कहावत है कि थोथा चना, बाजे घना. ऐसा ही कुछ इन दिनों नीतू चंद्रा के साथ भी है. कुछ समय पहले तक खुद को बॉलीवुड में नंबर वन सीट की हकदार मानकर खुश होने वाली इस बिहारी बाला के आसपास मंडराने वाले निर्माताओं के गायब होने का रहस्य इतना भी भयानक नहीं है जो किसी को समझ नहीं आए.
लेकिन लगता है, नीतू खुद इसे समझ नहीं पा रही हैं. उनके पास गिनती की फिल्में भी नहीं बची हैं, लेकिन तेवर देखो तो जैसे सबसे व्यस्त अदाकारा वही हैं. नई फिल्मों को लेकर उनसे सवाल का जवाब कम दिलचस्प नहीं होता. बकौल नीतू, 'मेरे पास फिल्मों की कमी कभी नहीं रही, लेकिन मैं हर फिल्म के लिए हां नहीं कह सकती क्योंकि मुझे किसी को कुछ साबित नहीं करना है.'
वे एक सांस में इतना कुछ कह जाती हैं, जैसे नेता लिखे हुए भाषण का रट्टा मार लेते हैं. उधर, रेट और डेट के मामले में निर्माता त्रस्त हैं. एक निर्माता याद करता है कि उनकी शर्तों की फेहरिस्त देखकर वह सदमे में आ गया था. अब वह किसी और हीरोइन के साथ फिल्म बना रहा है और नीतू अब भी खुशफहमी में जी रही हैं कि उनके पास काम की कमी नहीं है. इसे क्या कहेंगे आप?