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‘अवतार 3’ Review: आंखों को फिर चौंकाया, पर दिल को थोड़ा कम बांध पाए कैमरून, सेकंड हाफ पर है दारोमदार

मचअवेटेड फिल्म अवतार 3 रिलीज हो गई है. रणवीर सिंह की 'धुरंधर' की आंधी के बीच मूवी लवर्स के बीच हॉलीवुड की इस साई-फाई एडवेंचर फिल्म का काफी क्रेज था. जेम्स कैमरून के डायरेक्शन में बनी ये मूवी कैसी बनी है, पढ़ते हैं हमारे रिव्यू में.

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कैसी बनी है फिल्म 'अवतार 3'? (Photo: IMDB)
कैसी बनी है फिल्म 'अवतार 3'? (Photo: IMDB)

2009 में जेम्स कैमरून ने फिल्म लवर्स को स्क्रीन पर एक जादू रच के दिया था― अवतार. ‘अवतार 2’ में वो जादू एक ऐसे संसार में बदल गया जो हमारे इस अपने संसार जितना फैमिलियर था. उसमें नई चीजें जुड़ रही थीं. कैप्टन जेक सली और नेतिरी की कहानी, दो संसारों का मेल बन गई थी. इंसानों का लालच, प्रकृति को निचोड़कर अपना जीवन लंबा कर लेने की भूख एक नई, भयानक शक्ल ले रही थी. और इस चेहरे के साथ हम ‘अवतार 3’ में एंटर होते हैं. कैमरून ने वादा किया है कि इस पार्ट में कहानी एक निश्चित मोड़ पर पहुंचने वाली है.

फर्स्ट हाफ
अवतार 2’ का अंत थोड़ा उदासी भरा था. जेक और नेतिरी के खूबसूरत परिवार में एक जान गई थी. जेक ने एक बेटा खोया है. ‘अवतार 3’ उसी दुख के साथ शुरू होती है. जेक और नेतिरी का दूसरा बायोलॉजिकल बेटा लोआक, खुद को बड़े भाई की मौत का जिम्मेदार मानता है. फर्स्ट हाफ में उसका स्ट्रगल कहानी के आगे बढ़ने का बड़ा फैक्टर है. लोआक, अपने बड़े भाई जैसा योद्धा बनना चाहता है. पर जेक उसे इस लायक नहीं मानता. 

किरी, नावियों की देवी, आईवा स्व अपने कनेक्शन को लेकर स्ट्रगल कर रही है. आईवा उससे स्पिरिचुअली कनेक्ट नहीं कर रही. जेक-नेतिरी का अडॉप्टेड, इंसानी बेटा स्पाइडर अलग केस है. ह्यूमन रेस का नावी वर्ल्ड में दखल और बढ़ गया है. स्पाइडर के साथ कुछ ऐसा हुआ है, जिसे ह्यूमन रिसर्चर अपने लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं. स्पाइडर का ये सीक्रेट, उन्हें नाबियों के संसार में सांस लेने की शक्ति दे सकता है. कर्नल क्वारिच अभी भी जेक सली को कैप्चर करने के मिशन पर है. 

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और इन सारे प्लॉट पॉइंट्स के बीच नावियों के नए दुःमं भी आ गए हैं―ऐश पीपल. उनकी लीडर वरांग नावियों को खत्म कर देना चाहती है. यानी नावियों का लीडर, जेक सली और उसका परिवार कई मसलों में फंसे हैं. और नावियों पर कई बड़े खतरे हैं.

फर्स्ट हाफ ‘अवतार 3’ का बिल्ड-अप है. इसमें ड्रामा और डेवलपमेंट ज्यादा है. इसलिए इसका लंबा होना तो समझ आता है. मगर इसके रास्ते में, कहानी की पेस एक अड़चन बनती है. फर्स्ट हाफ काफी स्लो लगता है. कहानी का ह्यूमन कनेक्शन जोड़ने में कैमरून ने थोड़ा ज्यादा वक्त ले लिया. 

ऐसा फील होता है कि वो खुद अपने ही क्रिएट किए हुए संसार को शोकेस करने में ज्यादा गहरे चले गए. इस चक्कर में स्क्रीनप्ले स्लो हो गया. लेकिन जब शो मास्टर कैमरून हों तो उनकी शोबाजी से शिकायत किसे होगी! उनके संसार में अब भी वो मैजिक है कि आपका मुंह खुला रह सकता है. पलकें कुछ देर  के लिए झपकना भूल सकती हैं.

कुछ संभावनाएं वाकई इतनी कम होती हैं कि वो दिमाग के सबसे दूरस्थ कोनों में भी कभी नहीं कौंधतीं. जैसे कि― ‘अवतार 3’ उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती. 

एक खिंचे हुए, लंबे, कनेक्ट मिस करने वाले फर्स्ट हाफ के बाद सेकंड हाफ से बहुत उम्मीदें थीं. मगर कैमरून का स्पेक्टेकल, अटेंशन नहीं बांध पाता. स्क्रीनप्ले का दांव बहुत छोटा हो जाता है. उम्मीद थी कि ये इंसानों और प्रकृति के संबंधों वाली लाइन पर कुछ गहरा दर्शन जैसा लेकर आएगा. मगर क्लाइमेक्स का दांव एक परिवार तक सीमित हो जाता है. 

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स्पेक्टेकल तो यकीनन है और इसमें कैमरून की बराबरी कोई नहीं कर सकता. लेकिन सेकंड हाफ शुरू होने के थोड़ी देर बाद ही ऐसा लगता है कि कैमरून खुद अपने रचे जादू से थक गए. जैसे उन्हें बीच में कहीं ये अहसास हुआ हो कि मैंने बहुत साल इसपे खर्च दिए, अब बस खत्म कर दो इसे. सबकुछ भागता हुआ, सुलझ जाने को आतुर. मगर ‘अवतार’ कभी किसी सवाल का जवाब नहीं होने वाली थी. वो लोगों के लिए सवाल छोड़ने वाली थी. ‘अवतार 3’ से उम्मीद थी कि ये और कड़ा सवाल छोड़ेगी. फिर भी, विजुअल स्पेक्टेकल, कैमरून के जीनियस के लिए ‘अवतार 3’ देखी जा सकती है. इसलिए भी देखी का सकती है कि आखिर सबसे ग्रेटेस्ट कहानियों में से एक चूक कहां गई.

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