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फुल क्रीम दूध को लेकर क्या अब तक जो मान बैठे थे, वो झूठ था! यंग लोग जरूर पढ़ें नई रिसर्च

फुल फैट मिल्क को अक्सर हार्ट हेल्थ एक्सपर्ट बुरा बताते आए हैं, लेकिन इस बीच एक नई रिसर्च में फुल फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट्स को लेकर चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं.

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दूध में फैट की मात्रा ही मायने नहीं रखती (Photo: AI-generated/freepik)
दूध में फैट की मात्रा ही मायने नहीं रखती (Photo: AI-generated/freepik)

भारत में अधिकतर घरों में रोजाना दूध और दूध से बनी चीजों का इस्तेमाल किया जाता है. पिछले कई दशकों से हार्ट हेल्थ पर होने वाली चर्चाओं में फुल फैट मिल्क को बुरा माना जाता रहा है. इसे कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने और धमनियों में रुकावट पैदा करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है. 

स्वास्थ्य दिशानिर्देश हमेशा से लो-फैट या नॉन-फैट डेयरी लेने की सलाह देते रहे हैं, ताकि सैचुरेटेड फैट की मात्रा कम हो और दिल पर बोझ न पड़े. लेकिन एक नई स्टडी ने इस सोच को चुनौती देते हुए फुल फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट्स को लेकर दिलचस्प नतीजे पेश किए हैं. 

क्या कहती है नई रिसर्च? 

हालिया शोध के अनुसार, युवावस्था में पूरा-वसा डेयरी का इस्तेमाल आगे चलकर कोरोनरी आर्टरी कैल्सिफिकेशन यानी धमनियों में कैल्शियम जमने के जोखिम को कम कर सकता है. कोरोनरी आर्टरी कैल्सिफिकेशन को दिल की बीमारियों का एक मजबूत संकेतक माना जाता है.

3,000 से ज्यादा लोगों पर हुई स्टडी 

कार्डिया स्टडी से सामने आया है, जिसमें 18 से 30 साल की उम्र के 3,110 लोगों को करीब 25 साल तक फॉलो किया गया. इस दौरान उनका काम बस इतना था कि यंग लोगों में डेयरी प्रोडक्ट का सेवन कोरोनरी धमनी कैल्सीफिकेशन (सीएसी) से कैसे संबंधित है. यानी धमनियों में कैल्शियम का जमाव कितना है जो अक्सर शुरुआती दिल की बीमारियों का संकेत देता है.

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  • शुरुआत में और फिर 7 साल बाद उनकी डेयरी सेवन की आदतें दर्ज की गईं.
  • कोरोनरी आर्टरी कैल्सिफिकेशन की जांच 15, 20 और 25वें साल में की गई.

 
स्टडी के दौरान 904 लोगों में CAC विकसित हुआ, दिलचस्प बात यह रही कि जिन लोगों ने शुरुआती सालों में ज्यादा डेयरी लिया, उनमें CAC होने का खतरा लगभग 24 प्रतिशत कम पाया गया.

हालांकि जब BMI यानी वजन और लंबाई के आधार पर शरीर के आकार को भी एनालिसिस में शामिल किया गया, तो यह रिलेशन थोड़ा कमजोर हो गया.

इसका मतलब यह है कि जो पार्टिसिपेंट्स रेगुलर फुल-फैट दूध पीते थे या फुल-फैट दही और पनीर खाते थे, उनमें उन लोगों की तुलना में आर्टरी डैमेज होने की संभावना कम थी, उनके मुकाबले जो कम डेयरी प्रोडक्ट्स खाते थे या लो-फैट ऑप्शन चुनते थे.  

दूध में फैट दुश्मन क्यों नहीं?

दूध में फैट का मतलब ज्यादा कोलेस्ट्रॉल होता है, जिसका मतलब है अधिक दिल की बीमारियां. लेकिन इंसानी शरीर इतना आसान नहीं है.  सभी डेयरी प्रोडक्ट्स में फैटी एसिड का मिश्रण होता है, जिनमें से कुछ वास्तव में अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) को बनाए रखने और सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं, जो दिल की रक्षा करने वाले दो कारक माने जाते हैं.

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लो-फैट बनाम फुल-फैट: क्या है असली फर्क?

स्टडी में यह पाया गया कि जो लोग अधिक डेयरी प्रोडक्ट खाते हैं, उनका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) थोड़ा कम होता है, जिससे पता चलता है कि डेयरी प्रोडक्ट मन को संतुष्ट कर सकते हैं और डाइट में कहीं और ज्यादा खाने से रोक सकते हैं.  

नतीजे बताते हैं कि दूध-दही में सिर्फ फैट की मात्रा ही मायने नहीं रखती. बल्कि पूरा डेयरी मेट्रिक्स जिसमें फैट, प्रोटीन, मिनरल और अन्य पोषक तत्व एक साथ काम करते हैं. शरीर पर अलग तरह से असर डाल सकते हैं. 

क्लिनिकल एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं?

हार्ट डिजीज एक्सपर्ट और न्यूट्रीशन साइंटिस्ट अब इस दिशा में सोचने लगे हैं कि डेयरी को केवल फैट प्रतिशत के आधार पर अच्छा या बुरा बताना गलत हो सकता है. अगर आने वाली बड़ी रिसर्च भी ऐसे ही नतीजे देती हैं, तो संभव है कि भविष्य में हेल्थ गाइडलाइंस में बदलाव आए और फोकस फैट की मात्रा से हटकर खुल फूड बैलेंस पर जाएं. 

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