छीछोरे और मर्दानी जैसी फिल्मों में दिखने वाले ताहिर राज भसीन कुछ कलाकारों में से हैं, जो वेब सीरीज की दुनिया से काफी पहले से जुड़े हैं. रणवीर सिंह के साथ उनकी फिल्म 83 और तापसी पन्नु के साथ लूप लपेटा जल्द ही रिलीज होगी. इसी के साथ उनकी वेब सीरीज 'ये काली काली आंखें' की शूटिंग लद्दाख में चल रही है. मुंबई के लॉकडाउन और कोरोना के बढ़ते केसेज के बीच ताहिर लद्दाख की वादियों में हैं.
पहली बार वे लद्दाख में शूटिंग करने को लेकर काफी एक्साइटेड हैं. अपनी डिजिटल सीरीज ‘ये काली काली आंखें’ की शूटिंग करने के लिए ताहिर करीब दो हफ्ते तक लद्दाख के दर्शनीय और मनोहर इलाके में मौजूद होंगे.
ताहिर राज भसीन: लद्दाख में शूटिंग करने की मेरी हमेशा से तमन्ना थी
ताहिर राज भसीन ने खुलासा करते हुए कहा, "लद्दाख का लैंडस्केप काफी खूबसूरत है और शूटिंग करने के लिए यह ख्वाबों की जगह है. अगले कुछ दिनों के दौरान ‘ये काली काली आंखें’ सीरीज की शूटिंग के सिलसिले में हम जिस तरह के दृश्यों को फिल्माने जा रहे हैं, उनकी विशालता और अहसास लद्दाख के पहाड़ों और ऊंचाइयों की अलौकिक सुंदरता में रचा-बसा हुआ है. मैं ‘लक्ष्य’, ‘जब तक है जान’ और ‘3 इडियट्स’’ जैसी फिल्में देख-देख कर बड़ा हुआ हूं, जो लद्दाख के आयकॉनिक सीक्वेंसों में फिल्माई गई थीं. मैं हमेशा से लद्दाख में शूटिंग करना चाहता था.“
16 बरस की उम्र में गए थे लद्दाख
ताहिर ने किशोरवय में लद्दाख की जर्नी की थी और उन छुट्टियों की अद्भुत यादें उनके मन में बसी हुई हैं. उनका कहना है, “पिछली बार मैं 16 बरस की उम्र में लद्दाख गया था. मुझे अपने माता-पिता के साथ लंबी सैर पर निकलना और बौद्ध मंदिरों को करीब से देखना अच्छी तरह से याद है. मुझे यह भी याद है कि हम एक बेहद मनोरम यात्रा करते हुए पैंगोंग झील पहुंचे थे और मैंने अपने छोटे भाई के साथ बेहद लजीज ठुकपा और मोमोज खाए थे. वहां बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है और जोरों की हवा भी चलती है, इसलिए मैं इस बार कोई चांस नहीं लेना चाहता.“
ताहिर के मन में दोबारा लद्दाख जाने की तमन्ना हमेशा से दबी पड़ी थी. वह बताते हैं, “मेरे मन में ट्रेवल करने का जुनून सवार रहता है. पिछले साल भर से शहर में कैद होकर रह जाने की वजह से देश के कोने-कोने में घूमने और उनकी खूबसूरती के विभिन्न रंग देखने की इच्छा ने और जोर पकड़ लिया है.“
ताहिर की जर्नी बनी कंपलीट पैकेज
वह आगे बताते हैं, “जब दूर की किसी यात्रा में कुदरत और लद्दाख जैसी खास जगह की पृष्ठभूमि वाले ऑउटडोर का संगम हो जाए, और इन सबका तालमेल काम करने की संतुष्टि के साथ बैठता हो, तो वह जर्नी सचमुच एक कंपलीट पैकेज बन जाती है. मैं पंद्रह सालों बाद लद्दाख लौट रहा हूं और इस वापसी की इससे बेहतर वजह और भला क्या हो सकती है कि मैं अपनी एक नई डिजिटल सीरीज की शूटिंग करने वहां जा रहा हूं.“