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कुर्सी मिली, मोहलत नहीं! भूपेंद्र पटेल को एक साल में पार करनी होंगी ये 7 बड़ी चुनौतियां 

विजय रुपाणी भी 2017 के चुनाव से ठीक पहले सीएम बनाए गए थे और अब 2022 के चुनाव से पहले भूपेंद्र पटेल को सत्ता की कमान सौंपी गई है. बीजेपी ने भले ही पटेल को सीएम बना दिया हो, लेकिन उन्हें अपने आपको साबित करने की मोहलत नहीं दी है. ऐसे में भूपेंद्र पटेल को एक साल के कार्यकाल में कई चुनौतियों से पार पाना होगा? 

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गुजरात के नए सीएम भूपेंद्र पटेल
गुजरात के नए सीएम भूपेंद्र पटेल
स्टोरी हाइलाइट्स
  • गुजरात में बीजेपी के नए मुख्यमंत्री बने भूपेंद्र पटेल
  • भूपेंद्र पटेल के सामने खुद को साबित करने की चुनौती
  • 2022 का चुनाव जीतने का पटेल पर होगा जिम्मा

गुजरात में बीजेपी ने विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर भूपेंद्र पटेल को सीएम की कुर्सी भले ही सौंप दी है. गुजरात में अगले साल नंवबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिससे चलते मुख्यमंत्री का चेहरा बदल दिया गया है. रुपाणी भी 2017 के चुनाव से ठीक पहले सीएम बनाए गए थे और अब 2022 के चुनाव से पहले भूपेंद्र पटेल को सत्ता की कमान सौंपी है. बीजेपी ने भले ही पटेल को सीएम बना दिया हो, लेकिन उन्हें अपने आपको साबित करने की मोहलत नहीं दी है. ऐसे में भूपेंद्र पटेल को एक साल के कार्यकाल में कई चुनौतियों से पार पाना होगा? 

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1. 2022 में सत्ता में वापसी
भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाने को लेकर अगले साल नंवबर में होने वाले चुनाव को सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा है. बीजेपी एक नए चेहरे के साथ चुनाव में उतरना चाहती है, जिसके चलते विजय रुपाणी को हटाकर भूपेंद्र पटेल को लाई है. बीजेपी भले ही गुजरात में पिछले ढाई दशक से सत्ता में हो, लेकिन उसका ग्राफ चुनाव दर चुनाव लगातार गिर रहा है. 2012 में 115 सीटें जीतने वाली बीजेपी को 2017 में 99 सीटें ही मिली थी. 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में वोट शेयर में भी कमी आई. ऐसे में भूपेंद्र पटेल के कंधों पर बीजेपी की सत्ता में सिर्फ वापसी ही नहीं बल्कि पार्टी के गिरते ग्राफ को ऊपर ले जाने की सबसे बड़ी चुनौती है. 

2. भूपेंद्र पटेल को मोहलत नहीं
बीजेपी ने भले ही भूपेंद्र पटेल को सीएम की कुर्सी सौंप दी है, लेकिन उन्हें मोहलत नहीं दिया. उनके सामने समय की कमी भी एक बड़ी चुनौती है. गुजरात में अगले साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने है, ऐसे में नए साल के शुरू होते ही चुनावी अभियान तेज हो जाएगा. ऐसे में भूपेंद्र पटेल को खुद को साबित करने के लिए महज एक साल से भी कम समय बचा है. इसमें उन्हें सरकार से लेकर संगठन के लिए कुछ कर खुद को साबित करके दिखाने की चुनौती होगी

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3. ब्यूरोक्रेसी पर लगाम
विजय रुपाणी की कुर्सी जाने में एक बड़ी वजह ब्यूरोक्रेसी का हावी होना. रुपाणी सरकार में ब्यूरोक्रेसी किसी की सुन नहीं रही थी. इस बात को लेकर पार्टी के नेता और विधायक नाराज थे और उन्होंने कई इस मुद्दे को उठाया था. ऐसे में अब भूपेंद्र पटेल  के सामने भी यही चुनौती है कि वह कैसे ब्यूरोक्रेसी पर लगाम लगाते हैं और अपनी सरकार को सुचारू रूप से चलाते हैं. 

4. प्रभावी चेहरा बनने की चुनौती
गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी पांच साल तक सत्ता में बने रहे, लेकिन राज्य में अपनी सियासी धमक ही नहीं जमा पाए. वो अपने कार्यकाल में वह बिना ज्यादा कुछ बोले और लाइम लाइट से दूर अपना काम करते रहे, लेकिन बंगाल चुनाव के बाद पार्टी में मुख्यमंत्री के लिए सिर्फ साफ छवि और विकास कार्य पर्याप्त नहीं है बल्कि जनता के बीच यह भावना जरूरी है कि विकास हो रहा है और सीएम का चेहरा राज्य में प्रभावी हो. यही नहीं उन्हें काम करना भी पड़ेगा और काम करते दिखना भी पड़ेगा. 

ऐसे में अब जिम्मेदारी भूपेंद्र पटेल के कंधों पर दी गई है तो उनके सामने यही बड़ी चुनौती होगी की वह कैसे एक बड़ा चेहरा बनें और उनके चेहरे के साथ 2022 में बीजेपी की नाव को आसानी से पार कराया जा सके. हालांकि, भूपेंद्र पटेल एक साफ सुथरी वाले नेता माने जाते हैं, उनके नाम पर ऐसा कोई दाग नहीं है कि जिससे विपक्ष उनपर हावी हो सके. इसके बावजूद उन्हें खुद को साबित करने की अब चुनाव होगी. 

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5. कोरोना नाराजगी और सत्ताविरोधी लहर 
कोरोना भी भूपेंद्र पटेल के सामने एक बड़ी चुनौती कोरोना की दूसरी लहर में उपजी नाराजगी को दूर करने की है. विजय रुपाणी सरकार पर कोरोना महामारी में फेल होने का दाग लगाया गया है. ऐसे में जब देश में कोरोना के तीसरे लहर की बात हो रही है तो भूपेंद्र पटेल को इसके लिए पूरी तैयारी रखनी होगी, जिससे जनता का विश्वास जीता जा सके. यही नहीं राज्य में 27 साल से बीजेपी की लगातार सरकार है, जिससे चलते स्वाभाविक रूप से सत्ताविरोधी लहर का भी सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में कोरोना को लेकर नाराजगी को दूर करने के साथ-साथ एंटी-इनकम्बेंसी से पार पाने की चुनौती होगी. 

6. पाटीदार समुदाय को साधकर रखना
गुजरात में बीजेपी की सियासी जड़ें मजबूत होने के पीछे पाटीदार समुदाय की अहम भूमिका रही है. पाटीदार समाज राज्य की सियासत में काफी अहम है, जिसे देखते हुए बीजेपी ने एक बार फिर से राज्य में पटेल कार्ड खेला है. भूपेंद्र पटेल को सीएम की कुर्सी पाटीदार समाज से आने के चलते मिली है, जिसके चलते उन्हें अब अपने समाज को बीजेपी के साथ मजबूती के साथ जोड़कर रखना होगा. पटेल आरक्षण आंदोलन के चलते पाटीदार समाज का बीजेपी से मोहभंग हुआ है, जिसके कारण बीजेपी 2017 में सौ सीटें क्रास नहीं कर सकी. 2014 में पाटीदारों के 60 फीसदी वोट मिले जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में मात्र 49.1 फीसदी. यह वोटों की गिरावट पटेल आरक्षण के चलते हुई थी. 

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7. सरकार और संगठन में तालमेल
गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले भूपेंद्र पटेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बनाकर रखने की होगी. विजय रुपाणी और प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के बीच बेहतर समन्वय नहीं रहा. ऐसे में अब रुपाणी की जगह सीएम बने भूपेंद्र पटेल को सरकार और संगठन के साथ बराबर तालमेल ही नहीं बल्कि संतुलन भी बनाकर रखना होगा. इसकी वजह यह है कि चुनाव में संगठन और सरकार में समन्वय न होने से पार्टी को सियासी नुकसान का खतरा है. ऐसे में देखना होगा कि इन चुनौतियों से कैसे पार पाते हैं. 


 

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