गुजरात के अहमदाबाद में डॉक्टरों ने 23 साल के युवक को अपाहिज होने से बचा लिया. अहमदाबाद के मशहूर सर्जन डॉ. जेवी मोदी ने एक जटिल सर्जरी के जरिए युवक की 55 डिग्री तक मुड़ चुकी रीढ़ की हड्डी को काटकर फिर से जोड़ा, जिससे वह अब सीधा खड़ा होने और चलने-फिरने के काबिल हो गया है.
23 साल के स्नेहल को पिछले 3 साल से अपनी कमर की हड्डी में बहुत तेज दर्द हो रहा था. समय के साथ रीढ़ की हड्डी हुई समस्या के कारण स्नेहल को चलने-फिरने, सोने और खड़े होने जैसे रोजाना के कामों में दिक्कत होने लगी. स्नेहल की रीढ़ की हड्डी आगे की ओर मुड़ गई थी, मतलब रीढ़ की हड्डी में 55 डिग्री का काइफोटिक डिफॉर्मिटी और पूरी तरह से सख्त 'बैम्बू स्पाइन' का वह शिकार हो चुका था.
स्नेहल शुरू में इलाज के लिए नडियाद के एक प्राइवेट हॉस्पिटल गया, लेकिन संतोषजनक नतीजे नहीं मिलने पर आखिरकार अहमदाबाद पहुंचा और सर्जन डॉ. जेवी मोदी से इलाज के लिया मिला, जो अहमदाबाद सिविल हॉस्पिटल के पूर्व सुपरिटेंडेंट है.
जब डॉ. मोदी ने जांच की तो पता चला कि स्नेहल की रीढ़ की हड्डी 55 डिग्री आगे की ओर मुड़ी हुई थी, यानी रीढ़ में 55 डिग्री काइफोटिक डिफॉर्मिटी हो गई थी और वह पूरी तरह से अकड़ गई थी. इसे एंकिलॉसिंग स्पॉन्डिलाइटिस कहते हैं, जो एक गंभीर समस्या है.
रीढ़ में बढ़ती असर की वजह से स्नेहल सीधा खड़ा नहीं हो पाता था, सीधा चलना मुश्किल हो गया था और सिर नीचे करके (जजमीन पर नजर रखकर) चलने को मजबूर था. रीढ़ की हड्डी में अकड़न की वजह से वह सीधे सो भी नहीं पाता था. स्नेहल को जो दिक्कत थी और उसके लिए जो सर्जरी होनी थी, वह बहुत महंगी थी.
स्नेहल खुद एक सिनेमा हॉल में मैनेजर का काम करता था और उसके पिता रिक्शा चलाते थे. इसलिए परिवार सर्जरी के खर्च से डर रहा था. लेकिन जैन समुदाय और UK में डॉ. मोदी के दोस्त के द्वारा चलाए जा रहे एक चैरिटेबल मिशन ने सर्जरी के लिए जरूरी महंगे इम्प्लांट का खर्च उठाया और स्नेहल की सफल सर्जरी हो पाई.
'यह सर्जरी किसी चुनौती से कम नहीं थी'
डॉ. जेपी मोदी ने aajtak से कहा, ऐसी सर्जरी आमतौर पर बड़ी रिस्की होती है. इस केस में हमने सबसे पहले हड्डी को काटा और धीरे-धीरे रीढ़ की हड्डी को सीधा किया. इस दौरान ख़ास ध्यान रखा गया कि रीढ़ की नसों को नुकसान न पहुंचे. रीढ़ की हड्डी के तिकोने आकार वाले हिस्से को काटा गया और फिर बची हुई हड्डी को फिर से जोड़ा गया. स्नेहल को सीधा करने की सर्जरी के दौरान, हड्डी काटने और रीढ़ की हड्डी को सीधा करने के प्रोसेस में एक छोटी गलती से भी मरीज हमेशा के लिए पैरालाइज्ड हो सकता था. ये जटिल सर्जरी चार घंटे से ज़्यादा चली, लेकिन उसके बाद स्नेहल एक ही दिन में फिर से सीधा खड़ा हो गया और उसके लिए चलना समेत सामान्य क्रियाए कर पाना सरल हो सका.