिकारों में हैं, जो कार्बी आंगलोंग जैसे आदिवासी बहुल इलाकों को विशेष स्वायत्तता और भूमि संरक्षण प्रदान करती है. छठी अनुसूची के तहत कार्बी आंगलोंग को आदिवासी समुदायों के अधिकार, संस्कृति और भूमि पर नियंत्रण की सुरक्षा के लिए विशेष दर्जा मिला हुआ है, जहां स्वायत्त परिषद के माध्यम से स्वशासन की व्यवस्था है.
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि VGR और PGR की बड़ी भूमि पर गैर-आदिवासियों ने अवैध कब्जा कर लिया है, जिनमें असम के बाहर से आए लोग भी शामिल हैं. आदिवासी संगठनों का कहना है कि लगातार हो रहा अतिक्रमण उनकी जमीन, पहचान और आजीविका के लिए खतरा बनता जा रहा है.

पिछले साल KAAC प्रशासन ने कथित अतिक्रमणकारियों को बेदखली नोटिस जारी किए थे, लेकिन इन नोटिसों को गुवाहाटी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जहां से अंतरिम रोक लगा दी गई. इससे मामला अधर में लटक गया.
हिंसा के बाद भारी सुरक्षाबल तैनात किए गए और मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा तथा वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हालात पर करीबी नजर बनाए हुए हैं. मुख्यमंत्री सरमा 26 दिसंबर को स्वायत्त परिषद समेत सभी संबंधित पक्षों के साथ बैठक करने वाले हैं. हालांकि अधिकारी सतर्क हैं, क्योंकि पहले भी ऐसा देखा गया है कि राजनीतिक नेताओं के इलाके से लौटने के बाद फिर से हिंसा भड़क उठी थी.
कार्बी आंगलोंग की जनसांख्यिकीय संरचना, छठी अनुसूची के तहत मिले विशेष अधिकार और लंबित बेदखली विवाद इसे बार-बार अशांति के प्रति संवेदनशील बनाते हैं.असम के सबसे बड़े जिलों में शामिल कार्बी आंगलोंग में आदिवासी आबादी बहुसंख्यक है. यहां कार्बी सबसे बड़ा समुदाय है, इसके बाद दिमासा, गारो और कुकी जनजातियां आती हैं. 2001 की जनगणना के अनुसार, जिले की 55 प्रतिशत से अधिक आबादी अनुसूचित जनजातियों की थी.यहां भूमि, पहचान और राजनीतिक प्रतिनिधित्व एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं, और राज्य की किसी भी कार्रवाई या निष्क्रियता को लेकर हालात तेजी से विस्फोटक हो जाते हैं.
फिलहाल खेरेनी में शांति लौट आई है, लेकिन बीते कुछ दिनों की घटनाएं यह सख्त सच्चाई उजागर करती हैं कि जब तक भूमि विवादों का स्थायी समाधान और समुदायों के बीच भरोसा कायम नहीं होता, तब तक कार्बी आंगलोंग में शांति नाज़ुक बनी रहेगी. तनाव के मद्देनजर इलाके में इंटरनेट सेवा सस्पेंड कर दी गई.