मुंबई में गुरुवार को बच्चों को बंधक बनाने की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया. चंद मिनटों में ही हर चैनल पर ये खबर छा गई. पुलिस पूरे मामले को ट्रैक कर ही रही थी कि तभी एक वीडियो सोशल मीडिया पर फ्लैश होने लगा. वीडियो में बोल रहे शख्स ने अपना नाम रोहित आर्य बताते हुए जो कहा, वो न कोई बड़ी मांग थी और न ही कोई बड़ी धमकी. हालांकि कुछ देर में ही पुलिस ने पूरा केस सुलझा लिया. इस केस के आरोपी रोहित आर्य के मनोवैज्ञानिक पहलू को समझिए.
क्या थी इस घटना के पीछे की मंशा
इस घटना के बाद से एक तरफ पुलिस की सूझबूझ और तत्परता की तारीफ हो रही है, वहीं दूसरी तरफ ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या इस पूरी वारदात के पीछे किडनैपर की बिगड़ी हुई मानसिक स्थिति जिम्मेदार थी? वीडियो में किडनैपर रोहित आर्या के हावभाव, उसकी बातें और बार-बार आत्महत्या जैसे जुमले, एक बात साफ बताते हैं कि मामला सिर्फ क्राइम का नहीं था, ये मानसिक असंतुलन का भी था. एक ऐसा असंतुलन जो सिस्टम या समाज से मिली हताशा से भी हो सकता है.
ऐसे हादसे टाले जा सकते हैं...?
जब उसने कहा कि उसने 'सुसाइड की जगह ये रास्ता चुना...' यानी उसके भीतर कोई गहरी बेचैनी, असंतोष या मानसिक संघर्ष चल रहा था. ये संकेत हैं कि उसका दिमाग लंबे समय से दबाव, अकेलेपन या असफलता के बोझ में था. उसे शायद किसी मदद की दरकार थी. मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि कई बार लोग खुद को मानसिक रूप से इतना कमजोर महसूस करते हैं कि अपराध या सुसाइड जैसे कदम उन्हें रास्ता लगने लगते हैं. लेकिन अगर समय रहते समस्या का हल या काउंसलिंग या थेरेपी मिल जाए तो ऐसे हादसे टाले जा सकते हैं.
डॉ सत्यकांत आगे कहते हैं कि रोहित आर्य ने जैसा कदम उठाया वो एक तरह का‘पब्लिक डिस्प्ले ऑफ डिस्ट्रेस’ है जो मदद मांगने के अंतिम तरीका यानी हिंसा है. असल में ये केस सिर्फ एक क्राइम नहीं बल्कि एक अलार्म बेल है. अगर हम मेंटल हेल्थ को इग्नोर करते रहे और लोगों को 'पागल' या 'साइकोपैथ' कहकर हाशिए पर धकेलते रहे तो ऐसे हादसे दोहराए जा सकते हैं. फर्क सिर्फ इतना होगा कि अगली बार किसी और शहर में, किसी और चेहरे के साथ लेकिन कहानी वही हो सकती है. हमने एक्सपर्ट से रोहित आर्य के वीडियो में दिए बयान से उसकी मानसिक स्थिति को समझने की कोशिश की है.
बयानों में छिपे मनोविज्ञान को समझिए...
मैं खुद को खत्म करना चाहता था, पर सुसाइड नहीं किया... ये वाक्य सुसाइडल आइडिएशन (Suicidal Ideation) का संकेत है. इससे लगता है कि कोई व्यक्ति आत्महत्या के विचारों से जूझ रहा है, लेकिन खुद को रोकने की कोशिश कर रहा है. विशेषज्ञ कहते हैं कि कई बार व्यक्ति आत्महत्या तो नहीं करता लेकिन कोई 'ड्रामेटिक एक्शन' लेकर दुनिया को अपने दर्द का गवाह बनाना चाहता है. ये 'क्राई फॉर हेल्प' का क्लासिक केस है.
मुझसे गलती हो गई, पर कोई सुनता नहीं... ये वाक्य Perceived Isolation यानी समाज से महसूस की गई दूरी दिखाता है. ऐसे लोग अक्सर ये मान लेते हैं कि उनकी बातें, दुख या संघर्ष किसी के लिए मायने नहीं रखते. इससे डिप्रेसिव विचारों का पूरा लूप बनता है. इसमें इंसान खोजता है कि मैं अकेला हूं, मुझे कोई नहीं समझता. विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसी सोच धीरे-धीरे व्यक्ति को रिऐलिटी डिटैचमेंट की तरफ ले जाती है. उसे लगने लगता है कि उसकी सच्चाई दुनिया से अलग है.
अब मुझे फर्क नहीं पड़ता, जो होगा देखा जाएगा...ये लाइन भी इम्पल्सिव ब्रेकडाउन का संकेत है. कोई व्यक्ति जब लंबे समय से तनाव, असफलता या अपराध-बोध झेलता है तो उसका रिस्क परसेप्शन खत्म हो जाता है यानी उसे परिणामों की परवाह नहीं रहती.
मनोचिकित्सक डॉ. अनिल शेखावत के अनुसार ये लॉस ऑफ कंट्रोल फेज होता है जिसमें व्यक्ति खुद को बाहरी ताकतों के हवाले कर देता है, कई बार हिंसा या आत्मघाती कदम के रूप में.
फिलहाल रोहित आर्या की मानसिक स्थिति पर कोई ठोस टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी. जांच और विशेषज्ञों की राय का इंतजार करना जरूरी है. लेकिन उनके बयानों और व्यवहार के संकेत अगर सही साबित होते हैं तो ये देश में मेंटल हेल्थ क्राइसिस मैनेजमेंट पर एक बड़ा सवाल खड़ा करते हैं.