'प्यार किया तो डरना क्या....' बेल्जियम से मंगाए शीशों से बने शीश महल में फिल्माया गया 'मुगल-ए-आज़म' का ये गाना जब फिल्मी पर्दे पर दिखता है, तो किसी पेंटिंग की तरह जेहन में घर कर जाता है. इस गाने को अमर बनाने में नौशाद की मधुर धुन और लता मंगेशकर के सुरीले सुर के साथ-साथ मधुबाला के डांस, पृथ्वीराज कपूर और दिलीप कुमार की कमाल की अदायगी और के. आसिफ का बारीक निर्देशन का ही योगदान नहीं था. बल्कि साइरस मिस्त्री का परिवार भी था, जिसने इस फिल्म को सिर्फ के. आसिफ का ही नहीं बल्कि भारतीय सिनेमा का भी 'मैग्नम ओपस' बना दिया.
देश के बंटवारे से अटकी फिल्म
जी हां, टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का इस फिल्म से गहरा जुड़ाव है. देश की आजादी से पहले 1944 में जब के. आसिफ ने 'मुगल-ए-आज़म' बनाने का प्लान बनाया, तब इसकी स्टारकास्ट बिलकुल अलग थी. साल 1946 में इस फिल्म का पहला शूट हुआ और चंद्रमोहन, डी. के. सप्रु फिल्म में काम कर रहे थे. पर कहते हैं ना, जिसको जहां पहुंचना होता है पहुंच ही जाता है. वैसा ही कुछ 'मुगल-ए-आज़म' के साथ हुआ. इस फिल्म के निर्माता शिराज अली थे, जो 1947 में बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए. उसके बाद इस फिल्म में कोई हाथ डालने को तैयार नहीं हुआ और यहीं पर एंटी हुई साइरस मिस्त्री के परिवार यानी शापूरजी पालोनजी ग्रुप की.
पानी की तरह बहाया गया पैसा
16 साल के लंबे अंतराल में बनी 'मुगल-ए-आज़म' में आखिरकार पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार और मधुबाला फाइनल हुए, और 1960 में ये रिलीज हुई. लेकिन 16 साल का ये सफर इतना आसान नहीं रहा. के. आसिफ फिल्म बनाने के लिए अपनी सारी संपत्ति गिरवी रख चुके थे, लेकिन सही मायनों में 'मिस्टर परफेक्शनिस्ट' के. आसिफ इस फिल्म को इतना ऑथेंटिक बनाना चाहते थे कि इसके शीशमहल को बनाने के लिए कांच बेल्जियम से आए, तो फिल्म में एक जगह पर हीरों को गिराने का सीन फिल्माने के लिए असली हीरे मंगाए गए़.
किस्तों में जुटाए गए असली हीरे
ये सब मुमकिन हो पाया साइरस मिस्त्री के परिवार की वजह से. उन्होंने ना सिर्फ इस फिल्म को बनाया बल्कि इसके लिए 'पानी की तरह पैसा बहाया'. बताया जाता है कि हीरों वाले सीन के लिए एक साथ इतने हीरे जुटाना मुश्किल था, तो कई किस्तों में थोड़े-थोड़े हीरे जुटाए गए़. इस फिल्म का सबसे बड़ा नगीना था 'प्यार किया तो डरना क्या....' का गाना, और इसके लिए बनाया गया शीशमहल का सेट. शीशमहल की शूटिंग से जुड़ा एक किस्सा ये भी है कि जब ये तैयार हो गया तो लाइट की वजह से यहां शूट करना मुश्किल था, तब रिफ्लेक्शन को कम करने के लिए शीशों पर मोम की परत चढ़ाई गई.
इस सेट को बनने में लगभग 2 साल लगे और इसके लिए रंगीन शीशे बेल्जियम से मंगवाए गए. इस सेट को बनाने का खर्च शापूरजी ने उठाया, वो फिल्म में पानी की तरह पैसा लगाते गए, क्योंकि उन्हें पूरा भरोसा था कि ये फिल्म खूब चलेगी. हालांकि बाद में कुछ समय तक लोग टिकट लेकर इस सेट को देखने भी गए. जब ये फिल्म रिलीज हुई तो खूब चली भी और इसने जबरदस्त कमाई की. अगर आज के हिसाब से कैलकुलेशन करें तो अपने समय में इसने करीब 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार किया था. हाल में इस फिल्म के 60 साल पूरे हुए. इस मौके पर शापूरजी पालोनजी ग्रुप ने 'मुगल-ए-आज़म' नाम से ही एक डांस प्ले प्रोडयूस किया. इसे भी उन्होंने इस फिल्म की तरह ग्रैंड बनाया.