एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इसे 'मौत का तांडव' कहते हैं. अंधेरा होने के बाद दिल्ली की सड़कों पर निकलना खतरनाक हो गया है. हर रोज जब दिल्ली के एक करोड़ से ज्यादा लोग नींद की आगोश में होते हैं तो यहां सड़क दुर्घटनाओं में औसतन आठ लोग काल के गाल में समा जाते हैं.
उक्त पुलिस अधिकारी कहते हैं, 'यह सब शराब पीकर तेज गाड़ी चलाने का नतीजा होता है. रात में सड़कों पर पुलिस के जवान कम होते हैं, ट्रैफिक कम होती है, ऐसे में शराब के नशे में तमाम कार ड्राइवर लापरवाही से ड्राइविंग करते हैं और खासकर दोपहिया चालकों या पैदल चलने वालों को ठोंक देते हैं.'
साल 2018 में अब तक दिल्ली में हर रात सड़क दुर्घटनाओं में औसतन आठ लोगों की जान गई है, जबकि दिन में सड़क दुर्घटनाओं में औसतन छह लोगों की मौत हुई है. पुलिस ने दुर्घटना संभावित जगहों की पहचान की है और रात में गश्त बढ़ा दी है. शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है.
सड़कों के टी पॉइंट, मुख्य रोड से जुड़ने वाली सड़कों, चौराहों, फ्लाइओवर के एग्जिट और एंट्री पॉइंट आदि सबसे खतरनाक जगह माने जाते हैं. ऐसी दो लेन वाली सड़कें, जहां ओवरटेकिंग के चक्कर में दुर्घटनाएं होती हैं, वे भी पुलिस के रडार पर हैं. सबसे खतरनाक समय रात 9 बजे से सुबह 3 बजे तक होता है.
सबसे ज्यादा ये करते हैं एक्सीडेंट
इस साल अगस्त तक शहर में 998 प्राणघातक सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जबकि पिछले साल की इसी अवधि में 961 दुर्घटनाएं हुईं थीं. इस साल की दुर्घटनाओं में 40 फीसदी हिस्सा हिट ऐंड रन केस का है. 20 फीसदी दुर्घटनाओं के लिए बस या ऑटो रिक्शा ड्राइवर जिम्मेदार पाए गए हैं. 18 फीसदी मामलों में कार चालक दोषी पाए गए हैं.
ये होते हैं सबसे ज्यादा शिकार
दुर्घटना का सबसे ज्यादा शिकार पैदल चलने वाले और दोपहिया वाहन चालक होते हैं. दुर्घटना के शिकार होने वाले लोगों में 42 फीसदी पैदल चलने वाले और 36 फीसदी दोपहिया चालक थे. दुर्घटनाओं में मरने वालों में 90 फीसदी पुरुष थे.