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घाटशिला में ‘सोरेन बनाम सोरेन’... झारखंड के सबसे हाई-वोल्टेज मुकाबले पर टिकीं सबकी निगाहें

घाटशिला उपचुनाव झारखंड का सबसे हाई-वोल्टेज मुकाबला बन गया है. JMM के सोमेश सोरेन और भाजपा के बाबूलाल सोरेन आमने-सामने हैं. यह चुनाव हेमंत और चंपई सोरेन दोनों की प्रतिष्ठा की परीक्षा साबित होगा.

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पूर्व सीएम चंपई सोरेन, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन (Photo: ITG)
पूर्व सीएम चंपई सोरेन, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन (Photo: ITG)

झारखंड की राजनीति में एक बार फिर ‘सोरेन बनाम सोरेन’ का मुकाबला देखने को मिलेगा. घाटशिला विधानसभा उपचुनाव राज्य का सबसे हाई-वोल्टेज राजनीतिक संग्राम बनने जा रहा है. दिवंगत शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के निधन से खाली हुई इस सीट पर अब झामुमो और भाजपा आमने-सामने हैं.

JMM ने रामदास सोरेन के बेटे सोमेश सोरेन को मैदान में उतारा है, जबकि भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के बागी नेता चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन पर दांव खेला है. दोनों ही उम्मीदवार संथाल समाज से आते हैं, जिससे यह मुकाबला सामाजिक समीकरणों के लिहाज से और भी दिलचस्प हो गया है.

जातीय-सामाजिक समीकरण

घाटशिला सीट पर 2,55,823 मतदाता हैं, जिनमें लगभग 45% आदिवासी, 6% अल्पसंख्यक, और शेष ओबीसी व सामान्य वर्ग के मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. यहां गैर-आदिवासी और गैर-मुस्लिम वोटर परंपरागत रूप से जीत-हार तय करते रहे हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. प्रदीप बालमुचू का व्यक्तिगत वोट बैंक भी इस बार के चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है.

पिछले चुनाव का ट्रैक रिकॉर्ड

पिछले विधानसभा चुनाव में दिवंगत रामदास सोरेन ने भाजपा उम्मीदवार बाबूलाल सोरेन को 22,446 वोटों से हराया था. हालांकि, इस बार परिस्थितियां बदली हुई हैं. कांग्रेस कार्यकर्ताओं में झामुमो के प्रति नाराज़गी है, और हिंदू वोटों का बड़ा हिस्सा भाजपा की ओर झुकता दिख रहा है. भाजपा ने प्रचार के लिए 40 स्टार प्रचारक मैदान में उतारे हैं, जबकि झामुमो की ओर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, कल्पना सोरेन और इंडिया गठबंधन के मंत्री प्रचार की कमान संभालेंगे.

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प्रेस्टीज बैटल: हेमंत बनाम चंपई

यह मुकाबला सिर्फ दो दलों के बीच नहीं, बल्कि हेमंत सोरेन और चंपई सोरेन की राजनीतिक प्रतिष्ठा का भी सवाल बन गया है. एक ओर झामुमो के पुराने चेहरों में से रहे चंपई सोरेन, जो अब भाजपा में हैं, तो दूसरी ओर झामुमो की विरासत संभाल रहे सोमेश सोरेन हैं. इसलिए घाटशिला का यह उपचुनाव सिर्फ एक सीट का नहीं, बल्कि ‘सोरेन बनाम सोरेन’ की साख का टकराव है.

राजनीतिक संदेश और असर

हेमंत सोरेन सरकार का कार्यकाल भी एक साल पूरा करने जा रहा है. ऐसे में यह चुनाव जनता के बीच सरकार की साख, कामकाज और नेतृत्व की लोकप्रियता का रिफ्लेक्शन साबित हो सकता है. घाटशिला की धरती इस बार सिर्फ वोटों की लड़ाई नहीं, बल्कि झारखंड की सत्ता-समीकरणों की दिशा तय करने वाला रणक्षेत्र बनने जा रही है.

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