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सीरिया में तख्तापलट... 24 साल बाद असद सरकार के पतन का भारत पर क्या होगा असर?

सीरिया में असद सरकार का तख्तापलट हो गया है. 24 साल से सत्ता में काबिज राष्ट्रपति बशर अल-असद को सीरिया छोड़ना पड़ा है. सीरिया में असद सरकार के जाने का भारत पर क्या असर पड़ेगा? समझते हैं...

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बशर अल-असद 24 साल से सीरिया की सत्ता में थे. (फाइल फोटो)
बशर अल-असद 24 साल से सीरिया की सत्ता में थे. (फाइल फोटो)

24 साल से सत्ता पर काबिज बशर अल-असद को सीरिया छोड़ना पड़ गया. राष्ट्रपति असद अपने परिवार के साथ रूस चले गए हैं. राष्ट्रपति असद के खिलाफ 2011 से विद्रोह जारी था. 

अब सीरिया की सत्ता पर विद्रोहियों का कब्जा हो गया है. विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) ने 27 नवंबर को असद के खिलाफ जंग छेड़ दी थी. मात्र 11 दिन में ही राष्ट्रपति असद को अपनी सत्ता गंवानी पड़ गई. सीरिया की सत्ता पर 53 साल से असद परिवार का कब्जा था. बशर अल-असद से पहले उनके पिता हाफिज अल-असद ने 29 साल तक यहां राज किया था.

सीरिया में असद सरकार के गिरने के बाद अब यहां राजनीतिक समीकरण बदल सकता है. इससे अरब वर्ल्ड और मध्य पूर्व में भारत के संबंधों पर भी खासा असर पड़ सकता है.

असद के सत्ता से बेदखल होने का असर भारत पर पड़ने की संभावना है, क्योंकि भारत और सीरिया के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध थे. बशर अल-असद की सरकार में ये संबंध और मजबूत हुए थे.

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भारत-सीरिया दोस्त-दोस्त

भारत और सीरिया के बीच अच्छी दोस्ती रही है. सीरिया में गृहयुद्ध के दौरान भारत ने असद सरकार और विद्रोही गुटों, दोनों की निंदा की थी. 

फिलिस्तीन के मुद्दे और गोलान हाईट्स पर सीरिया के दावे का भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर समर्थन किया है. सीरिया ने भी कश्मीर मुद्दे पर भारत का साथ दिया है. सीरिया कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला बताता आया है.

संयुक्त राष्ट्र में भारत ने सीरिया पर लगे प्रतिबंधों का समर्थन करने से मना कर दिया था. कोविड के समय भारत ने सीरिया पर लगे प्रतिबंधों में ढील देने की बात भी कही थी.

गृहयुद्ध के दौरान जब दुनियाभर के मुल्कों ने सीरिया को अलग-थलग कर दिया था और उसे अरब लीग से भी निकाल दिया था, तब भी भारत ने अपने संबंध बरकरार रखे थे और दमिश्क में अपना दूतावास बनाए रखा था.

सीरिया के विकास के लिए भी भारत ने काफी मदद की है. वहां एक पावर प्लांट के लिए भारत ने उसे 24 करोड़ डॉलर का क्रेडिट दिया था. आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर में भी भारत ने निवेश किया है. इसके अलावा स्टील प्लांट और ऑयल सेक्टर में भी भारत ने पैसा लगाया है.

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भारत पर क्या पड़ सकता है असर?

असद के पतन और उसके बाद की अनिश्चितता ने भारत के राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए चिंता पैदा कर दी है. 

सबसे बड़ा खतरा हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) का है. एचटीएस एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है, जिसे कई देशों ने आतंकी संगठन भी घोषित कर रखा है. एचटीएस का जुड़ाव अल-कायदा से भी रहा है. एचटीएस के उभार से अब सीरिया में इस्लामिक स्टेट के फिर से पनपने का खतरा भी बढ़ गया है.

सीरिया के ऑयल सेक्टर में भारत के दो बड़े निवेश हैं. पहला- 2004 में हुआ ONGC और IPR इंटरनेशनल के बीच हुआ समझौता. दूसरा- सीरिया में कनाडियन फर्म में ONGC और चीन की CNPC की 37% हिस्सेदारी.

सीरिया में तिशरीन थर्मल पावर प्लांट के रिस्ट्रक्चर के लिए भारत ने 24 करोड़ डॉलर का क्रेडिट भी दिया था. इतना ही नहीं, इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर में भी भारत भारी निवेश करने की तैयारी कर रहा था. इस प्रोजेक्ट में सीरिया भी शामिल है.

अब सीरिया में काफी कुछ बदल जाएगा. सीरिया में विद्रोही गुटों के साथ तुर्की का था. जाहिर है कि वहां की सियासत में अब तुर्की का अच्छा-खासा दखल होगा. तुर्की और भारत के संबंध हाल ही में थोड़े नरम होने शुरू हुए थे. लेकिन अब सीरिया में राजनीतिक परिवर्तन से मध्य पूर्व में भारत के संबंध प्रभावित हो सकते हैं.

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सीरिया के मौजूदा हालात पर भारत ने बयान जारी किया है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर सीरिया में सत्ता हस्तांतरण की 'शांतिपूर्ण' और 'समावेशी' प्रक्रिया का आह्वान किया है. 

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