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जन्म के समय क्या था भगवान श्रीकृष्ण का पहला नाम, क्या आप जानते हैं इस वायरल प्रश्न का जवाब?

माता देवकी ने कहा, 'प्रभु आपके जिस रूप को अव्यक्त और सबका कारण बतलाया है, जो ब्रह्म ज्योति स्वरूप, समस्त गुणों से रहित और विकारहीन है, जिसे विशेषण रहित अनिर्वचनीय निष्क्रिय एवं केवल विशुद्ध सत्ता के रूप में कहा गया है- वही बुद्धि आदि के प्रकाशक ‘विष्णु’ आप स्वयं हैं'.

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सोशल मीडिया पर भगवान कृष्ण के नाम के सवाल को लेकर एक वीडियो काफी वायरल हो रहा है.
सोशल मीडिया पर भगवान कृष्ण के नाम के सवाल को लेकर एक वीडियो काफी वायरल हो रहा है.

सोशल मीडिया पर पूर्व सीएम अखिलेश यादव और कथावाचक अनिरुद्धाचार्य का एक वीडियो वायरल है. इस वीडियो में दोनों ही लोग प्राचीन वर्ण व्यवस्था पर अपने-अपने तर्क रखते हैं और फिर अखिलेश यादव अनिरुद्धाचार्य से सवाल करते हैं कि जब कारागार में भगवान ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया तो माता ने उन्हें सबसे पहले किस नाम से पुकारा?

क्या है मामला?
हालांकि वीडियो को अंत तक देखने और इसके कई अलग-अलग वर्जन देखने के बाद भी यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि अनिरुद्धाचार्य ने इस प्रश्न का क्या उत्तर दिया. वह वसुदेव के पुत्र के आधार पर वासुदेव कहते सुनाई देते हैं, लेकिन अखिलेश यादव कहते हैं कि यहीं से आपके और हमारे रास्ते अलग हो जाते हैं. पूर्व सीएम इसका क्या जवाब चाहते थे और अनिरुद्धाचार्य के पास इस प्रश्न का क्या जवाब था, यह तो दूसरी बात हो गई, लेकिन सोशल मीडिया पर यह प्रश्न एक वायरल जिज्ञासा बना हुआ है कि आखिर जन्म लेने के तुरंत बाद भगवान को उनकी मां ने किस नाम से पुकारा था? वीडियो कुछ साल पुराना है, लेकिन अपने मौजूं प्रश्न के कारण अब अधिक वायरल हो रहा है.

वायरल वीडियो के बाद उठा सवाल
खैर, अब इस प्रश्न की उंगली थामकर आगे बढ़ें तो अनिरुद्धाचार्य की यह बात तो सही ही है कि भगवान के अनेक नाम हैं. श्रीविष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत में भगवान विष्णु के 1000 नाम आए हैं, जिनमें उनके कई नाम उनके अलग-अलग अवतारों को भी संबोधित करते हैं, जाहिर सी बात है कि इन अवतारों में प्रमुख अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण हैं, जिनके नाम भी इस स्त्रोत में शामिल हैं. 

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Lord Krishna

खुद श्रीकृष्ण ने बताए हैं अपने कितने नाम?
वाराणसी स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के स्कॉलर रहे आचार्य हिमांशु उपमन्यु बताते हैं कि श्रीकृष्ण जी के 1000 नाम तो उनके स्त्रोत श्रीगोपाल सहस्त्राम स्त्रोत में मिल जाते हैं. इसमें उन्हें ब्रह्म, अव्यक्त, स्थितप्रज्ञ, अचरेश्वर, दामोदर, पार्वतीभाग्य भ्राता, पुंडरीकाक्ष, अखिलेश्वर, नंदोन्दम्, महानंदम, अच्युत, केशव, माधव, मधुसूदन... बड़ी लंबी सूची है, ऐसे अनेक नामों से पुकारा है. गीता में खुद श्रीभगवान भी अपने आपको हर सर्वश्रेष्ठ नाम से पुकारते हैं. जैसे देवताओं में इंद्र, यक्षों में कुबेर, गऊओं में कामधेनु, वृक्षों में पीपल, ऋतुओं में मधुमास, पुरषों में श्रीराम, नरों में अर्जुन और गंधर्वों में चित्रसेन, रुद्रों में शिव और आदित्यों में सूर्य बताते हैं, इसलिए एक अर्थों में ये भी भगवान कृष्ण के ही नाम बन जाते हैं. 

...जब श्रीकृष्ण ने लिया था जन्म
लेकिन, प्रश्न यह है कि माता देवकी उन्हें किस नाम से पुकारती हैं तो वह उन्हें ब्रह्नम स्वरूप ही देखती हैं और इसका वर्णन पुराणों में कई जगह पर संक्षेप में दर्ज है. क्योंकि यह कथा इस भाव पर आती ही नहीं कि जन्मे बालक को देखकर मां ने क्या कहा. सामान्य तौर पर भी माताएं तुरंत नाम भी नहीं रख देती हैं, वह मेरा बेटा, मेरी बेटी के भाव से भर जाती हैं और सीने से चिपका लेती हैं. नाम रखने और खास नाम से पुकारने का ध्यान माता को तुरंत नहीं आता होगा, अगर पहले से भी कोई नाम सोच रखा है तब भी.

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उदयपुर स्थित श्रीजगमंदिर के पुजारी शास्त्री विनोदजी बताते हैं कि श्रीराम जन्म और श्रीकृष्ण जन्म पुराणों में वर्णित दो ऐसे प्रसंग हैं, जहां भगवान के जन्म का वर्णन ठीक से आता है. इसके पहले वामन अवतार में उनके जन्म का वर्णन मिलता है, जहां उनका नाम उपेंद्र है. इसका जिक्र भी भगवान, भागवत कथा में अपने अवतार लेने से ठीक पहले करते हैं. श्रीराम जन्म में भी भगवान पहले अपने चतुर्भुज स्वरूप में आते हैं, तब माता कौशल्या उनसे शिशु रूप में आने को कहती हैं.

उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥

माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा ॥

सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा ।

श्रीमद् भागवत कथा में विस्तार से है श्रीकृष्ण जन्म का वर्णन
इस विषय पर प्रयागराज स्थिति विशालाक्षी पीठ से जुड़े महंत स्वामी अखंडानंद जी विस्तार से अपना तर्क सम्मत मत प्रस्तुत करते हैं. वह कहते हैं कि, ब्रह्म पुराण, विष्णु पुराण, पद्म पुराण ,मत्स्य पुराण और श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्री हरि ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया तो असल में वह उनका प्राकट्य था. वह प्रकट हुए थे. पहली बार उनका प्राकट्य  शंख ,चक्र ,गदा और पद्मधारी चतुर्भुज रूप के साथ हुआ था. 

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भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, रोहिणी नक्षत्र ,हर्षण योग, वृष लग्न ,वव‌ करण, बुधवार अष्टमी तिथि,  आधी रात का समय, चंद्रोदय काल और संपूर्ण अंधकार के समय कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से श्री हरि प्रकट हुए.

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श्रीमद् भागवत कथा के दशम स्कंध, अध्याय तीन श्लोक 24 में माता देवकी द्वारा भगवान को विष्णु नाम से पुकारना

भगवान ने गीता में भी खुद ही कहा है कि ‘जन्म कर्म च मे दिव्यम’ अर्थात मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात निर्मल और अलौकिक हैं. यहां वह यह कहना चाहते हैं कि उनका जन्म अन्य जीवों की तरह गर्भ प्रवेश से नहीं होता है इसलिए ईश्वर का एक नाम अयोनिज भी है. पद्म पुराण ,ब्रह्म पुराण और विष्णु पुराण के अनुसार देवताओं ने गर्भ में अव्यक्त को धारण करने वाली देवी देवकी की स्तुति की थी, जबकि दूसरे सभी पुराणों के अनुसार देवताओं जैसे ब्रह्मा शंकर आदि ने गर्भस्थ भगवान की स्तुति की थी. भागवत के दशम स्कंध में इसका वर्णन आया है.

श्रीमद् भागवत के दसवें स्कंध के तीसरे अध्याय में आठवें श्लोक में भगवान का प्राकट्य हो रहा है–

निशीथे तमउद्भते जायमाने जनार्दने.
देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णु: सर्वगुहाशय:.
आविरासिद् यथा प्राच्यां दिशीन्दुरिव पुष्कल:..

जब वसुदेव जी पहले बार भगवान को प्रकट हुए देखा
यानी जन्म मृत्यु के चक्र से छुड़ाने वाले जनार्दन के अवतार का समय था निशिथ, चारों ओर अंधकार का साम्राज्य था .इसी समय सबके हृदय में विराजमान भगवान विष्णु देवरुपिणी देवकी गर्भ से प्रकट हुए .जैसे पूर्व दिशा में सोलहों कलाओं से पूर्ण चंद्रमा का उदय हो गया. भगवान के प्राकट्य के बाद भागवत पुराण के दशम स्कंध के अध्याय 3 में  13वें श्लोक से 22वें श्लोक तक वसुदेव जी (पिता) ने भगवान की स्तुति की. इस स्तुति में उन्होंने भगवान के चारभुजा वाले स्वरूप के दर्शन किए. उन्हें चक्र-पद्म धारण किए हुए देखा.

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वह अपनी न समझ आने वाली बुद्धि को लेकर परेशान और कुछ भ्रमित होते हैं और फिर तुरंत ही शांत हो जाते हैं, बिल्कुल चिंतामुक्त, क्योंकि सामने चिंताहरण ही थे. इस तरह भगवान का एक नाम चिंत्तहरण हुआ. वह अखिल विश्व के स्वामी, चराचर के ईश्वर, जगत के नाथ थे. इस आधार पर भी उनका नामकरण हुआ. इस तरह वसुदेव जी अनेक नामों से उनकी स्तुति करते हैं, लेकिन यह सारी स्तुति प्रत्यक्ष कहें या अप्रत्यक्ष भगवान विष्णु की ही है. 

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श्रीमद् भागवत कथा में दसम स्कंध, अध्याय तीन में श्लोक 29, जहां माता देवकी द्वारा मधुसूदन नाम लिया गया है

अब आगे, इसी अध्याय के 24वें श्लोक से 31वें श्लोक में माता देवकी ने स्तुति की है. माता देवकी ने भगवान की जो स्तुति की है, वह इस प्रश्न का ठीक जवाब हो सकता है कि माता देवकी ने पुत्र रूप में आए श्रीहरि को पहले किस नाम से पुकारा? 

रुपं यत् तत्व प्राहुरब्यक्तमाद्यं 
ब्रह्मज्योतिर्निगुणं निर्विकारम्.
सत्तामात्रं निर्विशेषं निरीहं
सर्वं साक्षात् विष्णुरध्यात्मदीप:..

माता देवकी ने कहा, 'प्रभु आपके जिस रूप को अव्यक्त और सबका कारण बतलाया है, जो ब्रह्म ज्योति स्वरूप, समस्त गुणों से रहित और विकारहीन है, जिसे विशेषण रहित अनिर्वचनीय निष्क्रिय एवं केवल विशुद्ध सत्ता के रूप में कहा गया है- वही बुद्धि आदि के प्रकाशक ‘विष्णु’ आप स्वयं हैं'.

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माता देवकी ने 29वें श्लोक में आगे कुछ ऐसा कहा है- 

जन्मते मय्यसौ पापोमा विद्यान्मधुसूदन.
समुद्विजे भवद्देतो:‌कंसादहम धीरधी:..

हे ‘मधुसूदन’ इस पापी कंस को यह बात मालूम न हो कि आपका जन्म मेरे गर्भ से हुआ है. मेरा धैर्य टूट रहा है आपके लिए मैं कल से बहुत डर रही हूं”.

इस प्रकार 24वें श्लोक में भगवान ‘विष्णु’ एवं 29वें श्लोक में भगवान ‘मधूसूदन’ के नाम से भगवान श्री कृष्ण को पहली बार माता देवकी ने पुकारा. इस तरह जन्म के तुरंतबादा माता देवकी ने भगवान श्रीकृष्ण को किस नाम से पुकारा, इसका उत्तर मधुसूदन हो सकता है. उनका कृष्ण नाम तो बहुत बाद में सामने आता है. 

श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के आठवें अध्याय में नामकरण संस्कार का प्रसंग आता है. जिसमें यदुवंशियों के कुल पुरोहित गर्गाचार्य जी नंद बाबा के गांव गोकुल आते हैं और नंद बाबा के प्रार्थना करने पर गुप्त रूप से दोनों बालकों का नामकरण संस्कार कराते हैं. 

अयं रोहिणी पुत्रों रमयन सुहृदों गुणै:.
आख्यास्यते राम इति बलाच्पिक्याद बलं विदु:.

यदुनाम पृथग्भावात् संकर्षणमुशन्त्युत..
आसन वर्णास्त्रयो व्यस्त ग्रहणोऽनुयुगं तनू:.
शुक्लोरक्तस्तथा पीत इदानीं कृष्णतांगत:..

गर्गाचार्य ने पहले रोहिणी के पुत्र का नाम रोहिणेय ‘राम’ ‘बल’ एवं ‘संकर्षण’ रखा और फिर कहा कि यह जो सांवला सा है यह प्रत्येक युग में शरीर धारण करता है. पिछले युगों में इसने क्रम से श्वेत, रक्त और पीत यह तीन विभिन्न रंग स्वीकार किए थे. अबकी यह कृष्ण वर्ण का हुआ है इसलिए इसका नाम ‘कृष्ण’ होगा. स्पष्ट है कि यह नामकरण तो गर्गाचार्य जी द्वारा गोकुल में किया गया जो कि भगवान के नाम के रूप में विख्यात हो गया.  

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गर्ग संहिता में भगवान के कितने नाम?
हालांकि गर्ग संहिता में कृष्ण, पीतांबर धारी, कंसध्वंसी, देवकीनंदन , श्रीश, यशोदानंदन, हरि, सनातन, अच्युत, विष्णु, सर्वेश, सर्वरूप, सर्वाधार, सर्वगति, सर्व कारण जैसे कई नाम आते हैं. बाबा तुलसीदास ने तो मानस में ही लिख दिया था कि हरि अनंत, हरि कथा अनंता. हालांकि इसके बाद भी संत तुलसीदास अपने आराध्य के अनेक नामों के उल्लेख का मोह संवरण (मोह नहीं छोड़ पाए) नहीं कर पाए. उन्होंने, राजीवलोजन, नवकंजलोचन, अजानबाहु, कोदंडधारी, सियपति, आनंदकंद और न जाने कितने नाम दिए हैं. दिलचस्प यह है कि इनमें से उन्होंने कितने ही नाम, माता कौशल्या, राजा दशरथ, हनुमान जी, सुग्रीव और खुद श्रीराम की प्रजा के मुख से कहलवाए हैं.

इन संदर्भों और प्रसंगों के आधार पर तो यही मानना चाहिए कि माता देवकी ने पहली बार उन्हें 'विष्णु' और फिर तुरंत ही 'मधुसूदन' कहा था. श्रीकृष्ण का मधुसूदन नाम भागवत कथा के साथ-साथ महाभारत के भी कई प्रसंगों में कई-कई बार आया है. 

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