जबसे सरकार ने पतंजलि की ओर से लॉन्च की गई कोरोना की दवा 'कोरोनिल' के प्रचार पर रोक लगाई है, तबसे इसके ट्रायल, मंजूरी आदि विभिन्न पहलुओं को लेकर बहस शुरू हो गई है. लेकिन क्या पंतजलि की दवा पर यह प्रतिबंध आयुष मंत्रालय के टॉप मुस्लिम विशेषज्ञों ने लगवाया? फेसबुक पर तो ऐसा ही दावा किया जा रहा है.
सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है, जिसमें कहा जा रहा है कि आयुष मंत्रालय रामदेव की इस दवा को इसलिए रोक रहा है, क्योंकि दवाओं को मंजूरी देने वाले उसके मुख्य वैज्ञानिक मुस्लिम हैं.
इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि वायरल पोस्ट में किया गया दावा गलत है. इस लिस्ट में मौजूद नाम दरअसल किसी ऐसे पैनल से नहीं जुड़े हैं जो दवाओं के लिए लाइसेंस जारी करता हो. ये सभी नाम आयुष मंत्रालय की यूनानी चिकित्सा विभाग की वेबसाइट से लिए गए हैं. दूसरे, आयुर्वेदिक दवाओं के लिए लाइसेंस राज्य सरकारों के आयुष मंत्रालय की ओर से जारी किया जाता है.
एक ट्विटर यूजर ने एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा, “आयुष मंत्रालय में दवाईयों पर रिसर्च और अप्रूवल देने वाले साइंटिफिक पैनल के टॉप 6 साइंटिस्टों का नाम पढ़िए
•असीम खान
•मुनावर काजमी
•खादीरुन निशा
•मकबूल अहमद खान
•आसिया खानुम
•शगुफ्ता परवीन
बाकी समझ जाईये की रामदेव के कोरोनिल दवा पर रोक क्यों लगी थी, यही है सिस्टम जिहाद?”
खबर लिखे जाने तक इस पोस्ट को 2600 लोग लाइक कर चुके थे और 1500 लोग रीट्वीट कर चुके थे; इसका आर्काइव यहां देखा जा सकता है.
यही पोस्ट फेसबुक पेज 'लेनी देनी' और 'आंखों देखी साहिल पटेल' पर भी शेयर की गई है. यह पोस्ट फेसबुक के साथ वॉट्सएप पर भी वायरल है.
कैसे मिलती है दवा को मंजूरी
पद्मश्री व अखिल भारतीय आयुर्वेद कांग्रेस के अध्यक्ष देवेंद्र त्रिगुणा ने बताया कि वर्तमान में आयुर्वेदिक दवाओं के लिए लाइसेंस राज्य सरकारों के आयुष मंत्रालय देते हैं. उत्तराखंड आयुर्वेद विभाग के लाइसेंस अफसर डॉक्टर वाईएस रावत ने हाल ही में बयान दिया है कि उनके विभाग ने रामदेव की संस्था पतंजलि को खांसी-बुखार ठीक करने व इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवा के लिए लाइसेंस जारी किया था.
उनके आवेदन में कोविड-19 बीमारी की दवा बनाने का जिक्र नहीं था, न ही इसके लिए उन्हें लाइसेंस जारी किया गया. मीडिया में इससे जुड़ी खबरें प्रकाशित हुई हैं.
यूनानी चिकित्सा विभाग की वेबसाइट से लिए गए ये नाम
आयुष मंत्रालय की वेबसाइट पर हमें उससे जुडी संस्थाओं और उनके अधिकारियों के बारे में जानकारी मिली. इस लिस्ट में हमें प्रोफेसर आसिम अली खान का नाम भी दिखा. आसिम अली खान 'केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद' (CCRUM) से जुडे हैं, जो आयुष मंत्रालय के अंतर्गत आता है. इससे मिलता-जुलता नाम असीम खान वायरल सूची में पहले नंबर पर दिया गया है.
इसके बाद हमने कीवर्ड की मदद से सर्च किया, तो हमें बाकी के सभी नाम भी 'केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद' (CCRUM) की वेबसाइट पर मिल गए, वह भी ठीक उसी क्रम में, जिस क्रम में इन्हें वायरल मैसेज में लिखा गया है. इन नामों को CCRUM की वेबसाइट पर देखा जा सकता है;
वेबसाइट पर किसी पैनल का कोई जिक्र नहीं
हमने उत्तराखंड सरकार की वेबसाइट में दवाओं को लाइसेंस जारी करने वाले किसी साइंटिफिक पैनल का ब्यौरा नहीं मिला. यहां राज्य औषधि अनुज्ञापन अधिकारी का जिक्र जरूर मिला, जिसके जिम्मे दवाएं बनाने वाली लैब्स को लाइसेंस जारी करने और उनके लाइसेंस का रीन्यूअल करने जैसे काम होते हैं. इसकी विस्तृत जानकारी विभाग की वेबसाइट पर देखी जा सकती है.
पड़ताल से स्पष्ट है कि सोशल मीडिया पर किया जा रहा दावा भ्रामक है और पोस्ट में दिए गए नाम यूनानी चिकित्सा विभाग के वैज्ञानिकों के हैं.
आयुष मंत्रालय ने रामदेव की दवा कोरोनिल पर रोक इसलिए लगाई क्योंकि उसके साइंटिफिक पैनल के कुछ प्रमुख लोग मुस्लिम हैं.
वायरल हो रहे वैज्ञानिकों के नाम यूनानी चिकित्सा विभाग से जुडे हैं और वे दवाओं को मंजूरी देने वाले किसी पैनल का हिस्सा नहीं हैं. आयुर्वेदिक दवाओं के लिए लाइसेंस राज्य सरकारों के आयुष मंत्रालय देते हैं.