
शिवसेना के दोनों धड़ों (उद्धव गुट-शिंदे गुट) के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता तब और बढ़ गई, जब उनके नेता एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे अपने-अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ हाई-प्रोफाइल मीटिंग्स के लिए नई दिल्ली पहुंचे. इस दौरान दोनों गुटों के बीच शक्ति प्रदर्शन देखने को मिला.
सत्तारूढ़ शिवसेना का नेतृत्व कर रहे एकनाथ शिंदे कल देर रात राजधानी दिल्ली पहुंचे और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की. शिवसेना सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ एकनाथ शिंदे ने बुधवार दोपहर लगभग 1:30 बजे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से आधे घंटे तक मुलाकात की. इसके बाद शाम 4:30 बजे एकनाथ शिंदे ने अपने परिवार के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. ये बैठकें भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ संबंधों को मज़बूत करने और महायुति गठबंधन में अपने गुट की स्थिति मज़बूत करने के शिंदे के प्रयासों का हिस्सा हैं.

वहीं, उद्धव ठाकरे दोपहर 3 बजे दिल्ली पहुंचे. वे तीन दिवसीय दौरे पर हैं. इस दौरान वे INDIA ब्लॉक की बैठक में हिस्सा लेंगे और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के निवास पर आयोजित डिनर में शामिल होंगे. इसके अलावा वे अपनी पार्टी के सांसदों के साथ बैठक भी करेंगे, जहां आगामी राजनीतिक चुनौतियों पर चर्चा होगी. उद्धव का यह दौरा महाविकास आघाड़ी (MVA) में अपने गुट की भूमिका को और सशक्त बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
दोनों नेताओं का एक-दूसरे पर तंज
एकनाथ शिंदे ने कांग्रेस से नजदीकी बढ़ाने को लेकर ठाकरे पर तंज कसते हुए कहा कि कुछ लोग 10 जनपथ का रास्ता चुन रहे हैं, जबकि हमने जनकल्याण का रास्ता चुना है. यह बयान बताता है कि दोनों नेताओं के बीच कटुता अब केवल विचारधारा तक सीमित नहीं रही, बल्कि चुनावी सियासत में भी खुलकर सामने आ गई है.
शिष्टाचार भेंट तक सीमित नहीं दोनों नेताओं की यात्रा
सूत्रों के अनुसार दोनों नेताओं की ये यात्राएं सिर्फ शिष्टाचार भेंट तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए नए गठजोड़ और सीट बंटवारे को लेकर गहन रणनीति का हिस्सा हैं.
दोनों गठबंधनों में अंदरूनी खींचतान
जहां महायुति गठबंधन में वित्तीय आवंटन, मंत्री विवाद और अधिकार क्षेत्र को लेकर अंदरूनी असंतोष है, वहीं MVA को समन्वय की कमी और उद्धव गुट की राज ठाकरे से बढ़ती नजदीकियों की वजह से नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसी बीच ठाकरे और शिंदे, दोनों अपने दिल्ली दौरे के जरिए अपने-अपने राजनीतिक कद को राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहे हैं. यह दिखाने की कोशिश है कि दोनों अपने-अपने खेमे में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.