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रिलेशनशिप पोस्ट डालने पर तेज प्रताप 6 सालों के निष्कासित, क्यों ज्यादातर दल सजा के लिए रखते हैं यही टाइम फ्रेम?

तेज प्रताप यादव के फेसबुक अकाउंट से एक पोस्ट आई, जिसमें उन्होंने एक युवती के साथ अपने 12 साल पुराने रिश्तों का जिक्र किया था. पोस्ट तो कुछ देर बाद डिलीट हो गई लेकिन उतने में ही आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अपने बेटे को परिवार और पार्टी से 6 सालों के लिए बाहर कर दिया. छह सालों का ये टाइम पीरियड राजनीति में काफी प्रचलित रहा.

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आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के बेटे तेज प्रताप की एक पोस्ट चर्चा में है. (Photo- PTI)
आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के बेटे तेज प्रताप की एक पोस्ट चर्चा में है. (Photo- PTI)

बारह साल पुराने रिश्ते से जुड़ी एक फेसबुक पोस्ट डालने के बाद तेज प्रताप यादव ने दावा किया कि उनका अकाउंट हैक हो चुका है. हालांकि पोस्ट और इसपर सफाई के एक दिन बाद आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने तेज प्रताप को पार्टी से छह सालों के लिए बाहर कर दिया. निष्कासन का एलान करते हुए आरजेडी प्रमुख ने कहा कि तेज प्रताप का व्यवहार उनके पारिवारिक संस्कारों और परंपरा से मेल नहीं खाता. 

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क्यों 6 सालों के निष्कासन का चलन

राजनीतिक दल अक्सर ही अपने नेताओं को किसी बड़ी भूल के लिए निष्कासित करते रहे हैं. ये सजा आमतौर पर 6 सालों की होती है. ये यूं ही नहीं, बल्कि इसके पीछे पक्की सोच है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8(3) कहती है कि अगर किसी लोक प्रतिनिधि को दो साल या उससे ज्यादा की सजा हो, तो सजा पूरी होने के बाद भी वो छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकेगा. राजनीतिक दल इसी बात को अपने सदस्यों पर भी लागू करते हैं ताकि पार्टी अनुशासन में रहे और नैतिक-राजनीतिक आचरण गलत न होने पाए. 

एक चुनावी चक्र से वंचित रह जाए

वैसे इस टाइम फ्रेम के पीछे चुनाव चक्र असल कारण है. विधानसभा और लोकसभा इलेक्शन्स हर पांच साल में होते हैं, अगर बीच में कोई बड़ा अड़ंगा न आ जाए. छह साल के लिए निकालकर पार्टी ये पक्का करती है कि वो सदस्य एक चुनावी प्रोसेस से पूरी तरह से बाहर रहे. चुनाव का हिस्सा न बन सकना बड़ा नुकसान है. इस बीच निष्कासित सदस्य का राजनीतिक असर भले ही कमजोर हो जाए, लेकिन उसे सोचने और अपनी गलती महसूस करने का पूरा मौका मिलता है. ये एक तरह से प्रायश्चित्त का सर्कल है. 

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tej pratap with father lalu prasad yadav photo PTI

एक पूरे इलेक्शन सर्कल से बाहर करके पार्टी भी साफ संदेश देती है कि गलतियां किसी हाल में बर्दाश्त नहीं की जाएंगी. कई बार दल बीच में ही अपने सदस्यों को वापस भी ले लेते हैं अगर सदस्य में सुधार दिख रहा हो. छह साल का समय न तो इतना छोटा होता है कि सजा का कोई असर न हो, और न इतना लंबा है कि व्यक्ति पूरी तरह से पार्टी से कट जाए. ये एक तरह का कूलिंग-ऑफ पीरियड है, जो दोनों पक्षों पर लागू होता है. अगर इसके बाद भी सदस्य को लगे कि वो पार्टी के सिद्धांतों के साथ बने रहना चाहेगा तो उसे दोबारा अपने में शामिल किया जा सकता है. 

क्या सारे दल यही नियम मानते हैं

जरूरी नहीं. कई दल तीन साल का कूलिंग-ऑफ भी रखते हैं, लेकिन अगर गलती सार्वजनिक हो जाए, या जनता के सामने कोई मैसेज देना हो तो पार्टियां यही नियम मानती हैं. यह संवैधानिक प्रक्रिया से मेल खाता है. दूसरा, इसके जरिए दल साफ कर देता है कि गलती माफ नहीं की जाएगी, लेकिन साथ ही लौटने के रास्ते भी खुले रहेंगे, अगर सदस्य वापसी चाहे तो. 

विदेशों में सजा देने के लिए क्या करती हैं पार्टियां

- अमेरिकी राजनीति में सदस्यों को लेकर पार्टी अनुशासन कुछ कमजोर है. डेमोक्रेटिक या रिपब्लिकन पार्टी से किसी को निकालना काफी मुश्किल है. वहां अक्सर सार्वजनिक निंदा या समर्थन वापसी जैसे तरीके अपनाए जाते हैं. कई बार दल सपोर्ट वापस लेते और फिर दोबारा टिकट नहीं देते हैं. लेकिन ये पक्का नहीं, और कोई तयशुदा टाइम फ्रेम भी नहीं. 

- ब्रिटिश राजनीति में पार्टियों में व्हिप सिस्टम होता है. अगर कोई सांसद पार्टी लाइन से हटे तो उसे पार्टी की व्हिप से बाहर कर दिया जाता है. कई बार निष्कासन भी होता है लेकिन उसमें भी छह साल की समयसीमा नहीं होती. 

- चीन या रूस जैसे देश, जो अब भी कहीं न कहीं कम्युनिस्ट विचारधारा वाले हैं, वहां किसी चुने हुए नेता की वजह से अगर पार्टी की इमेज बिगड़े तो सख्त एक्शन लिए जाते हैं. जैसे उसे हमेशा के लिए दल से बाहर किया जा सकता है, या लंबे समय तक जेल भेजा जा सकता है.

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