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न सीमाएं खुली, न देश अपनाने को तैयार, इजरायली हमले के बीच गाजा के लोग कहां जाएं?

इजरायली सेना ने गाजा पट्टी पर कब्जे की तैयारी शुरू कर दी है. इस बीच उसने लोगों को जगह खाली करने को कहा ताकि वो हमास के ठिकानों को टारगेट कर सके. हालांकि ये आसान नहीं. अव्वल तो वहां की नाकेबंदी ऐसी है कि बाहर नहीं निकला जा सकता. और अगर कोई बाहर आ भी जाए तो कम ही देश हैं, जो गाजावासियों को शरण देने को तैयार हैं.

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इजरायल गाजावासियों को जगह खाली करने को कह चुका ताकि हमास का सफाया कर सके. (Photo- AP)
इजरायल गाजावासियों को जगह खाली करने को कह चुका ताकि हमास का सफाया कर सके. (Photo- AP)

गाजा पट्टी पिछले दो सालों से हमास और इजरायल के लिए लड़ाई का मैदान बनी हुई है. अब इजरायली आर्मी जंग के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुकी, जहां वो आतंकी गुट हमास को खत्म करने का एलान कर चुकी. इस बीच गाजा निवासियों को चेताया जा रहा है कि वे जगह खाली करके चले जाएं. लेकिन कहां? इसपर चुप्पी है. दरअसल गाजा में चारों तरफ से नाकेबंदी है, जिससे वहां के लोगों का बाहर निकलना आसान नहीं. दूसरा- कोई देश नहीं जो गाजावासियों को अपनाने को तैयार हो. 

दो साल पहले अक्टूबर में हमास ने इजरायली आबादी पर हमला करते हुए हजारों जानें ले लीं और सैकड़ों लोगों को बंधक बना लिया. इसके बाद से लड़ाई चल रही है. हमास चूंकि गाजा पट्टी में बसा हुआ है, लिहाजा गेहूं में घुन की तरह गाजा के लोग पिस रहे हैं. अब इजरायली आर्मी आर-पार के मूड में है और लगातार भीतर की तरफ बढ़ रही है. जमीनी हमलों में आम लोग बचे रहें, इसके लिए लोगों से गाजा को छोड़कर जाने की अपील हो रही है. 

क्या हैं गाजा के हाल

लगभग 40 किलोमीटर लंबे इस इलाके की आबादी लगभग 24 लाख है. ये दुनिया की सबसे घनी जनसंख्या वाला इलाका है, जो लंबे समय से युद्ध में घिरा हुआ है. चूंकि ये विवादित जगह है, और यहां हमास भी ऑपरेट करता है, लिहाजा पट्टी को चारों तरफ से घेर दिया गया. यहां से बाहर निकलने के लिए सारे रास्ते सारे 2007 से बंद कर दिए गए. ये वो वक्त था, जब इजरायल और मिस्र ने गाजा पर नाकेबंदी शुरू की. राफा क्रॉसिंग समेत इक्का-दुक्का जगहों को मानवीय मदद लाने- ले जाने के लिए खोला जाता है, वो भी सीमित समय के लिए. यहां भारी सैन्य जांच है, जिससे यहां से भी पलायन कुछ मुश्किल ही है. 

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gaza border (Photo- Pexels)
जोखिमभरे समुद्री रास्ते से भी गाजावासी पलायन कर रहे हैं. (Photo- Pexels)

सीमाओं की स्थिति क्या है

इसकी दक्षिण और पूर्व सीमा इजराइल और मिस्र से घिरी हुई है, जहां बाड़ें और पुलिस है. जमीन की बात करें तो यहां तीन मेन क्रॉसिंग हैं- एरेज, राफा और केरेम शालोम. इसमें भी राफा क्रॉसिंग अकेली जगह है, जहां से थोड़ी-बहुत आवाजाही हो पाती है. ऐसे में लोग समुद्र के रास्ते का इस्तेमाल कर रहे हैं. दरअसल पश्चिम दिशा में इसका समुद्र खुला हुआ है. यहां से गाजावाली भागने की कोशिश कर सकते हैं, बशर्ते उन्हें बोट, जेट स्की जैसी चीजें मिलें और वे सुरक्षा बलों की निगरानी से बच सकें. इस जगह भी इजरायली कंट्रोल है, लिहाजा भागना किसी लिहाज से सुरक्षित नहीं. हालांकि हाल में एक शख्स इसी रास्ते से निकलकर इटली होते हुए जर्मनी की तरफ पहुंच गया. 

मान लीजिए कि किसी तरह इजरायल और इजिप्ट की नाकेबंदी से बचते-बचाते लोग निकल भी जाएं तो कहां जाएंगे, ये सबसे बड़ी समस्या है. गाजा के लोगों को कोई भी देश शरण नहीं देना चाहता.

इसके पीछे वे अलग-अलग कारण गिनाते हैं

अरब देश वैसे तो मन-प्राण से फिलिस्तीन के साथ खड़े दिखते हैं लेकिन यही मुद्दा है. वे डरते हैं कि अगर वे गाजा के लोगों को शरण देने लगे तो पूरा इलाका खाली हो जाएगा. दरअसल, साल 1959 में अरब लीग का रिजॉल्यूशन 1547 लागू किया गया था. इसमें कहा गया कि फिलिस्तीनियों को उनके अपने देश की नागरिकता दिलाने के लिए अरब देशों को मदद करनी चाहिए. अरब मुल्क तर्क देते हैं कि अगर उन्होंने अपने यहां फिलिस्तीनी शरणार्थियों को बसाना शुरू कर दिया, तो यह फिलिस्तीन के अस्तित्व को खत्म करने जैसा होगा. लोग स्थाई तौर पर बाहर बसने लगेंगे और इससे फिलिस्तीन पूरी तरह इजरायली कब्जे में चला जाएगा. 

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गाजा पट्टी को लेकर एक चिंता ये भी है कि हमेशा अस्थिरता में रहे वहां के लोग हमास से दूर नहीं रह पाएंगे. दूसरे देश में रहते हुए भी वे आतंकी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं, जिससे होस्ट देश खतरे में आ जाएगा. 

gaza protest against militant group hamas (Photo- AP)
गाजा में पहली बार हमास के खिलाफ प्रदर्शन हुए. (Photo- AP)

फिलिस्तीनियों को नागरिकता न देने के पीछे ग्लोबल राजनीति की भी भूमिका है. इजरायल छोटा देश सही, लेकिन सैन्य और तकनीकी ताकत काफी है. साथ ही अमेरिका और यूरोप के कई प्रभावशाली देशों का करीबी सहयोगी भी है. अगर उससे पंगा लिया जाए तो अमेरिका नाराजगी भी बोनस में मिल सकती है. अरब देश भले ही तेल की वजह से अमीर हों, लेकिन ग्लोबल राजनीति में वे अभी पैर जमा ही रहे हैं. ऐसे में वे गाजा का सपोर्ट तो करते हैं, लेकिन उतना ही, जितने में किसी से सीधा बैर न हो. 

कई देश अगर कुछ संवेदना रखें भी तो उनपर भारी इंटरनेशनल दबाव रहता है कि वे गाजावासियों को ठौर न दें. मिसाल के तौर पर जॉर्डन ने शुरुआत में काफी लोगों को अपने यहां बसाया, लेकिन फिर अरब के बाकी देशों से लेकर इजरायल भी उसपर आक्रामक होने लगा. राजनीतिक विवाद से बचने के लिए उसने भी पैर पीछे खींच लिए. 

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इसके अलावा शरणार्थियों को अपनाने के अपने जोखिम भी हैं. जैसे युद्धग्रस्त इलाकों से आने वाले लोगों के पास खास स्किल नहीं. वे आएंगे भी भी देश के लिए जिम्मेदारी बनकर. उनके लिए रिसोर्स जुटाना मुश्किल होगा. ये भी एक कारण है जो काफी देश गाजा से दूरी बनाए हुए हैं. 

तब गाजा के लोग जा कहां रहे हैं

लड़ाई शुरू होने के बाद से लाखों लोग विस्थापित हो गए. ये पलायन भीतर ही भीतर हुआ. जैसे कुछ लोग जोखिम लेते हुए वेस्ट बैंक पहुंच गए. यहां फिलिस्तीनी अथॉरिटी का कब्जा है, जो हमास से नाराज रहती है. इस नाराजगी का असर गाजा से आने वालों पर भी होता है. वेस्ट बैंक में वैसे भी संसाधन सीमित हैं और वो ज्यादा लोगों को अपने यहां जगह नहीं दे सकता. 

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