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डिफेंस के लिए EU जमा कर रहा अलग फंड, क्या ट्रंप की रुखाई NATO की कब्र खोद रही है?

ट्रंप प्रशासन नाटो को लेकर चेता रहा है कि अमेरिका कोई चैरिटी नहीं कर रहा. अगर यूरोपियन यूनियन (ईयू) के बाकी देश नाटो के डिफेंस में योगदान नहीं देते, तो वो भी अपने हाथ पीछे खींच लेगा. ऐसे में दुनिया के सबसे मजबूत सैन्य संगठन पर तालाबंदी भी हो सकती है. यही वजह है कि ईयू तेजी से अलग बैकअप तैयार कर रहा है.

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NATO में दरार से खुद अमेरिका पर भी काफी असर पड़ेगा. (Photo- AP)
NATO में दरार से खुद अमेरिका पर भी काफी असर पड़ेगा. (Photo- AP)

यूरोप के कई देश अपनी सुरक्षा के लिए पूरी तरह से नाटो पर भरोसा करते रहे. लेकिन ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में ये यकीन कमजोर पड़ा है. अब यूरोपियन यूनियन के सदस्य देश मिलकर 170 अरब डॉलर का फंड जमा करने जा रहे हैं जिसे शुद्ध रूप से डिफेंस पर लगाया जाएगा. इससे हो सकता है कि ट्रंप की धमकियां कुछ कमजोर पड़ें, या फिर ये भी हो सकता है कि दुनिया का सबसे ताकतवर संगठन नाटो, जिससे हर देश खौफ खाता है, वही कमजोर पड़ जाए. 

हथियार खरीदी के लिए बन रहा अलग फंड

बुधवार को यूरोपीय संघ के सदस्यों ने हथियार खरीद के लिए एक जॉइंट कोष बनाने को मंजूरी दी. इस फंड का इस्तेमाल हथियारों की खरीद से लेकर साइबर हमले पर नजर रखने के लिए भी होगा. ईयू की ये तैयारी यूं ही नहीं. अंदेशा जताया जा रहा है कि यूक्रेन के बाद रूस यूरोप के किसी और देश पर भी हमलावर हो सकता है. ऐसे में अगर अमेरिका ने नाटो से दूरी बना ली तो ईयू के पैरों के नीचे से जमीन एकदम से खिसक जाएगी. इसी डर को दूर करने के लिए यूरोप अलग कोशिश कर रहा है. यानी प्लान बी को मजबूत कर रहा है ताकि आड़े वक्त धोखा न मिले. 

ट्रंप को नाटो से क्या समस्या

ट्रंप ही नहीं, अमेरिकी सरकार कई बार पहले भी इसपर नाराजगी दिखा चुकी कि वो सबसे ज्यादा फंड कर रही है, जबकि बाकी देश तय रकम भी जमा नहीं कर रहे. दरअसल अमेरिका फिलहाल इस गुट के कुल खर्च का लगभग 70 फीसदी हिस्सा देता है. इसका भी कारण है. साल 2014 में सभी नाटो सदस्यों ने मिलकर तय किया था कि वे अपनी जीडीपी का कम से कम 2% डिफेंस पर लगाएंगे. यही वो न्यूनतम खर्च है, जिसे बिल भी कहा जाता है. ज्यादातर देश इस मामले में पीछे हैं, जबकि अमेरिका ने अपनी जीडीपी का सबसे ज्यादा लगभग साढ़े 3 प्रतिशत जॉइंट डिफेंस पर खर्च किया.

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NATO photo Getty Images

काफी पहले से ये असंतोष चला आ रहा है

सत्तर के दशक में तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने नाटो के लिए यूरोपीय योगदान पर नाराजगी दिखाते हुए कहा था कि अमेरिका उनका सपोर्ट करेगा लेकिन अपनी रक्षा का जिम्मा उन्हें खुद लेना होगा. इसी तरह बराक ओबामा ने भी यूरोपीय देशों से डिफेंस बजट बढ़ाने को कहा था. अब अमेरिका ज्यादा सख्त हो चुका. ट्रंप प्रशासन का कहना है कि हर सदस्य देश अपनी जीडीपी का 5 फीसदी डिफेंस पर लगाए तभी अमेरिका भी नाटो के साथ रहेगा. 

क्यों नाटो से हटने की धमकी डरा रही 

नाटो वैसे तो सबकी सहमति से फैसला लेता है लेकिन अमेरिका इनमें सबसे ज्यादा ताकतवर है. उसके पास सैन्य पावर काफी ज्यादा है. इससे भी बड़ी चीज है, उसके पास परमाणु हथियारों का भंडार. यूरोप के सारे देश इसे सुरक्षा का गारंटी मानकर निश्चिंत रहते आए हैं. ऐसे में ट्रंप की धमकी परेशान करने वाली है. बता दें कि नाटो का आर्टिकल 5 कहता है कि अगर यूरोप या नॉर्थ अमेरिका के किसी भी देश पर हमला हो तो इसे सारे मेंबर्स के खिलाफ हमला माना जाएगा. फिलहाल जैसे हालात हैं, जियो-पॉलिटिकल हिसाब-किताब वैसे ही गड़बड़ाया हुआ है, ऐसे में देशों में बेचैनी लाजिमी है.

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क्या चाहनेभर से यूएस दूर हो जाएगा नाटो से 

तकनीकी तौर पर ये मुमकिन नहीं. वहां की प्रोसेस के मुताबिक, किसी भी इंटरनेशनल संधि को खत्म करने के लिए राष्ट्रपति को सीनेट से मंजूरी चाहिए होती है. ये सहमति भी कम से कम दो-तिहाई हो तभी ऐसा किया जा सकता है. हालांकि विदेश नीति पर राष्ट्रपति के पास काफी सारे अधिकार हैं, जैसे वो एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिए सीनेट की सहमति के बगैर भी बड़े फैसले ले सकता है.

ukraine russia war photo Getty Images

यूरोप में कौन से और सैन्य संगठन 

फिलहाल इन देशों में सैन्य बजट बढ़ाने पर चर्चाएं चल रही हैं. इसके अलावा प्लान बी के नाम पर यूरोप में एक और सैन्य गुट बन चुका, जिसका नाम है- कॉमन सिक्योरिटी एंड डिफेंस पॉलिसी. इसके तहत तहत यूरोपीय संघ के पास 300,000 सैनिकों की सैन्य क्षमता है, जो इमरजेंसी में अपने सदस्य देश की मदद करेगी. हालांकि नाटो के मुकाबले इसके पास काफी सीमित ताकत और संसाधन हैं.

क्यों अलग सेना बनाने से बच रहा यूरोप 

डिफेंस बजट इसकी अकेली वजह नहीं. असल में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच आपस में रार है. ईयू में 25 से ज्यादा देश हैं. हरेक की अपनी प्राथमिकता और सैन्य जरूरत है. कोई किसी से उखड़ा रहता है तो कोई किसी के करीब दिखता है. ऐसे में जॉइंट यूरोपियन आर्मी बनाना मुश्किल ही है. साथ ही इतने दशकों से अमेरिकी लीडरशिप में काम करते हुए ईयू के लिए छुटपुट फैसले करना आसान रहा. अब वो सीधे अमेरिका से बिदककर इतना बड़ा फैसला ले तो इससे रणनीतिक ही नहीं, आर्थिक हित भी चोट खाएंगे. 

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क्या नाटो से दूरी यूएस के लिए भी खराब सौदा

यही गुट है जो अमेरिका को यूरोप और उत्तरी अटलांटिक में सैन्य लीडर बनाए रखता है. अलग होने पर ये असर कम होगा. 

अमेरिकी गैरमौजूदगी से रूस और चीन मजबूत होंगे. ये उसके लिए वैसे ही घाटे का सौदा है. 

भले ही वॉशिंगटन सबसे बड़ा खर्च उठाता हो, लेकिन थोड़ा-थोड़ा सहयोग सब कर रहे हैं, इससे चिंता काफी कम हो जाती है.  

छोटे देशों की सुरक्षा की जिम्मेदारी छोड़ने पर वो ग्लोबल सरपंच वाले रोल में भी नहीं रह सकेगा. ये नैतिक धक्का भी होगा. 

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