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डंपिंग ग्राउंड नहीं, अब आरक्षित जंगल है कांजुरमार्ग: बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

महाराष्ट्र में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई के कान्जुरमार्ग डंपिंग ग्राउंड की की 119.91 हेक्टेयर जमीन को 'संरक्षित जंगल' घोषित किया. कोर्ट ने बीएमसी को वन विभाग की अनुमति लेने के लिए तीन महीने का समय दिया है. जस्टिस कुलकर्णी और सुंदरसेन की बेंच ने सुनवाई की.

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बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई के कांजुरमार्ग डंपिंग ग्राउंड को संरक्षित जंगल घोषित किया (फोटो क्रेडिट - पीटीआई)
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई के कांजुरमार्ग डंपिंग ग्राउंड को संरक्षित जंगल घोषित किया (फोटो क्रेडिट - पीटीआई)

महाराष्ट्र में बॉम्बे हाईकोर्ट ने पर्यावरण से संबंधित एक मामले में ऐतिहासिक फैसला लिया है. शुक्रवार को हाईकोर्ट ने मुंबई के कान्जुरमार्ग डंपिंग ग्राउंड को 'संरक्षित जंगल' घोषित किया. हाईकोर्ट ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) को आदेश दिया है कि अगले तीन महीनों के अंदर वन विभाग से सभी जरूरी अनुमति प्राप्त करें.

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क्या था पूरा मामला?

कान्जुरमार्ग के अधिन 119.91 हेक्टेयर की जमीन है. जिसे पहले नमक बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. हालांकि, अब यह मैंग्रोव से भर गई. प्रशासन की ओर से अनुमति मिलने के बाद 2009 से इस जमीन का इस्तेमाल कचरा डालने के लिए किया जाने लगा. लेकिन, वनशक्ति नामक एक ट्रस्ट ने कोर्ट में याचिका दाखिल की यह जमीन पहले से ही जंगल के संरक्षित है, इसलिए यहां कचरा ना डाला जाए. 

बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी और जस्टिस सोमशेखर सुंदरसेन की बेंच सुनवाई के दौरान कहा कि यह जमीन तटीय विनियमन क्षेत्र-1 के अंदर आता है. इस जमीन पर मैंग्रोव का होना खुद ही इसे संरक्षित जंगल बना देता है. 

बेंच ने यह भी कहा कि जो नोटिफिकेशन पहले जारी किया गया था वह गहन सर्वे और सैटेलाइट इमेजिंग के आधार पर जारी किया गया था. जिसमें यह संकेत मिला था कि भूमि संरक्षित जंगल थी. इसे अब मामूली गलती कहकर रद्द नहीं किया जा सकता है. 

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राज्य सरकार ने क्या दलीलें दी?

राज्य सरकार ने सुनवाई के दौरान कहा कि 119.91 हेक्टेयर की जमीन महज 20.76 हेक्टेयर हिस्से पर मैंग्रोव है. वो भी मुख्य डंपिंग क्षेत्र से बाहर है. साथ ही जो नोटिफिकेशन जारी किया गया था, वह गलती से हो गया था. सरकार के पास पूरा अधिकार है कि वह नोटिफिकेशन को रद्द कर दे. 

सरकार के जवाब पर बेंच ने कहा कि नोटिफिकेशन तथ्यों के आधार पर जारी किया गया था और अब महज मामूली गलती नहीं माना जा सकता है. सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने के लिए पर्याप्त समय है.

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