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यूरोपियन कमीशन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव, क्या दरकने लगा है EU का सबसे मजबूत किला?

वाइट हाउस की अनदेखी झेल रहा यूरोपियन यूनियन एक नई परेशानी में फंस गया. कोविड के दौरान वैक्सीन खरीदी पर पारदर्शिता की कमी के चलते उसकी शाखा यूरोपियन कमीशन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आ चुका. अगर ये पास हुआ तो कमीशन अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन समेत उनकी सारी टीम को इस्तीफा देना होगा. क्या इससे यूरोप और कमजोर हो जाएगा?

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EU की मुख्य शाखा यूरोपियन कमीशन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आ चुका. (Photo- AP)
EU की मुख्य शाखा यूरोपियन कमीशन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आ चुका. (Photo- AP)

यूरोपियन कमीशन की प्रेसिडेंट उर्सुला वॉन डेर लेयेन पर कोविड के दौरान वैक्सीन खरीदी में गड़बड़ी और रोमानियन चुनावों में दखल देने के आरोप लगे हैं. यूरोपीय सांसद उनके खिलाफ नो-कॉन्फिडेंस मोशन ला चुके, जिसपर बहस और वोटिंग होनी है. इसके बाद क्या हो सकता है? क्या ईयू कमीशन जैसी बॉडी का गिरना पूरे यूरोप को तोड़ने जैसा होगा, या सब कुछ कागजी है?

अभी क्या नया हो रहा है 

ईयू पर अक्सर ब्यूरोक्रेटिक होने, पैसे बर्बाद करने और कोई फैसला न कर सकने जैसे आरोप लगते रहे. इसके बाद भी इसने एक माला की तरह यूरोपीय देशों को आपस में बांधे रखा था. लेकिन अब इसपर गंभीर आरोप लगने लगे हैं. हाल में रोमानिया के सांसद गेयोर्गे पिपेरिया ने कहा कि कोविड के दौरान यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष ने एक वैक्सीन कंपनी से निजी तौर पर बात की, जिसके बाद डील फाइनल हुई और यूरोप में पहली डोज के लिए फाइजर की वैक्सीन दी गई.

ये निजी बातचीत कभी सार्वजनिक नहीं हुई. इसके अलावा यह भी दावा है कि उर्सुला की टीम ने रोमानिया में हुई राष्ट्रपति चुनावों में मीडिया के जरिए काफी टोकटाक की और नतीजों पर असर हुआ. 

इन आरोपों को 10 फीसदी ईयू सांसदों का सपोर्ट मिल चुका. अब अगले हफ्ते नो-कॉन्फिडेंस मोशन पर बहस और वोटिंग होने वाली है. अगर प्रस्ताव पास हुआ तो उर्सुला समेत आयोग के सभी 26 कमिश्नरों को इस्तीफा देना पड़ेगा. 

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ursula von der leyen photo AP

इससे क्या यूरोपियन यूनियन भंग हो जाएगी

नहीं. दरअसल यूरोपियन यूनियन और यूरोपियन कमीशन अलग-अलग बातें हैं. कमीशन ईयू की एग्जीक्यूटिव बॉडी है, जो कानूनों को लागू करने और नीतियां बनाने का काम करती है. वहीं ईयू एक पूरा संगठन है, जिसमें 27 देश शामिल हैं. ऐसे में अगर कमीशन टूटा तो भी ईयू पर खास असर नहीं होगा. हां, ये जरूर है कि नए सिरे से कमीशन बनाने में दोबारा भारी खर्च होगा, साथ ही कामकाज कुछ वक्त के लिए और धीमा पड़ जाएगा. 

यूरोप के राजनीतिक और इकनॉमिक मुद्दों पर काम करने वाला संगठन कोशिश करता है कि देश आपस में मिल-जुलकर रहें. एक से कानून बनाएं. और मानवाधिकार, पर्यावरण या सेफ्टी जैसे मसलों को साथ मिलकर संभाले. लेकिन अक्सर पूरे ईयू पर आरोप रहा कि वो सुस्त और गैरजरूरी मुद्दों पर काम करने वाला संगठन है. एक शिकायत ये भी रही कि यूनियन की नौकरशाही बेहद भारी-भरकम है जो किसी फैसले को जानबूझकर खींचती है ताकि उसे तवज्जो मिलती रहे.

ये देश निकल चुका बाहर

ब्रिटेन ने जब ईयू से बाहर निकलने का फैसला किया, तो यह एक अहम वजह थी. उसका कहना था ईयू की वजह से उसके सांसद ठीक से काम नहीं कर पा रहे. पब्लिक वोटिंग के बाद आखिरकार झुंझलाया हुआ ब्रिटेन इससे बाहर ही हो गया. 

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कई देशों की सरकारें आरोप लगाती हैं कि यूनियन अपने काम से काम नहीं रखता, बल्कि देशों के घरेलू मामलों में दखल देता है. हंगरी ने इस मुद्दे को बार-बार उठाया. कई बार उसके लीडरों ने अपना विकल्प खोजने यानी बाहर निकलने तक की बात कह दी. वैसे वो अब तक ईयू में बना हुआ है, लेकिन उसकी सरकार और यूनियन के बीच अक्सर टकराव होता रहता है. 

eu office photo Reuters

सैन्य शक्ति के लिए भी नाटो पर निर्भर 

असंतोष की एक वजह ये भी है कि ईयू ऐसी बॉडी नहीं जो किसी तरह की सैन्य मदद कर सके. न ही उसने इस दिशा में कोई कोशिश की. उसके पास कोई सेना नही. हमले की स्थिति में वो नाटो से बात कर सकता है. लेकिन जैसा कि हमने कहा, यूनियन की तरफ से होने वाली प्रोसेस स्लो ही है. इसका भी कारण है कि हर फैसले में ज्यादातर देशों की सहमति चाहिए होती है, जिसमें समय लग जाता है. 

फिर क्यों टिका हुआ है

ईयू की सबसे बड़ी ताकत है, उसकी फंडिंग. वो अपने सदस्य देशों को भारी फंड दे सकता है. इंफ्रास्ट्रक्चर, पढ़ाई, खेती-किसानी और रिसर्च जैसे कामों पर ये पैसे दिए जाते हैं. इमरजेंसी मदद भी मिलती है, जैसे कोविड के दौरान देशों को दी गई थी. यही सदस्य देशों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण रहा. लेकिन इसमें भी खींचतान हो रही है. दरअसल यूनियन को पैसे भी अपने सदस्य देशों से ही मिल रहे हैं. हर मेंबर अपनी जीडीपी का निश्चित हिस्सा संगठन को देता है. ऐसे में बड़े देशों के ज्यादा पैसे खर्च होते हैं, जबकि मदद सबको लगभग बराबर मिलती है. 

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खत्म करने की होती रही मांग

ऐसे कई मसलों पर सदस्य देश ईयू को छोड़ने, यहां तक कि उसे भंग करने की मांग कर चुके. जैसे ब्रिटेन ने तो इसकी पहल करते हुए सदस्यता छोड़ दी. फ्रांस, हंगरी और पोलैंड में भी नेता संगठन पर आरोप लगा रहे हैं कि वो जानते हुए प्रवासियों का बोझ देशों पर डाल रहा है, जिससे यूरोप कमजोर पड़ रहा है. कई देशों ने इसे भंग कर नया और ज्यादा मजबूत संगठन बनाने की बात भी की, लेकिन ये आसान नहीं, खासकर जब देशों के आर्थिक हित इससे जुड़े हैं. 

रही बात यूरोपियन कमीशन की, तो उसके खिलाफ पहले भी अविश्वास प्रस्ताव आ चुका और वो पहले भी भंग हो चुकी. अगर भ्रष्टाचार साबित हो गया और वोटिंग भी इसी पक्ष में हुई तो हो सकता है कमीशन फिर टूट जाए. इसके बाद नई कमीशन बनेगी लेकिन इस ट्रांजिशन पीरियड में मौजूदा कमीशन ही काम करती रहेगी. 

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