प्रेम का कोई रंग होता है? Quora पर इस सवाल को पूछने वाले और इसका जवाब देने वालों की लंबी फेहरिस्त है. फिर भी वसंत के इस मौसम में जब धरती ने धानी-पीली चुनरिया सी ओढ़ रखी है इस दौरान जब दुनिया भर में प्रेम पर्व मनाया जा रहा है तो इसके सारे प्रतीक 'लाल' रंग के क्यों दिख रहे हैं. लाल गुलाब, लाल दिल, रंगीन परिधान पर उनमें कहीं न कहीं लाल की मौजूदगी, यहां तक की जो भी सजावटें हैं उनमें भी लाल रंग कहीं न कहीं दिख जाता है. कुल मिलाकर मौसम में पीतांबरी आभा (पीला रंग) है और दीवाने लालम लाल हो रखे हैं. क्या वाकई में लाल ही प्रेम का रंग है?
ये सवाल उठता है तो पहले बाबा रहीम याद आते हैं. इस सवाल का जवाब देने का उनका अपना ढंग है, वह कहते हैं कि...
'रहिमन प्रीत सराहिए, मिलत होए रंग दून
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून'
इसका भाव है कि, जहां सच्ची प्रीत होती है तो वह आपस में मिलकर और गाढ़ी हो जाती है. वह दोनों अपना-अपना रंग (स्वभाव) छोड़ देते हैं. जैसे हल्दी और चूना मिला दिया जाए, हल्दी पीली नहीं रह जाती है और चूना सफेद नहीं रह जाता है. इनसे मिलकर कोई एक अलग ही रंग बनता है और वह बहुत गाढ़ा (दोनों के वास्तविक रंग से अलग) होता है.
इतना कहने के बाद रहीम दास ने आगे नहीं बताया कि ये रंग कौन सा बनेगा. लेकिन उनके कहे मुताबिक आप कभी हल्दी में चूना मिलाकर देखिए तो इस रासायनिक अभिक्रिया से नया रंग कुंकुम का बनकर आता है, जो गेरुआ सा टच लिए हुए गाढ़ा लाल होता है.
तो क्या इसलिए मान लिया जाए कि प्रेम का रंग गाढ़ा लाल होता है? हो सकता है कि इश्क का रंग लाल वाला कॉन्सेप्ट यहीं से निकल कर आया हो.
क्योंकि ये बात तो है कि, रंगों का हमारी भावनाओं पर गहरा असर पड़ता है. इस बात को मनोविज्ञान भी मानता है. सांस्कृतिक नजरिए से देखें, तो प्रेम को मुख्य रूप से लाल रंग से जोड़ा जाता है. लाल रंग ऊर्जा, उत्साह और गहरी भावनाओं का प्रतीक है. वैलेंटाइन डे पर लाल गुलाब देने की परंपरा इसीलिए है, क्योंकि ये आपके जुनून को दिखाता है. प्रेम में लाल गुलाब कैसे आया इस सवाल का जवाब ग्रीक माइथोलॉजी से मिलता है.

क्यों देते हैं लाल गुलाब?
ग्रीक देवी एफ्रोडाइट को प्रेम, सौंदर्य और काम भावना की भी प्रतीक मानी जाती हैं. वह प्रजनन और उर्वरा शक्ति की भी देवी हैं. देवी एफ्रोडाइट का सौंदर्य ऐसा था कि वह जहां से गुजरती थीं वहां खुश्बूदार लाल फूल उग आते थे. जो वातावरण को जादुई बना देते थे. बस इसी तरह लाल गुलाब को प्यार और कामनाओं का प्रतीक माना जाने लगा. ऐसी ही एक कहानी, ग्रीक मिथक के किरदार एडोनिस को भी देवता का दर्जा मिला है.
कहते हैं कि देवता एडोनिस एक बार शिकार पर गए थे. इस शिकार के दौरान किसी दुश्मन ने उन पर छिपकर वार किया. एडोनिस उस वक्त इच्छा की देवी एफ्रोडिटी के साथ थे. वह दुश्मन भी एफ्रोडिटी को पाना चाहता था. एडोनिस उसके जहरीले तीरों से घायल हो गया और उसके सीने से खून की धारा फूट पड़ी. इसके बावजूद वह एफ्रोडिटी को बचाने के लिए संघर्ष करता रहा. इस संघर्ष में इच्छा की देवी भी घायल हो गई थी. दोनों के खून की बूंदें मिलकर फूलों की घाटी में गिरीं. एफ्रोडिटी को बचाने के संघर्ष में एडोनिस की मृत्यु हुई और जहां उसका शरीर गिरा, कुछ दिनों बाद वहां एक झाड़ उग आया. एडोनिस के खून से सींची उस जमीन से उगा वो पौधा लाल गुलाबों का पौधा था. इसके बाद से ही लाल गुलाब त्याग और जुनून का प्रतीक बन गए.
ये तो कहानी हो गई प्रेम में लाल गुलाब दिए जाने की वजह की, लेकिन प्रेम केवल लाल रंग तक सीमित नहीं है. इसके अलग-अलग शेड भी प्रेम के आसपास की ही भावनाएं जाहिर करने में काम आते हैं. अब जैसे गुलाबी रंग को ही ले लीजिए, ये कोमलता और मासूमियत से जोड़ा जाता है. यानी अगर आप अभी नए-नए दोस्त बने हैं और ये दोस्ती भविष्य में प्रेम की संभावनाओं की खोज यात्रा होने वाली है तो आप गुलाबी गुलाब से इसका इजहार कर सकते हैं.

गुलाबी रंग से भी जताया गया है प्यार
गुलाबी रंग की खूबसूरती के चर्चे तो अलग ही रहे हैं. एक पुराना फोक फिल्मी गीत तो सुना ही होगा... हमरो गुलाबी दुपट्टा हमें तो लग जाएगी नजरिया रे... इसी तरह बीते साल एक पहाड़ी गीत रील्स की दुनिया में खूब वायरल हुआ था. गाना था गुलाबी शरारा... इसकी लिरिक्स देखिए
ठुमक ठुमक जब हिट छै
तू पहाड़ी बाट्यूं मां
छम छम पायल घुंघरू
बजनी त्यार खुट्यूं मा
लाल त्यार कंगन हाथों मा
चूड़ी छन हरा
चुनरी तेरी.... आये हाये..चुनरी तेरी चमकनी गुलाबी शरारा
सनातन परंपरा में लाल के ही दो शेड हैं भगवा और केसरिया. भगवा रंग तो सीधे-सीधे देवत्व का रंग है. ये उगते हुए सूर्य का रंग है जो ऊर्जा, सकारात्मकता और सृजन का प्रतीक है. इसी के साथ केसरिया त्याग का प्रतीक है. आजादी के संघर्ष के दिनों में केसरिया क्रांति का रंग बनकर उभरा और मौजूदा दौर में यह देशप्रेम का रंग है, लेकिन इसकी जड़ों में जाएं तो यह भी प्रेम की उस शुद्ध भावना का प्रतीक है, जिसमें वासना नहीं है. यह दैहिक से अलग दैवीय प्रेम है. इसी का एक नाम वसंती है और देशभक्ति गीतों में बसंती (वसंती) शब्द बहुत आया है. मेरा रंग दे बसंती चोला... देशप्रेम का ही गीत है.
अभी बीते सालों में जब ब्रह्मास्त्र फिल्म बनी तो इसका एक गाना बहुत फेमस हुआ... केसरिया तेरा इश्क है पिया, रंग जाऊं जो तुझे हाथ लगाऊं. इससे पहले शाहरुख खान और काजोल जब कई सालों बाद सिल्वर स्क्रीन पर साथ आए तो उन्होंने एक-दूसरे से प्रेम भरी अपील में कहा...
धूप से निकल के, छांव से फिसल के
हम मिले जहां पर, लम्हा थम गया,
आसमान पिघल के, शीशे में ढल के
जम गया तो तेरा चेहरा बन गया.
दुनिया भुला के तुमसे मिला हूं,
निकली है दिल से ये दुआ,
रंग दे तू मोहे गेरुआ.
बात जब फिल्मी गीतों की निकल ही गई है तो इस सिलसिले को गौर से देखते हैं. याद आता है कि बॉलीवुड तो फिल्मी गानों के मामलों में सिर्फ लाल पर ही नहीं टिका, बल्कि गुलाबी, धानी, पीले और नीले से होते हुए हरे तक भी पहुंचा है. याद कीजिए कि शाहरूख खान की देवदास का वो सीन, जहां माधुरी दीक्षित कुछ शिकवा कर रही हैं...
हम पे यह किसने हरा रंग डाला
हम पे यह किसने हरा रंग डाला
खुशी में हमारी हमें मार डाला हा मार डाला...
यानी आउट ऑफ दि बॉक्स जाकर सोचिए तो प्रेम का रंग हरा भी हो सकता है, लेकिन जब यही संजय लीला भंसाली पहली बार ओटीटी पर कुछ लेकर आए तो उन्हें प्रेम-खुशी और उत्साह का रंग पीले में दिखाई दिया. सालों बाद स्क्रीन पर दिखाई दीं मनीषा कोइराला (हीरामंडी- द डायमंड बाजार) और उनके आस-पास बैठीं उनकी सखियां सहेलियां पीले पहनावे में नजर आईं और रंग जमाया 700 साल पुराने अमीर खुसरो की लिखी बंदिश ने
सकल बन फूल रही सरसों,
अमवा फूले, टेस फूले
गोरी करत शृंगार मालिनिया
तरह तरह के फूल खिलाए
ले गढवा हाथन में आए
निजामुद्दीन के दरवज्जे पर
आवन कह गए आशिक़ रंग
और बीत गए बरसों
सकल बन फूल रही सरसों
ये वही भंसाली हैं, जिन्होंने कई दफा लाल को ही इश्क का रंग समझा था. पद्मावत फिल्म में वह पद्मिनी से कहलवा रहे हैं, 'मोहे रंग दो लाल, नंद के लाल'. तो इससे पहले गोलियों की रासलीला... रामलीला में ही वो इश्क को लाल बताते हुए 'ये लाल इश्क, ये लाल इश्क' गीत सुना चुके थे.
सालों पहले मुहम्मद रफी ने गुलाबी को प्यार का रंग बताया था. इसीलिए तो वो कहते रहे थे, 'गुलाबी आंखें जो तेरी देखी, शराबी ये दिल हो गया.' लेकिन यही मुहम्मद रफी कश्मीर की कली में नीले रंग पर मरते-मिटते दिखे थे. याद कीजिए, ये चांद सा रौशन चेहरा, बालों का रंग सुनहरा, ये झील सी नीली आंखें, कोई राज है इनमें गहरा...' लेकिन आनंद फिल्म में राजेश खन्ना तय ही नहीं कर पाए कि प्रेम का रंग किसे मानें इसलिए उन्होंने खुले तौर पर ऐलान किया, 'मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने, सपने सुरीले सपने'

सफेद रंग के मुरीद थे राजकपूर
रंग की बात होती है तो सिलसिला राजकपूर तक पहुंच जाता है और यहां इश्क और प्यार का रंग पता है कैसा है... सफेद, बिल्कुल बेदाग, मासूम सफेद... रजनीगंधा के फूल और सफेद साड़ी में लिपटी प्यारी सी, मासूम सी हीरोइन, सफेद साड़ी में शरमाती हुई हीरोइन, बेसन लिपटे हाथों से दरवाजा खोलती हीरोइन, गाल पर लहराते शरारती लटों को कान के पीछे धकेलती हीरोइन... सारे रंगों के बीच सफेद रंग राजकपूर की पहली और आखिरी पसंद रही.
खैर वैलेंटाइन में जब गुलाब देने की बात होती है तो सिर्फ लाल रंग ही नहीं और भी विकल्प हैं, जिनका सेलेक्शन आप अपनी निजी भावना के अनुसार कर सकते हैं. मनोवैज्ञानिक तौर पर गुलाब के अलग-अलग रंग में अलग-अलग भावनाएं भी छिपी होती हैं. सफेद गुलाब शुद्धता, मासूमियत और बिना शर्त प्यार को दर्शाता है. पीला गुलाब दोस्ती व खुशी का इजहार करता है. गुलाबी गुलाब कोमलता, दोस्ती, नम्रता, कृतज्ञता के साथ ही एक नए रिश्ते की शुरुआत का भी प्रतीक है. नारंगी गुलाब मोह व उत्साह को दर्शाता है.
मनोविज्ञान के अनुसार, हमारे मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में रंगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. प्रेम के दौरान शरीर में डोपामाइन और ऑक्सिटोसिन जैसे हार्मोन एक्टिव होते हैं, जो हमें खुशी और संतुष्टि फील कराते हैं. जब कोई प्रेम में होता है, तो उसका मस्तिष्क कुछ विशेष रंगों को अधिक संवेदनशीलता से ग्रहण करता है. उदाहरण के लिए, लाल रंग जुनून और उत्तेजना को बढ़ाता है, जबकि हरा रंग स्थिरता और संतुलन को दर्शाता है.
साहित्य में प्रेम के रंग
भारतीय साहित्य और काव्य में प्रेम को अलग-अलग रंगों में चित्रित किया गया है. कालिदास के अभिज्ञानशाकुंतलम से लेकर अमृता प्रीतम और गुलजार की कविताओं तक, प्रेम को विभिन्न रंगों में उकेरा गया है. प्रेम कहानियों में रंगों का उल्लेख भावनाओं को और अधिक जीवंत बना देता है. राधा-कृष्ण के प्रेम को नीले और पीले रंग से जोड़ा जाता है, जो अनन्तता और चंचलता का प्रतीक हैं.
इसकी एक बानगी इस कविवर बिहारी के इस काव्य में देखिए,
मेरी भवबाधा हरौ, राधा नागर सोइ,
जा तन की झांई परै, स्याम हरित दुति होई।
(राधा जी के पीले शरीर की छाया नीले कृष्ण पर पड़ने से वे हरे लगने लगते हैं. )
समाज में प्रेम के रंग परिस्थितियों और परंपराओं के अनुसार बदलते रहते हैं. पश्चिमी देशों में प्रेम को खुलकर व्यक्त करने की परंपरा है, जबकि भारत जैसे देशों में इसे सम्मान और संस्कृति के साथ जोड़ा जाता है. विवाह के समय पहने जाने वाले परिधानों में भी प्रेम के विभिन्न रंग झलकते हैं. भारतीय विवाहों में लाल रंग शुभता और प्रेम का प्रतीक माना जाता है, जबकि पश्चिमी विवाहों में सफेद रंग को प्राथमिकता दी जाती है.

क्या कहती है रिसर्च?
रोमांस में रंगों को लेकर नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन ने कई रिसर्च की हैं. उनका शोध इस नतीजे पर पहुंचता है, महिलाओं का लाल रंग पुरुषों को रोमांटिकली अट्रैक्ट करता है, इसके अलावा लाल रंग महिलाओं में फर्टिलिटी को बढ़ाने में भी हेल्प करता है और महिलाएं अपने पीरियड्स के दौरान भी हल्के लाल रंग पहनने को तवज्जो देती हैं. इसके अलावा लाल रंग उनमें आकर्षण के साथ-साथ ही आत्मविश्वास को भी बढ़ाता है, जिसमें वह खुद को सामाजिक तौर पर ठीक से पेश कर पाती हैं.
कुल मिलाकर बात ये है कि, प्रेम का कोई एक निश्चित रंग नहीं होता, बल्कि यह इंद्रधनुष की तरह विभिन्न रंगों की मिली-जुली भावना है. यह परिस्थितियों, संस्कृतियों और व्यक्तिगत भावनाओं के अनुसार अलग-अलग रूपों में सामने आता है. प्रेम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग अर्थ रखता है और इसे किसी एक रंग में सीमित नहीं किया जा सकता. प्रेम के सभी रंग मिलकर जीवन को खूबसूरत बनाते हैं और इसे एक नई ऊंचाई देते हैं.