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'कांतारा चैप्टर 1' रिव्यू: ऋषभ शेट्टी ने रचा चकित कर देने वाला संसार... मिलेगा शानदार विजुअल एक्सपीरियंस

ऋषभ शेट्टी की फिल्म 'कांतारा' ने 2022 में ऐसा जादू किया था कि लोग बार-बार इसे देखने जा रहे थे. 'कांतारा चैप्टर 1' अनाउंस करते ही ऋषभ ने दर्शकों की उम्मीदों का भार महसूस किया होगा. क्या वो इस उम्मीद पर खरे उतर पाए? पढ़िए इस रिव्यू में...

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'कांतारा चैप्टर 1' डिटेल्ड रिव्यू (Photo: Instagram / hombalefilms)
'कांतारा चैप्टर 1' डिटेल्ड रिव्यू (Photo: Instagram / hombalefilms)
फिल्म:कांतारा चैप्टर 1
4/5
  • कलाकार : ऋषभ शेट्टी, रुक्मिणी वसंत, गुलशन देवैया, जयराम
  • निर्देशक :ऋषभ शेट्टी

'कांतारा चैप्टर 1' वहीं से शुरू होती है जहां डायरेक्टर-एक्टर ऋषभ शेट्टी ने 'कांतारा' खत्म की थी. तमाम अकल्पनीय मिथकों को गर्भ में समेटे हुए एक जंगल के बीचोंबीच, रहस्यमयी सी जगह पर पहुंचकर फिल्म का हीरो गायब हो गया था. जब गायब हुआ था तब वो जंगल के देव, पंजुरली के भेष में था. पिछली फिल्म में ही आपने देखा था कि शिवा का पिता भी उसी जगह पर, उसी भेष में गायब हुआ था. नई फिल्म शिवा के बेटे से शुरू होती है, जिसका सवाल है कि उसके पिता यहीं आकर क्यों गायब हुए? 

'कांतारा चैप्टर 1' इसी सवाल का जवाब है. जवाब, जो पिछली फिल्म से कई सदी पीछे ले जाता है. जवाब, जिससे एक शानदार अनुभव की आस में आप थिएटर पहुंचते हैं. जवाब, जो विजुअली आपको चकित करता है, स्तब्ध करता है. अकल्पनीय दृश्यों और रहस्यों से आपकी नजरों को ऐसे बांधता है कि कुछ सीक्वेंस देखते हुए पलकें झपकना भूल जाती हैं. यानी सिनेमा एक दर्शक को जो अनुभव देने के लिए ईजाद किया गया था, उस अनुभव से लबालब भरा जवाब. 

क्या है फिल्म की कहानी?
कहानी कहने की जिम्मेदारी ऋषभ के काबिल हाथों में थी, जो उन्होंने बखूबी बड़े पर्दे पर कही भी है. हां, इसकी आउटलाइन और सेटअप हम बता देते हैं. राजा विजयेंद्र (जयराम) का सामना बहुत कम उम्र में उस रहस्यमयी जंगल 'कांतारा' से हो गया था. कैसे हुआ था? इसे थिएटर्स में देखिए. उसके पिता 'कांतारा' में पांव जमाने की कोशिश करने चले थे. इसलिए विजयेंद्र अपने पूरे राज में दोबारा ये गलती नहीं करता. गलती करता है कुलशेखर (गुलशन देवैया), विजयेंद्र का बेटा, जिसे उसने अभी-अभी राजा बनाया है. 

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इधर जंगल में एक रहस्यमयी बालक, बेरमे (ऋषभ शेट्टी) बड़ा होकर अपने समुदाय का नायक बन चुका है. जवाब में बेरमे अपने साथियों के साथ तय करता है कि जैसे राजा को काल्पनिक दीवार के इस पार देखने की चुल्ल थी, जरा हम भी तो देखें कि उस पार का संसार क्या है. बेरमे एंड कंपनी पहली बार देखती है कि तन ढंकने के लिए सूत के कपड़ों जैसा कुछ होता है. लिखना भी मनुष्य की एक स्किल है और बंदरगाहों पर एक लेनदेन होता है, जिसे व्यापार कहा जाता है. इस व्यापार में सबसे ज्यादा मोल देने वाली चीज, मसाले तो उनके जंगल से ही निकल रहे हैं. तो क्यों ना व्यापार खुद ही किया जाए! 

बंदरगाह राजा के राज में है और कामधाम देखती है उसकी बेटी, कनकवती (रुक्मिणी वसंत). उससे बेरमे का आमना-सामना तो होना ही था, सो हुआ भी. चिंगारियां उठने लगीं. और ऐसा दो ही जगह होता है— जहां प्रेम होता है, या फिर शत्रुता. कहानी फिल्मी है, होना तो प्रेम ही था. ये केमिस्ट्री कितनी विस्फोटक है, फिल्म में देखिए. अब कहानी करवट लेती है. 

राजाओं की प्रवृत्ति होती है, राज करना. जबकि कांतारा के लोग केवल एक ही राज को मानते हैं, अपने देवों का राज. विवाद तो होना ही था. मगर ये विवाद साधारण नहीं है. इसमें मिथकीय शक्तियां भी शामिल हैं, देव शामिल हैं. एक और पक्ष है, जो बेरमे के लोगों की ही तरह एक आदिवासी समुदाय है. वो कहानी में असुरों की तरह हैं, जो देवों को बांधने चले हैं. ऐसा करने में उनकी दिलचस्पी क्यों है, ये भी फिल्म में ही देखिए. 

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बीच में योद्धा एक ही है— बेरमे. क्या वो राजा और सेना का सामना कर पाएगा? क्या वो इन 'असुर' शक्तियों का सामना कर पाएगा? क्या वो 'कांतारा' की रक्षा कर पाएगा? हमने कहा तो था, जवाब थिएटर्स में मिल रहा है, वहां देखिए. यहां देखें 'कांतारा चैप्टर 1' का ट्रेलर:

यह भी पढ़ें: जंगल, जमीन और नक्सली... 'कांतारा' ही नहीं, ऋषभ शेट्टी की पहली फिल्म भी इस रियल घटना से प्रेरित थी

'कांतारा चैप्टर 1' का माल-मसाला
ऋषभ शेट्टी डायरेक्टर, हीरो और राइटर, तीनों काम संभालते हैं. राइटिंग में उनके साथ एक टीम भी होती है और इन सभी की मेहनत बड़े पर्दे पर चमकती है. विजुअल्स अद्भुत हैं, शानदार हैं. ऋषभ ने रियल लोकेशंस पर जो शूट किया है, वो पूरी फिल्म के फील को ऑथेंटिक बनाता है. इस फील को करिश्माई बनाने का काम VFX डिपार्टमेंट ने बहुत उम्दा किया है. 

अगर विजुअल्स फिल्म का सुगढ़, सुडौल, धाकड़ शरीर हैं, तो बी. अजनीश लोकनाथ का म्यूजिक पूरी फिल्म की वो रीढ़ है, जिसपर ये शरीर तना हुआ खड़ा है. विजुअल्स के साथ ये म्यूजिक जो माहौल बनाता है, उसका असर आपको बेरमे-कनकवती के सीन्स, इंटरवल ब्लॉक, सेकंड हाफ की शुरुआत, एंटी-क्लाइमेक्स और क्लाइमेक्स में भरपूर महसूस होगा. 

जंगल बनाम राजा, आदिवासी बनाम सत्ता, देव बनाम असुर और प्रकृति बनाम मनुष्य जैसे कनफ्लिक्ट 'कांतारा चैप्टर 1' की थीम हैं. इस थीम को नैरेटिव में बांधना और इसे इस विशाल विजुअल एक्सपीरियंस में बदलना कितना मुश्किल रहा होगा, इसका एहसास आपको फिल्म देखने पर होगा. सेकंड हाफ में तमाम ऐसे मोमेंट्स हैं जब ये सिर्फ फिल्म नहीं रह जाती, कुछ अलग बन जाती है. जो आपको नसों में महसूस होगा, शब्दों में नहीं कहा जाएगा. 

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डायरेक्टर और एक्टर ऋषभ शेट्टी का जादू 
ऋषभ को 'कांतारा' के पहले से देख रहे लोग ये जानते है कि वो एक दमदार डायरेक्टर हैं. मगर इससे पहले उनका जोन बहुत रियलिस्टिक रहा है. कल्पनाओं, मिथकों, ग्राफिक्स से रचे संसार और लार्जर दैन लाइफ सिनेमा की उम्मीद उनसे शायद ही किसी को रही हो. मगर फिर 'कांतारा' आई और लोगों ने ऋषभ का कमाल देखा. 

अच्छे जादूगर के खासियत यही होती है कि वो अपनी ट्रेडमार्क ट्रिक एक तो हर शो में दिखाता है. दूसरे हर बार उसमें कुछ क्रिएटिव चीज ऐसी करता है कि वो बार-बार देखने वाले दर्शकों को भी बांधे रखती है. ऋषभ शेट्टी ने 'कांतारा चैप्टर 1' में यही किया है. सीक्वल्स ज्यादातर पहली फिल्म का स्केल ही बढ़ाते हैं और इनके पावरफुल मोमेंट वही होते हैं, जो पहली फिल्म का दोहराव होते हैं. मगर ऋषभ ने नई फिल्म को उसके अलग एलिमेंट दिए हैं. यही आपको बांधे रखते हैं और फिर जब पहली फिल्म वाले एलिमेंट दोहराए जाते हैं तो दर्शक का अनुभव अलग लेवल पर पहुंच जाता है. 

बतौर डायरेक्टर ये वजन तो ऋषभ ने संभाला ही, बतौर एक्टर भी उन्होंने पूरा वजन साधा है. जिन जगहों पर फिल्म थोड़ी-बहुत कम काम करती हुई लगती है, वहां आप ऋषभ को देखने के लिए टिके रहते हैं. सारे महत्वपूर्ण सीन्स में उनकी एनर्जी देखकर ही कितने नए एक्टर थका हुआ महसूस करने लगेंगे. इमोशनल सीन्स में भी उनकी आंखों में भरपूर गहराई है और रोमांस में भी वो उतने ही असरदार हैं. 

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कहां थोड़ी कमजोर है फिल्म?
फर्स्ट हाफ का नैरेशन पार्ट थोड़ा ज्यादा है, जो सेटअप के लिए जरूरी भी था, मगर ये ज्यादा एंगेजिंग हो सकता था. शायद हिंदी में डबिंग की वजह से भी इसपर असर पड़ा हो, पर पड़ा तो है. फर्स्ट हाफ में कुछेक जगहों पर गैर-जरूरी कॉमेडी की कोशिश मिलती है. बंदरगाह के कुछ सीन थोड़े खिंचे हुए लगते हैं. कांतारा निवासियों में ऋषभ के अलावा कोई और किरदार महत्वपूर्ण तरीके से उभरता नहीं है, ये राइटिंग की थोड़ी दिक्कत है. इसके मुकाबले जंगल से बाहर वाले सपोर्टिंग किरदार थोड़े बेहतर बने हैं. मगर इन कमियों में से कुछ भी ऐसा नहीं है, जो फिल्म का अनुभव खराब करे या आपको इतना उकता दे कि आप डिस्टर्ब होने लगें. 

दमदार हैं बाकी एक्टर्स भी 
लीडिंग लेडी के रोल में रुक्मिणी वसंत ने जो किया है, वो भी थिएटर से बाहर आते दर्शकों पर असर दिखाएगा. सेकंड हाफ में उनका रोल बहुत बढ़ जाता है. कहानी में आए ट्विस्ट को दिखाने में जिस तरह वो पूरी तरह बदली हुई दिखती हैं, वो बहुत दमदार है. राजा विजयेन्द्र के रोल में जयराम ने अपने सीनियर होने को पूरी तरह जस्टिफाई किया है. गुलशन देवैया हमेशा की तरह अपना काम पूरी ईमानदारी से करते हैं और कहानी को योगदान देते हैं. 

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कुल मिलाकर 'कांतारा चैप्टर 1' बड़ी स्क्रीन पर आपको ऐसा अनुभव देती है कि सिनेमा का पर्दा ईजाद करने वालों की मेहनत सार्थक लगेगी. दिक्कतें तो हर फिल्म में होती हैं, यहां भी छुटपुट हैं. मगर अद्भुत विजुअल्स और शानदार म्यूजिक के साथ ऋषभ एंड टीम ने जो रचा है, वो आपको लिटरली बांधे रखता है. ये फिल्म अबतक इस साल का सबसे बेहतरीन विजुअल एक्सपीरियंस है और बड़े-बड़े अवॉर्ड शोज में धमाका करने वाला सिनेमा है.

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