सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 10 सालों से नवंबर का महीना दिल्ली और आसपास के शहरों के लिए सबसे प्रदूषित साबित हुआ है. साल 2016 और साल 2024 में नवंबर का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 374 दर्ज किया गया जो 'बहुत खराब' श्रेणी में आता है. यहां तक कि कोविड महामारी के दौरान जब पूरे देश में सबकुछ ठप था तब भी दिल्ली की हवा में कोई खास सुधार नहीं हुआ.
साल 2020 में AQI 328 था जबकि 2021 में यह बढ़कर 377 हो गया जो पूरे दशक का सबसे खराब स्तर था. पिछले 10 सालों में से 6 बार नवंबर में दिल्ली की हवा ने सबसे खराब रिकॉर्ड बनाया. इतना ही नहीं नवंबर में AQI कभी 300 से नीचे नहीं गया यानी यह हमेशा 'बहुत खराब' या 'गंभीर' श्रेणी में ही रहा.
प्रदूषण रोकने के लिए उठाए जा रहे कदम
इस साल भी बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए कमिशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने कुछ सख्त फैसले लिए हैं. एक नवंबर से दिल्ली में बाहर से आने वाले पुराने डीजल ट्रक या BS-VI नियमों का पालन न करने वाले वाणिज्यिक वाहनों का प्रवेश पूरी तरह बंद रहेगा. इसके अलावा ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के तहत निर्माण कार्यों से उठने वाली धूल, फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं और डीजल जेनरेटर के इस्तेमाल पर रोक लगाई जा रही है.
पराली है दिल्ली के स्मॉग की सबसे बड़ी वजह?
दिल्ली की जहरीली हवा की एक बड़ी वजह शहर के बाहर यानी पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना है. IARI (इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट) के आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर तक खेतों में आग लगाने के मामले तेजी से बढ़ जाते हैं.
साल 2023 में पंजाब में अक्टूबर में 7,459 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज हुईं जो नवंबर में बढ़कर 28, 990 हो गईं. हरियाणा में ये संख्या लगभग समान अक्टूबर में 1,122 और नवंबर में 1,106 हो गई. साल 2024 में पराली जलाने के मामलों में कमी तो आई लेकिन अक्टूबर 2024 में दिल्ली का औसत AQI 234 था जो नवंबर में बढ़कर 374 पहुंच गया.
हर साल वही कहानी
इस साल भी हालात कुछ अलग नहीं दिख रहे. अक्टूबर में ही दिल्ली के कई दिन 'बहुत खराब' श्रेणी की हवा के साथ गुजरे हैं. अगर यही रुझान जारी रहा तो नवंबर फिर से दिल्ली के लिए दम घोंटने वाला महीना साबित हो सकता है.
साफ शब्दों में कहें तो नवंबर आते ही दिल्ली की हवा हर साल जहरीली होती जाती है. खेतों में पराली जलाने से उठता धुआं, शहर की धूल और निर्माण कार्य, गाड़ियों का धुआं और ठंडी हवा जो प्रदूषण को जमीन पर रोक देती है, सब मिलकर दिल्ली को हर साल गैस चैंबर में तब्दील कर देते हैं.