नेशनल अवॉर्ड जीतने के बाद एक्ट्रेस रानी मुखर्जी ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2025 में शिरकत की. यहां उन्होंने अपनी बेटी आदिरा, फिल्म 'मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे' और 'मर्दानी' फ्रेंचाइजी पर मॉडरेटर राजदीप सरदेसाई से बातें कीं. 'मर्दानी' फिल्म फ्रेंचाइजी में रानी मुखर्जी ने बढ़िया काम किया है. ये वुमन सेंट्रिक फिल्म फ्रेंचाइजी है, जिसे दर्शकों ने पसंद किया है. इसके अलावा उनकी फिल्म 'नो वन किल्ड जेसिका' में भी उन्हें पसंद किया गया था.
डायरेक्टर की बात मानती हैं रानी मुखर्जी?
फिल्म में काम करने को लेकर रानी मुखर्जी ने बताया कि उन्होंने कैसे अपने किरदार में जान डालने के लिए छोटी-छोटी डिटेल्स पर काम किया था. ऐसे में रानी से पूछा गया कि वो डायरेक्टर एक्टर हैं? यानी क्या वो डायरेक्टर ने जो जैसा करने को कहा है उसे मानती हैं या फिर अपने किरदारों में अपना नजरिया भी डालती हैं?
रानी ने कहा कि मुझे लगता है कि बतौर एक्टर जब मैं किसी किरदार के बारे में पढ़ती हूं और मुझे अपने आसपास जो दिखा होता है. उन चीजों को मैं अपने डायरेक्टर को बताती हूं. हम सभी के आसपास कुछ न कुछ होता है. ये सब मैं बताती हूं और इस तरह से मैं अपने किरदारों को और बेहतर बनाती हूं. एक फिल्म 100 लोगों के मिलकर काम करने से होती है. म्यूजिक डायरेक्टर कुछ बता सकता है. कोई एडिटर भी कुछ बता सकता है. डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी आकर किसी सीन को और बेहतर बनाने के बारे में बोल सकता है. फिल्म बनाना सभी लोगों का साथ आकर अपना बेस्ट देना है. अंत में वही ऑडियंस देखती है.
मां की तरह अपना किरदार
रानी ने बताया कि वो अपनी फिल्मों को चुनौती की तरह लेती हैं. उन्होंने कहा कि फिल्म 'मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे' में रानी ने अपने देविका चटर्जी के किरदार को अपनी मां कृष्णा मुखर्जी पर आधारित किया था. उनकी मां कोलकाता में पली-बढ़ी हैं. ऐसे में रानी ने सोचा कि फिल्म में ऐसी महिला दिखाई जानी चाहिए, जो सही में कोलकाता से हो और ऑथेनटिक हो. रानी ने बचपन में अपनी मां को ऐसा ही देखा था. एक्ट्रेस ने कहा कि देविका का किरदार निभाते हुए उनके मन में उनकी मां ही थीं और उन्होंने अपनी मां की तरह ही इस किरदार को निभाया.
मल्टी-स्टारर फिल्मों से लगता है डर?
रानी से ये भी पूछा गया कि एक एक्टर के लिए कैसी फिल्में करना आसान होता है- मल्टी स्टारर फिल्में या फिर जिसमें वो अकेले हीरो/हीरोइन हैं. इसपर एक्ट्रेस ने कहा, 'मुझे लगता है कि एक एक्टर के लिए अपने खुद के किरदार पर फोकस करना जरूरी होता है. भले ही वो सेंट्रल किरदार हो या फिर वो मेन किरदार हो. मैं हमेशा कहती हूं कि एक फिल्म की कहानी से बढ़कर कुछ जरूरी नहीं है, हम एक्टर्स भी नहीं. हम एक्टर आकर उन किरदारों को जिंदगी देते हैं. हमें उनके साथ न्याय करना होता है. हमें ध्यान रखना होता है कि हम उन किरदारों के साथ क्या कर रहे हैं.'