क्या आपको कभी दूध पीने या डेयरी प्रोडक्ट्स खाने के बाद पेट फूलने, गैस बनने या पेट में तकलीफ होने का एहसास हुआ है? अगर इसका जवाब हां है, तो आप खास नहीं हैं. जी हां, आप खास इसलिए नहीं है क्योंकि ऐसा सिर्फ आपको ही नहीं बल्कि भारत की आधी से ज्यादा जनता को होता है और इस परेशानी को लैक्टोज इनटोलरेंस कहा जाता है. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिकल के मुताबिक, भारत के करीब 60% लोग इससे पीड़ित हैं और दुनिया की करीब 65 प्रतिशत आबादी लैक्टोज इनटोलरेंस है. इससे ज्यादा चौंकाने वाली ये है कि ज्यादातर लोगों को इसका पता भी नहीं चलता और ना ही एहसास होता है कि उन्हें ये बीमारी है. यह समस्या बहुत आम है, लेकिन अक्सर लोग इसके लक्षणों को दूसरी समस्याओं के संकेत समझ लेते हैं.
लेकिन अब सावल ये है कि लैक्टोज इनटोलरेंस आखिर है क्या? इस बीमारी से सबसे ज्यादा कौन लोग प्रभावित होते हैं? ऐसा क्यों होता है और इसके पीछे मुख्य वजह क्या है? अगर आप सबके मन में भी यही सवाल उठ रहे हैं तो ये आर्टिकल आपके लिए है. आज इसमें हम आपको लैक्टोज इनटोलरेंस के बारे में बताएंगे, जो आपकी जिंदगी को प्रभावित करता है. अगर आपने कभी सोचा है कि डेयरी प्रोडक्ट्स आपको क्यों पसंद नहीं आते, तो अब असली वजह जानने का समय आ गया है.
लैक्टोज इनटोलरेंस एक आम डाइजेस्टिव प्रॉब्लम है, जिसमें आपका शरीर दूध और डेयरी प्रोडक्ट्स में मौजूद चीनी लैक्टोज को पूरी तरह पचा नहीं पाता. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपकी छोटी इंटेस्टाइन पर्याप्त मात्रा में लैक्टोज एंजाइम नहीं बना पाती, जो लैक्टोज को ब्रेक करने में मदद करता है.
ये समस्या जानलेवा नहीं है, लेकिन इससे पेट दर्द, गैस और बेचैनी जैसी परेशानियां हो सकती है. इसका कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन आप डाइट में दूध और डेयरी प्रोडक्ट्स की मात्रा कम करके इसे आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं.
आम लोगों में स्मॉल इंटेस्टाइन में मौजूद लैक्टेज एंजाइम दूध की चीनी (लैक्टोज) को तोड़ देता है, जिससे ये आसानी से शरीर में अब्जॉर्ब हो जाता है. लेकिन जिन लोगों को लैक्टोज इनटोलरेंस होता है, उनके शरीर में लैक्टेज भरपूर मात्रा में नहीं बनता. ऐसे में लैक्टोज टूट नहीं पाता और सीधे लार्ज इंटेस्टाइन में चला जाता है. वहां यह बैक्टीरिया के साथ मिलकर गैस, पेट फूलना और दस्त जैसी समस्याएं पैदा करता है.
लैक्टोज इनटोलरेंस तब होता है जब आपका शरीर लैक्टेज एंजाइम कम बनाता है. यह एंजाइम आपकी स्मॉल इंटेस्टाइन में लैक्टोज (दूध की चीनी) को तोड़ने का काम करता है. आपकी इंटेस्टाइन की सेंसिटिविटी भी इसमें बड़ी भूमिका निभाती है. जब आप ऐसी चीजें खाते हैं जिन्हें आपका शरीर पूरी तरह नहीं डाइजेस्ट कर पाता, तो वो लार्ज इंटेस्टान तक पहुंच जाती हैं. वहां मौजूद बैक्टीरिया उन्हें तोड़ते हैं. ये बैक्टीरिया हर व्यक्ति में अलग होते हैं, जिसे 'गट बायोम' (इंटेस्टाइन माइक्रोब्स) कहा जाता है. यही वजह है कि लैक्टोज इनटोलरेंस के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं.
उम्र बढ़ने के साथ शरीर में लैक्टेज़ एंजाइम का प्रोडक्शन कम हो जाता है, जिससे लैक्टोज डाइजेस्ट करना मुश्किल हो जाता है. आपकी इंटेस्टाइन का बायोम भी बदलता है. एक स्टडी में पाया गया कि 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में लैक्टोज को पचाने की क्षमता और भी कम हो जाती है, जिससे इसके लक्षण ज्यादा दिखने लगते हैं.
लैक्टोज इनटोलरेंस चार तरह का होता है. चलिए जानते हैं उनके बारे में.
प्राइमरी लैक्टोज इनटोलरेंस: यह सबसे कॉमन है. इसमें आपका शरीर धीरे-धीरे डेयरी प्रोडक्ट्स को डाइजेस्ट करने के लिए लैक्टेज एंजाइम बनाना कम कर देता है.
सैकेंड्री लैक्टोज इनटोलरेंस: यह तब होता है जब कोई बीमारी या चोट आपके शरीर में लैक्टेज का प्रोडक्शन कम या बंद कर देता है. यह क्रोहन डिजीज, इंटेस्टाइन इंफेक्शन, सीलिएक डिजीज, या स्मॉल इंटेस्टाइन की चोट या सर्जरी के कारण हो सकती है. बीमारी ठीक होने पर ये समस्या भी अक्सर धीरे-धीरे ठीक हो जाती है.
कॉनजेनिटल (जन्मजात) लैक्टोज इनटोलरेंस: यह बहुत रेयर/दुर्लभ है. इसमें बच्चा पैदा होते ही पर्याप्त लैक्टेज एंजाइम नहीं बना पाता. यह एक जीन से जुड़ी समस्या है जो बच्चे को माता-पिता से मिलती है.
डेवलपमेंटल लैक्टोज इनटोलरेंस: यह समय से पहले पैदा हुए बच्चों (प्रिमैच्योर बेबी) में होती है क्योंकि उनकी स्मॉल इंटेस्टाइन पूरी तरह डेवेलप नहीं होती. जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, यह समस्या अक्सर खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है.
डेयरी प्रोडक्ट्स खाने या पीने के बाद लैक्टोज इनटोलरेंस के लक्षण आमतौर पर कुछ घंटों बाद दिखाई देते हैं, क्योंकि बिना पचा हुआ लैक्टोज़ लार्ज इंटेस्टाइन तक पहुंचने में समय लेता है. इसके लक्षणों में पेट फूलना, गैस बनना, उल्टी जैसा मन होना, पेट में दर्द या ऐंठन, दस्त और कभी-कभी पेट से गुड़गुड़ाहट जैसी आवाजें आना शामिल हैं. ये लक्षण हल्के भी हो सकते हैं और कभी-कभी ज्यादा परेशान भी कर देते हैं. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कितना लैक्टोज लिया है और आपका शरीर इसे कितना सहन कर पाता है.
लैक्टोज इनटोलरेंस का इलाज मुश्किल नहीं है और इसे आप अपनी डाइट में छोटे-छोटे बदलाव करके आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं. आप अपनी डाइट में डेयरी प्रोडक्ट्स की मात्रा घटा सकते हैं. कुछ लोगों को डेयरी प्रोडक्ट्स खाने के साथ लेने पर परेशानी कम होती है. कुछ डेयरी प्रोडक्ट जैसे हार्ड चीज या दही डाइजेस्ट में आसान होते हैं. लैक्टोज इनटोलरेंस से पीड़ित लोग ये खा सकते हैं.
आजकल बाजार में लैक्टोज-फ्री डेयरी प्रोडक्ट्स भी आसानी से मिल जाते हैं. अगर आप असली दूध ही पीना चाहते हैं, तो आप ऐसे सप्लीमेंट ले सकते हैं जो दूध की शुगर को तोड़ने में मदद करते हैं.
आप अपने डॉक्टर से लिक्विड लैक्टेज ड्रॉप्स के बारे में भी पूछ सकते हैं, जिन्हें दूध में मिलाकर पिया जा सकता है.
प्रोबायोटिक्स से भरपूर फूड्स खाने से भी लैक्टोज इनटोलरेंस में मदद मिल सकती है. कुछ रिसर्च में पाया गया है कि लैक्टिक एसिड प्रोबायोटिक्स वाला दही पचाने में आसान होता है और लक्षण कम कर सकता है, हालांकि इस पर और रिसर्च की जरूरत है.